लखनऊ: प्रदेश में लोकसभा की दो सीटों आजमगढ़ और रामपुर में उप चुनाव हो रहा है. यह सीटें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और पार्टी के वरिष्ठ नेता मोहम्मद आजम खान के इस्तीफा देने से खाली हुई हैं. दोनों ही नेताओं ने हाल ही में हुए विधान सभा चुनावों में किस्मत आजमाने का फैसला किया था, जिसमें दोनों ही सफल रहे. यदि रामपुर सीट की बात करें तो यहां आजम खान का दबदबा माना जाता है. हालांकि इस उप चुनाव में आजम खान के लिए अपने गढ़ में ही अपनी साख बचा पाना आसान नहीं दिख रहा है.
आजम खान पर परिवारवाद के आरोप लगते रहे हैं. उनसे जुड़े कुछ करीबी नेता, जो राजनीति में किस्मत आजमाना चाहते थे, उनके बजाय आजम ने अपने परिवार को तरजीह दी. हालिया विधानसभा चुनाव में भी आजम के बेटे अब्दुल्ला आजम चुनाव मैदान में थे और उन्होंने जीत हासिल की है. स्वाभाविक है कि राजनीति में मुकाम हासिल करने की तमन्ना लेकर आने वाले वह लोग, जिन्होंने आजम के प्रति निष्ठा में कई दशक लगा दिए, आगे न बढ़ पाने के कारण निराश ही होंगे. ऐसे कुछ नेताओं ने हाल ही में आजम का साथ छोड़ देना ही मुनासिब समझा है. आजम के साथ लगभग पैंतीस साल से जुड़े जसवीर सिंह 'जस्सा' ने रविवार को उनका साथ छोड़ दिया. वहीं एक और समर्थक बिट्टू प्रधान, ने जो लंबे अर्से से आजम से जुड़े थे, ने सपा छोड़ दी. यही नहीं इनसे जुड़े समाम कार्यकर्ताओं से सपा से किनारा किया है.
मोहम्मद आजम खान जानते हैं कि उप चुनाव जीतने वाले का कार्यकाल डेढ़-दो साल का ही होगा. ऐसे में अपने करीबी को टिकट दिलाने से कई समीकरण सध जाते हैं. एक तो वह परिवारवाद के आरोपों से मुक्त हो जाएंगे. दूसरी बात यदि सपा प्रत्याशी आसिम राजा चुनाव जीत भी जाएंगे, तो उनके पास कोई बड़ा कार्यकाल नहीं होगा. तीसरी बात यह कि यदि राजा चुनाव हारते हैं, तो 2024 के लोकसभा चुनावों में परिवार के किसी व्यक्ति को टिकट दिला पाना आसान हो जाएगा. क्योंकि यह साफ संदेश जाएगा कि आजम परिवार के अलावा कोई भी आसानी से यहां से चुनाव नहीं जीत सकता. इसीलिए उन्होंने एक ही तीर से कई निशाने चले हैं. वहीं, कुछ लोग आजम खान के प्रत्याशी को कमजोर मान रहे हैं. यदि परिवार से कोई होता तो मुकाबला कड़ा हो सकता था.
सपा प्रत्याशी आसिम राजा की छवि पार्टी में ही बहुत अच्छी नहीं है. स्थानीय लोगों का कहना है कि उन्होंने पार्टी में ही बनाकर नहीं रखी है. इसलिए पार्टी के भीतर भी कुछ लोगों में नाराजगी है. राजा आजम खान के वफादार जरूर हैं, लेकिन उन्होंने कभी इस परिवार से बाहर बड़े स्तर पर लोगों से राजनीतिक संपर्क रखना जरूरी नहीं समझा. टिकट मिलने के बाद अब वह लोगों के बीच जा रहे हैं. स्वाभाविक है कि लोगों में एकाएक स्वीकार्यता बना पाना कठिन होता है.
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जातीय समीकरणों की बात करें तो इस सीट पर मुस्लिमों की तादात अच्छी है. वहीं, आसिम राजा मुस्लिमों के 'शम्शी' समुदाय से आते हैं. रामपुर लोक सभा क्षेत्र में इस जाति के महज पंद्रह हजार मतदाता हैं. वहीं, भाजपा ने घनश्याम सिंह लोधी को अपना प्रत्याशी बनाया है. संसदीय क्षेत्र में इस बिरादरी के सवा लाख से ज्यादा मतदाता हैं. इस लिहाज से भाजपा प्रत्याशी भी कहीं से कमजोर दिखाई नहीं देता है. इस उप चुनाव में बसपा और कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं. 2014 के लोक सभा चुनाव में भाजपा के नेपाल सिंह चुने गए थे. वह लोध बिरादरी से ही नाता रखते हैं. उस वक्त प्रदेश में सपा की सरकार थी, जबकि वर्तमान में केंद्र और राज्य दोनों में भाजपा की सत्ता है और यह भी माना जाता है कि उप चुनाव में सत्ताधारी दल को ज्यादा लाभ मिलता है. लोग भी समझते हैं कि सत्ताधारी दल का प्रत्याशी जीतकर आया तो क्षेत्र में विकास के काम ज्यादा होंगे.
इस बार चुनाव प्रचार में आजम खान के पैने भाषणों की धार भी कुंद दिख रही है. उनके भाषणों में 26 महीने जेल में रहकर आने का दर्द तो है, पर कहीं न कहीं यह डर भी साफ दिखाई देता है कि ज्यादा बोलने का 'दुष्परिणाम' न हो जाए. जिस उप चुनाव में कांग्रेस मैदान में ही नहीं है, वहां आजम भाजपा से ज्यादा कांग्रेस और गांधी परिवार को कोसते नजर आ रहे हैं. स्वाभाविक है कि इस चुनाव में आजम पूरी शिद्दत से जोर-आजमाइश नहीं कर रहे हैं. यही कारण है कि माना जा रहा है कि आजम के लिए यह चुनाव चुनौती भरा है और उनके लिए गढ़ बचा पाना आसान बात नहीं है.