लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश पावर कॉर्पोरेशन में जूनियर इंजीनियरों के प्रोन्नति विवाद के एक मामले में स्पष्ट किया है कि पत्राचार के माध्यम से डिग्री प्राप्त करने के लिए विभाग की पूर्व अनुमति की आवश्यकता नहीं है. न्यायालय ने कहा कि पत्राचार के माध्यम से पढ़ाई में नियमित क्लास लेने की आवश्यकता नहीं होती, लिहाजा इसके लिए विभाग को सिर्फ सूचित करना ही पर्याप्त है.
यह आदेश न्यायमूर्ति चन्द्रधारी सिंह की एकल सदस्यीय पीठ ने आशीष कुमार मिश्रा और एक अन्य की याचिका पर दिया. याचियों का कहना था कि पावर कॉर्पोरेशन में 8.33 प्रतिशत कोटा के तहत जूनियर इंजीनियरों की असिस्टेंट इंजीनियर के पद पर प्रोन्नति होनी है. इसके लिए सम्बंधित जूनियर इंजीनियर के पास एएमआईई डिग्री का होना आवश्यक है. याचियों का कहना था कि उन्होंने एएमआईई डिग्री प्राप्त की है औ कोर्स में दाखिला लेने से पहले विभाग की अनुमति भी प्राप्त की थी. जबकि वरीयता सूची में उनसे ऊपर रखे गए दूसरे जूनियर इंजीनियरों ने एएमआईई डिग्री तो जरूर प्राप्त की हुई है, लेकिन उक्त कोर्स में दाखिला के लिए विभाग की अनुमति प्राप्त नहीं की थी. याचियों की मांग थी कि वर्तमान वरीयता सूची को निरस्त करते हुए, नई वरीयता सूची तैयार करने के आदेश पारित किये जाएं. वहीं याचिका का विरोध करते हुए विभाग की ओर से 19 दिसम्बर 1985 का एक सर्कुलर पेश किया गया, जिसके अनुसार पत्राचार के माध्यम से किसी कोर्स में दाखिला के लिए विभाग की अनुमति की आवश्यकता नहीं है.
न्यायालय ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के पश्चात अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि यह सही है कि पत्राचार के माध्यम से किसी कोर्स को करने के लिए नियमित क्लास अटेंड करने की आवश्यकता नहीं है. इसलिए 19 दिसम्बर 1985 का उक्त सर्कुलर सही ठहराया जाता है. न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि प्रोन्नति के लिए बनाई गई लिस्ट में कुछ भी अविधिपूर्ण नहीं है.