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...तो इस वजह से बिजली विभाग का घाटा पहुंचा 90 हजार करोड़

बिजली विभाग का घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. तकरीबन 59 साल पहले जब यह विभाग बना तो जिम्मेदारों को इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि विभाग का घाटा एक या दो करोड़ नहीं, बल्कि कई हजार करोड़ पहुंच जाएगा. आज यह विभाग 90 हजार करोड़ के घाटे में है.

बिजली विभाग.
बिजली विभाग.
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Published : Jan 6, 2021, 4:26 AM IST

लखनऊ: बिजली विभाग का घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. तकरीबन 59 साल पहले जब यह विभाग बना तो जिम्मेदारों को इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि विभाग का घाटा एक या दो करोड़ नहीं, बल्कि कई हजार करोड़ पहुंच जाएगा. आज यह विभाग 90 हजार करोड़ के घाटे में है. आखिर विभाग का घाटा क्यों बढ़ता जा रहा है? इसके पीछे वजह क्या है? जब जानकारों ने इसका अध्ययन किया तो सामने आया कि नीचे से लेकर ऊपर तक अधिकारियों की कोई जवाबदेही तय न होना ही घाटे की बड़ी वजह बन रहा है. हालांकि इससे भी अभी तक विभाग सबक नहीं ले रहा है, जिससे घाटा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है.


उपभोक्ताओं का भी 19 हजार करोड़ बकाया

साल 1959 में राज्य विद्युत परिषद यानी बिजली विभाग का गठन हुआ था. आज लगभग 60 वर्ष होने को हैं. जिसमें वर्ष 2020 से विभाग की बागडोर पूरी तरह नौकरशाहों के हाथ में रही. विभाग की आर्थिक स्थिति क्या है यह किसी से छिपी नहीं है. आज बिजली कम्पनियां लगभग 90 हजार करोड़ के घाटे में हैं. ऊपर से प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का भी लगभग 19 हजार करोड़ बिजली कम्पनियों पर निकल रहा है. इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि प्रबंधन के खिलाफ कभी भी सरकार की तरफ से कठोर कार्रवाई की ही नहीं गई. इस विभाग में भ्रष्टाचार पर कभी भी अभियान नहीं चला. जब तक सरकार प्रबंधन से लेकर नीचे तक जबाबदेही और कठोर कार्रवाई नहीं करती उपभोक्ताओं को सही मायने में कोई लाभ मिलना मुश्किल है.

निजीकरण देगा भ्रष्टाचार को बढ़ावा

प्रबंधन को सिर्फ यही लग रहा है कि अगर बिजली कम्पनियां पटरी पर नहीं आ रहीं हैं तो उसका निजीकरण कर दिया जाए. बिजली दरों में बढ़ोतरी करा दी जाए. जानकार मानते हैं कि अगर विभाग का निजीकरण किया गया, तो इसका सीधा सा मतलब एकमुश्त भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना होगा.

जानकारों ने दी सरकार को सलाह

बिजली विभाग के घाटे की भरपाई के लिए जानकारों ने सरकार को सलाह दी है. इसमें बिजली कम्पनियों के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, निदेशक और फील्ड में तैनात सभी बिजली अभियंताओं की जबाबदेही तय करके उनके काम का पूरा विवरण वेबसाइट पर डाला जाए. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और बिजली कम्पनियां स्वयं आत्मनिर्भर होंगी.


इतने मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा बताते हैं कि आज आलम यह हो गया कि बिजली विभाग में किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में कोई बड़ी कार्रवाई न तो प्रबंधन पर हुई और न ही दोषी अभियंताओं पर. चाहे सौभाग्य में घटिया कार्य किए जाने का मामला हो, बिलिंग का मामला हो, डीएचफल का मामला हो, स्मार्ट मीटर का मामला हो, लाइन हनियां कम न होने का मामला हो, महंगी बिजली खरीद का मामला हो, टोरेंट पावर आगरा व नोएडा पावर कंपनी की जांच का मामला हो, अनावश्यक सामग्री खरीद का मामला हो, अभियंताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार पर जांच का मामला हो सबमें कार्रवाई शून्य है. उन्होंने बताया कि समय से एसओपी न लागू करने का मामला हो या फिर 70 लाख से ऊपर उपभोक्ताओं को उनकी जमा सिक्योरटी पर ब्याज न दिए जाने का मामला हो किसी पर भी नजीर रूपी कार्रवाई न होना बड़ा सवाल पैदा करती है. उनका कहना है कि अभी भी समय है. सरकार उचित कदम उठाए तभी बिजली विभाग को बचाया जा सकता है.

लखनऊ: बिजली विभाग का घाटा लगातार बढ़ता ही जा रहा है. तकरीबन 59 साल पहले जब यह विभाग बना तो जिम्मेदारों को इस बात का एहसास भी नहीं होगा कि विभाग का घाटा एक या दो करोड़ नहीं, बल्कि कई हजार करोड़ पहुंच जाएगा. आज यह विभाग 90 हजार करोड़ के घाटे में है. आखिर विभाग का घाटा क्यों बढ़ता जा रहा है? इसके पीछे वजह क्या है? जब जानकारों ने इसका अध्ययन किया तो सामने आया कि नीचे से लेकर ऊपर तक अधिकारियों की कोई जवाबदेही तय न होना ही घाटे की बड़ी वजह बन रहा है. हालांकि इससे भी अभी तक विभाग सबक नहीं ले रहा है, जिससे घाटा कम होने के बजाय बढ़ता ही जा रहा है.


उपभोक्ताओं का भी 19 हजार करोड़ बकाया

साल 1959 में राज्य विद्युत परिषद यानी बिजली विभाग का गठन हुआ था. आज लगभग 60 वर्ष होने को हैं. जिसमें वर्ष 2020 से विभाग की बागडोर पूरी तरह नौकरशाहों के हाथ में रही. विभाग की आर्थिक स्थिति क्या है यह किसी से छिपी नहीं है. आज बिजली कम्पनियां लगभग 90 हजार करोड़ के घाटे में हैं. ऊपर से प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का भी लगभग 19 हजार करोड़ बिजली कम्पनियों पर निकल रहा है. इसका एक मुख्य कारण यह भी है कि प्रबंधन के खिलाफ कभी भी सरकार की तरफ से कठोर कार्रवाई की ही नहीं गई. इस विभाग में भ्रष्टाचार पर कभी भी अभियान नहीं चला. जब तक सरकार प्रबंधन से लेकर नीचे तक जबाबदेही और कठोर कार्रवाई नहीं करती उपभोक्ताओं को सही मायने में कोई लाभ मिलना मुश्किल है.

निजीकरण देगा भ्रष्टाचार को बढ़ावा

प्रबंधन को सिर्फ यही लग रहा है कि अगर बिजली कम्पनियां पटरी पर नहीं आ रहीं हैं तो उसका निजीकरण कर दिया जाए. बिजली दरों में बढ़ोतरी करा दी जाए. जानकार मानते हैं कि अगर विभाग का निजीकरण किया गया, तो इसका सीधा सा मतलब एकमुश्त भ्रष्टाचार को बढ़ावा देना होगा.

जानकारों ने दी सरकार को सलाह

बिजली विभाग के घाटे की भरपाई के लिए जानकारों ने सरकार को सलाह दी है. इसमें बिजली कम्पनियों के चेयरमैन, प्रबंध निदेशक, निदेशक और फील्ड में तैनात सभी बिजली अभियंताओं की जबाबदेही तय करके उनके काम का पूरा विवरण वेबसाइट पर डाला जाए. इससे पारदर्शिता बढ़ेगी और बिजली कम्पनियां स्वयं आत्मनिर्भर होंगी.


इतने मामलों पर कोई कार्रवाई नहीं

उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा बताते हैं कि आज आलम यह हो गया कि बिजली विभाग में किसी भी भ्रष्टाचार के मामले में कोई बड़ी कार्रवाई न तो प्रबंधन पर हुई और न ही दोषी अभियंताओं पर. चाहे सौभाग्य में घटिया कार्य किए जाने का मामला हो, बिलिंग का मामला हो, डीएचफल का मामला हो, स्मार्ट मीटर का मामला हो, लाइन हनियां कम न होने का मामला हो, महंगी बिजली खरीद का मामला हो, टोरेंट पावर आगरा व नोएडा पावर कंपनी की जांच का मामला हो, अनावश्यक सामग्री खरीद का मामला हो, अभियंताओं के खिलाफ भ्रष्टाचार पर जांच का मामला हो सबमें कार्रवाई शून्य है. उन्होंने बताया कि समय से एसओपी न लागू करने का मामला हो या फिर 70 लाख से ऊपर उपभोक्ताओं को उनकी जमा सिक्योरटी पर ब्याज न दिए जाने का मामला हो किसी पर भी नजीर रूपी कार्रवाई न होना बड़ा सवाल पैदा करती है. उनका कहना है कि अभी भी समय है. सरकार उचित कदम उठाए तभी बिजली विभाग को बचाया जा सकता है.

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