लखनऊ: कुकरैल स्थित घड़ियाल प्रजनन केंद्र आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यहां प्रदेश ही नहीं बल्कि देश-विदेश से भी सैलानी घूमने आते हैं. केंद्र के अधिकारियों के अनुसार यहां छोटे बड़े घड़ियालों की संख्या करीब 800 के करीब है. यहां घड़ियालों के छोटे-छोटे बच्चों की देखरेख के लिए कर्मचारियों की तैनाती की गई है. लुप्तप्राय वन्य जीवों में शामिल घड़ियालों की संख्या यहां बढ़ती जा रही है. जिसे देखते हुए, वन विभाग इन्हें अन्य जगहों पर शिफ्ट करने की तैयारी कर रहा है.
विदेश में भी यहां के घड़ियाल की मांग: लखनऊ के कुकरैल स्थित घड़ियाल प्रजनन केंद्र में घड़ियालों की संख्या बढ़ती जा रही है. इस वजह से देश या विदेश में भी कहीं के चिड़ियाघर की डिमांड आती है, तो यहां से घड़ियाल को शिफ्ट किया जाता है. जून माह में यहां करीब 110 घड़ियाल पैदा हुए थे. जबकि साल 2022 में लगभग 90 घड़ियाल पैदा हुए थे. वहीं, साल 2021 में तो लगभग 500 घड़ियाल पैदा हुए थे. जो अपने आप में एक रिकार्ड है.
घड़ियाल पुनर्वास प्रजनन केंद्र की स्थापनाः लखनऊ के कुकरैल स्थित घड़ियाल प्रजनन केंद्र की स्थापना 1975 में हुई थी. फॉरेस्ट इंचार्ज सुशील श्रीवास्तव के मुताबिक वर्ष 1975 में आईयूसीएन ने एक अध्ययन में पाया कि उत्तर प्रदेश की नदियों में सिर्फ 300 घड़ियाल शेष बचे हैं. इसके बाद घड़ियालों की गंभीर स्थिती को देखते हुए उन्हें बचाने के लिए उत्तर प्रदेश वन विभाग ने भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के सहयोग से घड़ियाल पुनर्वास प्रजनन केंद्र की स्थापना की. यह घड़ियाल प्रजनन केंद्र 10 हेक्टर में बना हुआ है. प्रदेश की नदियों से लगभग समाप्त हो चुके घड़ियालों को पुनर्स्थापित करने में इस केंद्र ने अपनी अहम भूमिका निभाई है. जिसके बाद आज गंगा, गिरवा, चंबल, घाघरा आदि नदियों में घड़ियालों की संख्या में वृद्धि हुई है. शुरुआत में घड़ियालों के अडों को रामगंगा, सुहेली, गिरवा एवं चंबल नदियों के किनारों से लाकर कुकरैल में हैचिंग कराया जाता था.
इन राज्यों को दिए गए घड़ियालः कुकरैल स्थित घड़ियाल प्रजनन केंद्र में वर्ष 1988 से मदर स्टाक से अंडे प्राप्त कर हैचिंग कराया जा रहा है. इन अंडों से प्राप्त बच्चों की देखभाल के लिए कर्मचारियों की तैनाती की गई है. फॉरेस्ट इंचार्ज सुशील श्रीवास्त के अनुसार 3 वर्षों में घड़ियाल के बच्चे 1.20 मीटर से 1.50 मीटर तक के हो जाते हैं. इसके बाद उन्हें प्रदेश की नदियों में छोड़ दिया जाता है. इसके साथ ही मांग के अनुसार उड़ीसा, दिल्ली, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, हरियाणा, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों को भी घड़ियाल दिया गया.
कुकरैल के घड़ियालों की विदेश में भी मांगः फॉरेस्ट इंचार्ज ने बताया कि यहां के घड़ियालों की विदेशों में भी मांग है. डिमांड पर यूएसए, पाकिस्तान और जापान देशों को घड़ियालों की आपूर्ति की गई है. यहां सबसे महत्वपूर्ण संरचनाओं में इन्क्यूबेशन सेंटर, हैचलिंग एवं इर्यलिंग पाण्ड, साल टर्टल पाण्ड, लोटस पाण्ड भी निर्मित किये गये हैं. आगन्तुकों के लिए वन्य जीव संग्रहालय भी स्थापित किया गया है. जन सामान्य लोगों के लिए पेयजल व्यवस्था एवं जन सुविधा केंद्र भी उपलब्ध है.
घड़ियालों का आहारः फॉरेस्ट इंचार्ज ने बताया कि घड़ियाल मुख्य तौर पर मछली खाने वाला सरीसृप है. जो गहरे एवं बहते हुए पानी में रहना पसंद करता है. शरद ऋतु में यह धूप में निकलते हैं. इस दौरान घड़ियाल नदियों के किनारे रेत पर दिखाई देते हैं. घड़ियाल का आगे वाला हिस्सा पतला एंव लंबा होता है. नर घड़ियाल के यूथन के ऊपर घड़े के आकार की आकृति होती है. जबकि मादा घड़ियाल में ऐसी आकृति नहीं होती है. फॉरेस्ट इंचार्ज ने बताया कि वर्ष 1975 में कतर्नियाघाट के गिरवा नदी से अंडे लाकर इनके कृत्रिम प्रजनन का कार्य केंद्र प्रारम्भ किया गया था. वर्तमान समय में कुकरैल स्थित घड़ियाल प्रजनन केंद्र में घड़ियाल के साथ-साथ मगरमच्छ और कछुओं का भी पोषण किया जा रहा है.
देश के घड़ियाल पुनर्वास केंद्रः फॉरेस्ट इंचार्ज ने बताया कि उत्तर प्रदेश के अलावा देश के अन्य राज्यों में भी घड़ियाल पुनर्वास का कार्य किया जा रहा है. जैसे- 1- नन्दनकानन बायोलोजिकल उद्यान, उड़ीसा. 2- मद्रास क्रोकोडाइल बैंक, तमिलनाडु. 3- घड़ियाल पुनर्वास केंद्र, टिकरापारा उड़ीसा. 4- देवरी घड़ियाल पुनर्वास केंद्र, मुरैना, मध्य प्रदेश में हो रहा है.
इन नदिया में पाये जाते हैं घड़ियालः उत्तर प्रदेश में घड़ियाल गंगा एवं उसकी सहायक नदियों, चंबल और घाघरा में पाया जाता है. वर्ष 1970 में देश में घड़ियालों की संख्या 300 थी. वहीं, आईयूसीएन की रेड डाटा बुक में इसे अति संकटग्रस्त प्रजाति के रूप में सूचीबद्ध किया गया था. इसके बाद 1975 घड़ियाल संरक्षण पुनर्वास केंद्र की शुरुआत हुई. जिसके बाद घड़ियालों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है.
हैचरी के रोचक तथ्यः
- अप्रैल के द्वितीय सप्ताह तक अंडे को लाकर हैचरी में बालू के अंदर रख दिया जाता है. इसके बाद अंडो के एकत्रीकरण की तिथि एवं अंडे के स्थल का नाम अंडो पर लिख दिया जाता है.
- इसके बाद हैचरी का तापमान 27 से 34 डिग्री तक बनाए रखा जाता है. इसके लिए स्वायल थर्मामीटर एवं विद्युत उपकरणों का भी प्रयोग किया जाता है.
- इस दौरान हैचिंग लगभग 70 दिनों के बाद होती है. हैचिंग के समय घड़ियालों के बच्चे का वजन 90-110 ग्राम एवं लम्बाई 35-37 से. मी. तक होती है.
- हैचिंग के समय शावकों की धीमी-धीमी आवाज बालू के पर्तो के नीचे से आने लगती है. जिससे हैचिंग होने का पता चल जाता है. इसके बाद घड़ियालों के बच्चे को सावधानी पूर्वक हैचरी से बाहर निकालकर स्वच्छ जल वाले हैचलिंग पाण्ड में डाल दिया जाता है.
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