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संगीत की दुनिया का नायाब हीरा थे मुकेश, हीरो बनने का सपना लेकर आए थे मुंबई

आज अपने दौर के मशहूर गायक मुकेश जी (Singer Mukesh) की 45 वीं पुण्यतिथि (Death anniversary) है. मुकेश कभी भी सिंगर नहीं बनना चाहते थे. वह अभिनेता बनने का सपना लिए मुंबई आये थे, लेकिन किस्मत को शायद कुछ और ही मंजूर था...

legendary singer Mukesh
मशहूर गायक मुकेश जी
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Published : Aug 27, 2021, 7:08 AM IST

लखनऊ : आज अपने दौर के मशहूर गायक मुकेश की 45 वीं पुण्यतिथि है. संगीत के दीवानों के लिए मुकेश की आवाज़ किसी तोहफ़े से कम नहीं. ‘शो मैन’ राजकपूर की आवाज बन शोहरत की ऊंचाईयां छूने वाले मुकेश आज भी अपने गाये गीतों से चाहने वाले के दिलों पर राज करते हैं.

मुकेश ने एक से बढ़कर एक हिट गीतों को आवाज दी है. ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल’ सच आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके बोल और उनकी आवाज़ आज भी लाखों, करोड़ों फैंस के होंठों पर गूंजती रहती हैं. 22 जुलाई 1923 को जन्में मुकेश का पूरा नाम मुकेशचंद्र माथुर था. उनके पिता जोरावर चंद्र माथुर पेशे से इंजिनियर थे. मुकेश के 10 भाई-बहन थे जिनमें वो छठे नंबर के थे. मुकेश को बचपन से ही गाने में रुचि थी. मुकेश ने 10वीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी और पीडब्लूडी में नौकरी करने लगे थे. बाद में फ़िल्मों के प्रति उनकी दीवानगी ही थी कि मोतीलाल के बुलावे पर वो मुंबई आ गए. यहां आकर अभिनय में असफल होने के बाद वो गायकी में हुनर दिखाने लगे! मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फिल्मों के लिए गीत गाए. राज कपूर उन्हें अपनी आत्मा कहते थे. 27 अगस्त 1976 को मुकेश एक शो के लिए अमेरिका गए थे, उसी दौरान वहां दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था.

मुकेश ने साल 1951 में फिल्म 'मल्हार' और 1956 में फिल्म 'अनुराग' का निर्माण किया था. 'अनुराग', 'माशूका' और ‘निर्दोष’ में उन्होंने बतौर हीरो अभिनय भी किया. हालांकि प्रोड्यूसर बनना उनके लिए बुरा अनुभव रहा क्योंकि उनकी फिल्में दर्शकों पर प्रभाव डालने में कामयाब नहीं हो सकीं. इंडस्ट्री में मुकेश के लिए शुरुआती दौर मुश्किलों भरा था. अभिनेता और निर्माता बनने की अपनी इच्छा को छोड़कर मुकेश उसके बाद पूरी तरह से बस गायकी ही करने लगे! उसके बाद शुरू हुआ उनका सुनहरा सफर.

50 के दशक से मुकेश को एक पहचान मिलनी शुरू हुई. उन्हें शोमैन राजकपूर की आवाज कहा जाने लगा. बहरहाल, 70 के दशक तक मुकेश उस वक्त के हर बड़े स्टार की आवाज बन गए थे. साल 1970 में मुकेश को मनोज कुमार की फ़िल्म ‘पहचान’ के गीत के लिए दूसरा फिल्मफेयर मिला और फिर 1972 में मनोज कुमार की ही फ़िल्म के गाने के लिए उन्हें तीसरी बार फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया. मुकेश तब ज्यादातर कल्याण जी-आंनद जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आरडी बर्मन जैसे बड़े संगीतकारों के साथ ही काम किया करते थे.

साल 1974 में फ़िल्म ‘रजनीगंधा’ के गाने के लिए मुकेश को नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड दिया गया. साल 1976 में यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘कभी कभी’ के टाइटल सॉन्ग के लिए मुकेश को अपने करियर का चौथा फिल्मफेयर मिला. मुकेश की आवाज में सबसे ज्यादा गीत दिलीप कुमार पर फिल्माए गए. राज कपूर और मुकेश में काफी अच्छी दोस्ती थी. मुश्किल दौर में राज कपूर और मुकेश हमेशा एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते थे.

मुकेश ने अपने करियर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फिल्म के लिए ही गाया था, लेकिन 1978 में इस फ़िल्म के रिलीज से दो साल पहले ही 27 अगस्त को मुकेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

लखनऊ : आज अपने दौर के मशहूर गायक मुकेश की 45 वीं पुण्यतिथि है. संगीत के दीवानों के लिए मुकेश की आवाज़ किसी तोहफ़े से कम नहीं. ‘शो मैन’ राजकपूर की आवाज बन शोहरत की ऊंचाईयां छूने वाले मुकेश आज भी अपने गाये गीतों से चाहने वाले के दिलों पर राज करते हैं.

मुकेश ने एक से बढ़कर एक हिट गीतों को आवाज दी है. ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जायेंगे प्यारे तेरे बोल’ सच आज वो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनके बोल और उनकी आवाज़ आज भी लाखों, करोड़ों फैंस के होंठों पर गूंजती रहती हैं. 22 जुलाई 1923 को जन्में मुकेश का पूरा नाम मुकेशचंद्र माथुर था. उनके पिता जोरावर चंद्र माथुर पेशे से इंजिनियर थे. मुकेश के 10 भाई-बहन थे जिनमें वो छठे नंबर के थे. मुकेश को बचपन से ही गाने में रुचि थी. मुकेश ने 10वीं क्लास के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी और पीडब्लूडी में नौकरी करने लगे थे. बाद में फ़िल्मों के प्रति उनकी दीवानगी ही थी कि मोतीलाल के बुलावे पर वो मुंबई आ गए. यहां आकर अभिनय में असफल होने के बाद वो गायकी में हुनर दिखाने लगे! मुकेश ने 1940 से 1976 के बीच सैकड़ों फिल्मों के लिए गीत गाए. राज कपूर उन्हें अपनी आत्मा कहते थे. 27 अगस्त 1976 को मुकेश एक शो के लिए अमेरिका गए थे, उसी दौरान वहां दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था.

मुकेश ने साल 1951 में फिल्म 'मल्हार' और 1956 में फिल्म 'अनुराग' का निर्माण किया था. 'अनुराग', 'माशूका' और ‘निर्दोष’ में उन्होंने बतौर हीरो अभिनय भी किया. हालांकि प्रोड्यूसर बनना उनके लिए बुरा अनुभव रहा क्योंकि उनकी फिल्में दर्शकों पर प्रभाव डालने में कामयाब नहीं हो सकीं. इंडस्ट्री में मुकेश के लिए शुरुआती दौर मुश्किलों भरा था. अभिनेता और निर्माता बनने की अपनी इच्छा को छोड़कर मुकेश उसके बाद पूरी तरह से बस गायकी ही करने लगे! उसके बाद शुरू हुआ उनका सुनहरा सफर.

50 के दशक से मुकेश को एक पहचान मिलनी शुरू हुई. उन्हें शोमैन राजकपूर की आवाज कहा जाने लगा. बहरहाल, 70 के दशक तक मुकेश उस वक्त के हर बड़े स्टार की आवाज बन गए थे. साल 1970 में मुकेश को मनोज कुमार की फ़िल्म ‘पहचान’ के गीत के लिए दूसरा फिल्मफेयर मिला और फिर 1972 में मनोज कुमार की ही फ़िल्म के गाने के लिए उन्हें तीसरी बार फिल्मफेयर अवॉर्ड दिया गया. मुकेश तब ज्यादातर कल्याण जी-आंनद जी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और आरडी बर्मन जैसे बड़े संगीतकारों के साथ ही काम किया करते थे.

साल 1974 में फ़िल्म ‘रजनीगंधा’ के गाने के लिए मुकेश को नेशनल फ़िल्म अवॉर्ड दिया गया. साल 1976 में यश चोपड़ा की फ़िल्म ‘कभी कभी’ के टाइटल सॉन्ग के लिए मुकेश को अपने करियर का चौथा फिल्मफेयर मिला. मुकेश की आवाज में सबसे ज्यादा गीत दिलीप कुमार पर फिल्माए गए. राज कपूर और मुकेश में काफी अच्छी दोस्ती थी. मुश्किल दौर में राज कपूर और मुकेश हमेशा एक-दूसरे की मदद को तैयार रहते थे.

मुकेश ने अपने करियर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फिल्म के लिए ही गाया था, लेकिन 1978 में इस फ़िल्म के रिलीज से दो साल पहले ही 27 अगस्त को मुकेश का दिल का दौरा पड़ने से निधन हो गया.

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