लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि वैध वक्फ के लिए वक्फ सम्पत्ति का वास्तविक समर्पण और उसकी सुपुर्दगी होनी चाहिए. न्यायालय ने कहा कि जहां वाकिफ स्वयं प्रथम मुतवल्ली हो, उस मामले में वास्तविक समर्पण को स्थापित करना मुश्किल होता है, लिहाजा उसकी आगामी कार्यवाही इस तथ्य को निर्णित करने के लिए प्रासंगिक हो जाती है कि वक्फ के गठन के लिए वास्तविक समर्पण था अथवा नहीं.
यह निर्णय न्यायमूर्ति विवेक चौधरी की एकल पीठ ने आजाद अहमद खान की याचिका पर पारित किया. न्यायालय ने अपने निर्णय में कहा कि वक्फ का गठन कर वाकिफ वक्फ सम्पत्ति को ईश्वर को समर्पित कर देता है, लेकिन यह समर्पण वास्तविक होना चाहिए.
क्या था मामला : याची ने 31 जनवरी 1989 के असेसमेंट आदेश व इंकम टैक्स अपीलीय ट्रिब्यूनल के 30 नवम्बर 1999 के आदेश को चुनौती दी थी, जिसमें उसे सम्पदा शुल्क अधिनियम, 1953 के तहत सम्पदा शुल्क से छूट से इंकार कर दिया गया था. याची की दलील थी कि प्रश्नगत सम्पत्ति वक्फ सम्पत्ति होने के नाते उस पर सम्पदा शुल्क नहीं लगाया जा सकता. याचिका का आयकर विभाग की ओर से विरोध किया गया. न्यायालय ने दोनों पक्षों को सुनने के पश्चात पारित अपने विस्तृत निर्णय में कहा कि मुसलमान वक्फ वैधीकरण अधिनियम, 1913 के तहत याची के चाचा गुलाम अहमद खान ने वक्फ-अलल-औलाद का गठन किया था जिसके तहत वाकिफ के परिवार, बच्चों व वंशजों के भरण-पोषण के लिए वक्फ का गठन किया जा सकता है, लेकिन उक्त वक्फ में हसीना खातून को भी उपभोग का अधिकार मिला हुआ था, जबकि उनका वाकिफ से कोई सम्बंध नहीं दर्शाया गया, यह वक्फ-अलल-औलाद के सिद्धांतों के विपरीत है. न्यायालय ने यह भी पाया कि वाकिफ ने जिस जनरल इंजीनियरिंग वर्क्स को ईश्वर को समर्पित किया था, उसे वह अपनी सम्पत्ति के तौर पर अपने आयकर रिटर्न में दिखाता रहा, यहां तक कि उसने बिना समुचित अनुमति लिए अपने कर्ज को चुकाने के लिए उक्त वक्फ सम्पत्ति का कुछ हिस्सा बेंच दिया. इन टिप्पणियों के साथ न्यायालय ने वर्ष 2000 से लंबित उक्त याचिका को खारिज कर दिया.