लखनऊः लखनऊ विकास प्राधिकरण में मार्च में कई अलमारियों ताला सिर्फ इसलिये तोड़ा गया था, क्योंकि उसमें वर्षों से दफन कागजी फाइलों में क्या छुपा हुआ है, ये किसी को पता नहीं था. यहां तक कि अलमारियों की चाबियां भी किसी के पास नहीं थी. अलमारियों को तोड़ने के बाद भी अभी तक फाइलों की सूची को सार्वजनिक नहीं किया गया.
एलडीए की इस कार्रवाई से वो लोग बेहद खुश हुए थे, जिन्हें कार्यालय से एक ही जवाब मिलता है कि जब फाइल मिल जाएगी तब आना. मार्च में लखनऊ विकास प्राधिकरण ने अलमारियों को तोड़ने का फैसला लिया और कई अधिकारियों की मौजूदगी में दर्जनों अलमारियों के ताले तुड़वाए गए. अलमारियों में सैकड़ों फाइलें मिली थीं, जिनकी सूची बनाई गई थी. इन फाइलों की सूची सार्वजनिक भी किया जाना था. क्यों इन सभी फाइलों में अलग-अलग योजनाओं के आवंटन की प्रक्रिया के दस्तावेज थे. जिसके न मिलने की वजह से आवंटी काफी वक्त से परेशान है. लेकिन एक महीने के बाद भी फाइलों को सार्वजनिक नहीं किया गया.
प्राधिकरण के इन विभागों की मिली थी फाइलें
एलडीए की अलमारियों में मिलीं अधिकांश फाइलें उनकी थी, जो दशकों से प्राधिकरण के चक्कर लगा रहे हैं. इन फाइलों में अलीगंज, प्रियदर्शनी नगर, शारदा नगर, कानपुर रोड, सीतापुर रोड, इंप्रूवमेंट ट्रस्ट, नजूल के कागज, विपुल खंड, गोमती नगर विस्तार की दर्जनों फाइलें मिली थी.
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सेवानिवृत्ति होने पर भी चाबी अपने पास रखी थी
लखनऊ विकास प्राधिकरण में कई लिपिक रिटायर होने के बावजूद अलमारी की चाभी अपने पास ही रखे थे. ऐसे ही एक अलमारी स्वर्गीय बाबू नाथ ओझा की अलमारी थी. जिसे तोड़ा गया तो उसमें प्रिय दर्शनी नगर योजना और गोमती नगर योजना की फाइलें मिली थी. इसी तरह बाबू काशी नाथ की अलमारी तोड़ी गयी तो उसमे भी कई अलग महत्वपूर्ण योजनाओ की फाइलें मिली. एलडीए उपाध्यक्ष अभिषेक प्रकाश के आदेश बाद भी अलमारी से बरामद फाइलों की सूची जारी नहीं की गई.