लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने पत्नी और चार मासूम बेटियों की हत्या करने वाले रामानंद की मृत्यु की सजा को बरकरार रखा है. कोर्ट ने इसे दुर्लभतम करार दिया है और अपीलकर्ता को मृत्यु की सजा के योग्य करार दिया है.
इस मामले की एफआईआर अपीलकर्ता के बहनोई शम्भू रैदास ने लखीमपुर जिले के धौरहरा थाने पर 22 जनवरी 2010 को लिखाई थी. सूचना मिलने पर जब शम्भू रैदास घटनास्थल पर पहुंचा तो देखा कि अपीलकर्ता का घर जल रहा था. उसने आग बुझाने का प्रयास किया जबकि अपीलकर्ता जलते घर के आग को तापने लगा. पुलिस ने जांच के दौरान अपीलकर्ता की निशानदेही पर घटना में प्रयुक्त बांका बरामद किया है. जांच में पाया गया कि अपीलकर्ता ने पत्नी व चार बेटियों जिनकी उम्र सात साल, पांच साल, तीन साल व डेढ माह थी. उन्हें बांके से काटने के बाद घर में आग लगा दी। उसके खिलाफ मुकदमा चला व 4 नवंबर 2016 को सत्र अदालत ने उसे दोषी करार देते हुए फांसी की सजा सुनाई.
मामले पर निर्णय न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा व न्यायमूर्ति राजीव सिंह की खंडपीठ ने रामानंद की अपील व मृत्यु की सजा की पुष्टि के लिए भेजे गए संदर्भ पर एक साथ सुनवाई करते हुए पारित किया. अपील का शासकीय अधिवक्ता विमल श्रीवास्तव ने विरोध किया. वहीं अपीलार्थी की ओर से न्यायमित्र राजेश कुमार द्विवेवी ने बहस की. न्यायालय ने दोनों पक्षों की बहस सुनने के पश्चात अपने निर्णय में कहा कि अपीलार्थी का आचरण बहुत ही संगीन व घृणित है. उसने अपनी पत्नी की इसलिए हत्या कर दी कि वह उसके दूसरी शादी करने का विरोध कर रही थी, जबकि चार मासूम बच्चियों को इसलिए मार दिया कि उसे उनकी शिक्षा व विवाह आदि पर खर्च न करना पड़े.
न्यायालय ने कहा कि उसकी मंशा इसी से जाहिर होती है कि घटना से एक सप्ताह पहले उसने अपने दस वर्षीय बेटे को दूसरी जगह भेज दिया था. न्यायालय ने अभियोजन पक्ष के गवाहों की इस बात को भी उद्धत किया कि अपीलकर्ता के सगे भाई की हत्या हुई थी व मुआवजे के तौर पर भाई की बेटी को चार-पांच लाख रुपये मिले थे. बाद में अपीलार्थी ने मुआवजे की रकम भाई की बेटी से ले ली व उसे पत्नी की तरह रखने लगा. बाद में उसकी भतीजी ने भी आत्महत्या कर ली. कहा गया कि अपीलकर्ता, पत्नी व बेटियों की हत्या किसी और द्वारा किया जाना दिखाकर सरकार से मुआवजा पाना चाहता था.