ETV Bharat / state

अनुसूचित जाति का बताकर मुस्लिम महिला ने 21 साल तक की नौकरी, HC ने कहा नियुक्ति ही थी अवैध

खुद को अनुसूचित जाति का बताकर मुस्लिम महिला ने 21 साल तक नौकरी की. इस मामले में हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने कहा कि ये नियुक्ति शुरू से ही अवैध थी.

हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ
हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ
author img

By

Published : Dec 17, 2021, 9:18 PM IST

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के सामने एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें एक मुस्लिम महिला 21 साल से ज्यादा समय तक खुद को एससी वर्ग का बताकर न सिर्फ नौकरी करती रही, बल्कि प्रधानाचार्य के पद पर प्रोन्नति भी प्राप्त कर लिया. मामला संज्ञान में आने के बाद उसे बर्खास्त किया गया है. वहीं बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दने वाली उसकी याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.

ये आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने मुन्नी रानी की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया है. याचिका में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, हरदोई के 2 जुलाई 2021 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें याची की सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया था. साथ ही उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया था. मामले की सुनवाई करते हुए, कोर्ट ने याची के सर्विस रिकॉर्ड को भी तलब किया था.

कोर्ट ने पाया कि याची को 30 नवम्बर 1999 को सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति मिली थी. याची ने खुद को अनुसूचित जाति से सम्बंधित बताते हुए, एक जाति प्रमाण पत्र भी लगाया था. साल 2004 में उसे प्रधानाचार्या के पद पर प्रोन्नति भी मिल गई. राजीव खरे नाम के एक व्यक्ति ने जिलाधिकारी, हरदोई को शिकायत भेज कर बताया कि याची वास्तव में मुस्लिम समुदाय से है और उसके सर्विस बुक में भी उसका मजहब इस्लाम लिखा हुआ है.

इसे भी पढ़ें- चालीस साल बाद हाईकोर्ट ने आरोपी को घोषित किया किशोर, रिहा करने का आदेश

मामले की जांच शुरू हुई, जिसमें पाया गया कि जाति प्रमाण पत्र 5 नवम्बर 1995 को तहसीलदार, सदर, लखनऊ द्वारा जारी किया गया है. वहीं याची के आवेदन पत्र में उसकी जाति ‘अंसारी’ लिखी हुई पाई गई. बावजूद इसके कूटरचित जाति प्रमाण पत्र के आधार पर याची ने नौकरी पाई है.

लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के सामने एक ऐसा मामला सामने आया है, जिसमें एक मुस्लिम महिला 21 साल से ज्यादा समय तक खुद को एससी वर्ग का बताकर न सिर्फ नौकरी करती रही, बल्कि प्रधानाचार्य के पद पर प्रोन्नति भी प्राप्त कर लिया. मामला संज्ञान में आने के बाद उसे बर्खास्त किया गया है. वहीं बर्खास्तगी आदेश को चुनौती दने वाली उसकी याचिका को हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है.

ये आदेश जस्टिस दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने मुन्नी रानी की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया है. याचिका में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, हरदोई के 2 जुलाई 2021 के उस आदेश को चुनौती दी गई थी जिसमें याची की सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति को निरस्त कर दिया गया था. साथ ही उसकी सेवाओं को समाप्त कर दिया गया था. मामले की सुनवाई करते हुए, कोर्ट ने याची के सर्विस रिकॉर्ड को भी तलब किया था.

कोर्ट ने पाया कि याची को 30 नवम्बर 1999 को सहायक अध्यापिका के पद पर नियुक्ति मिली थी. याची ने खुद को अनुसूचित जाति से सम्बंधित बताते हुए, एक जाति प्रमाण पत्र भी लगाया था. साल 2004 में उसे प्रधानाचार्या के पद पर प्रोन्नति भी मिल गई. राजीव खरे नाम के एक व्यक्ति ने जिलाधिकारी, हरदोई को शिकायत भेज कर बताया कि याची वास्तव में मुस्लिम समुदाय से है और उसके सर्विस बुक में भी उसका मजहब इस्लाम लिखा हुआ है.

इसे भी पढ़ें- चालीस साल बाद हाईकोर्ट ने आरोपी को घोषित किया किशोर, रिहा करने का आदेश

मामले की जांच शुरू हुई, जिसमें पाया गया कि जाति प्रमाण पत्र 5 नवम्बर 1995 को तहसीलदार, सदर, लखनऊ द्वारा जारी किया गया है. वहीं याची के आवेदन पत्र में उसकी जाति ‘अंसारी’ लिखी हुई पाई गई. बावजूद इसके कूटरचित जाति प्रमाण पत्र के आधार पर याची ने नौकरी पाई है.

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.