लखनऊ: रबी की फसल की बुवाई का समय चल रहा है. ऐसे में किसानों को फसल की सिंचाई के लिए सबसे अधिक पानी की आवश्यकता होती है. क्या किसानों को समय पर पानी मिल पा रहा है? क्या सरकारी ट्यूबवेल पर पर्याप्त विद्युत आपूर्ति हो रही है? ईटीवी भारत की टीम यह सच्चाई जानने राजधानी के ग्रामीण क्षेत्र पहुंची. देखिए ये खास रिपोर्ट-
फसल की बुवाई के समय पानी की समस्या
देश के अन्नदाता कहे जाने वाले किसान एक तरफ जहां आंदोलन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर देश का पेट भरने के लिए अन्न का प्रबंध भी कर रहे हैं. इस वक्त रबी की फसल की बुवाई का समय चल रहा है. क्या किसानों को समय पर सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो पा रहा है या नहीं? क्या राजकीय ट्यूबवेल पर विद्युत आपूर्ति सुनिश्चित की गई है या नहीं? इन सभी सवालों को जानने के लिए ईटीवी भारत की टीम निगोहा क्षेत्र पहुंची और किसानों से बातचीत की.
किसानों ने गिनाईं समस्याएं
किसानों ने बताया कि 200 से ज्यादा बीघे के लिए मात्र इकलौता राजकीय ट्यूबवेल लगा हुआ है. इससे भी किसानों को सिंचाई के लिए पानी समय पर उपलब्ध नहीं हो पाता है. वहीं, अगर निजी ट्यूबवेल की बात की जाए तो मीटर लगने के बाद से किसानों को काफी ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि निजी ट्यूबवेल में मीटर लगने के कारण बिल अधिक आ रहा है, जिससे निजी ट्यूबवेल के मालिक किसानों को पानी देने से कतराते हैं.
लगानी पड़ती है लंबी लाइन
किसानों ने बताया कि एकमात्र सरकारी नलकूप होने की वजह से किसानों को सिंचाई के लिए नंबर लगाना पड़ता है. वहीं अगर विद्युत की आपूर्ति ठप हो जाती है, तो वह किसान कई दिनों तक अपनी फसल को सीच नहीं पाता.
निजी नलकूपों में मीटर लगने के बाद हो रही परेशानी
किसानों ने बताया कि निजी नलकूपों में जब से मीटर लगे हैं, तब से उन्हें काफी ज्यादा समस्या का सामना करना पड़ रहा है. पहली बार 80 रुपये प्रति घंटे के हिसाब से अपने खेत की सिंचाई कर लेते थे, लेकिन जब से मीटर लगा है, वह रकम बढ़कर 200 से 250 रुपये हो गई है. इस बड़ी रकम का बोझ किसान नहीं उठा पा रहे हैं और न ही फसलों की समय पर सिंचाई ही कर पा रहे.
भले ही सरकार एक तरफ किसानों को सहूलियत देने की बात कर रही हो, वहीं दूसरी तरफ रबी की फसल की बुवाई के समय किसानों को सिंचाई के लिए पानी समय पर उपलब्ध नहीं हो पा रहा है. इससे किसान परेशान है. किसानों का कहना है कि निजी नलकूपों पर लगाए गए मीटर की वजह से बिजली के रेट इतने बढ़ गए हैं कि सिंचाई करने के लिए अधिक खर्च देना पड़ता है, जो हर किसान वहन नहीं कर पा रहा.