लखनऊ : बेटी अनुप्रिया पटेल भारत सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री हैं. उनकी मां कृष्णा पटेल अपना दल (कमेरावादी) की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. कहने को तो रिश्ता मां-बेटी का है, लेकिन राजनीति ने रिश्तों में ऐसी दरार डाली कि परिवार ही बिखर गया. मां से अलग होकर बेटी ने अपना दल (सोनेलाल) नाम से नई पार्टी बना ली. इस बात को पांच साल से ज्यादा समय हो गया. इस बीच कई बार ऐसे भी मौके आए, जब रिश्तों की कड़वाहट मिठास में बदल सकती थी, लेकिन ऐसा हुआ नहीं. पांच साल बाद फिर एक बार बेटी अनुप्रिया ने मां कृष्णा पटेल की तरफ परिवार की एकजुटता के लिए हाथ बढ़ाया है, लेकिन मां ने बेटी के इस प्रस्ताव को सिरे से ठुकरा दिया है.
मां ने खारिज किया बेटी का प्रस्ताव
हाल ही में केंद्रीय राज्य मंत्री अनुप्रिया पटेल ने बिखरे हुए घर को फिर से एक करने के लिए अपनी मां की तरफ एकजुटता के लिए हाथ बढ़ाया था. वे चाहती हैं कि उनकी मां कृष्णा पटेल उनके साथ आ जाएं. वह उन्हें एमएलसी बनाएंगी, मंत्री पद भी दिलाएंगी. किसी तरह रूठी हुई मां मान जाएं. एकजुटता का फायदा दोनों को ही मिलेगा. उत्तर प्रदेश में होने वाले आगामी विधानसभा चुनाव में मजबूती से अपनी उपस्थिति दर्ज कराई जा सकेगी. गठबंधन में भारतीय जनता पार्टी से और भी ज्यादा सीटें मांगी जा सकेंगी. बिखरा हुआ कुर्मी वोट एकजुट हो जाएगा जिससे समाज में भी बेहतर संदेश जाएगा. लेकिन बेटी के इस प्रयास को मां ने सिरे से खारिज कर दिया है. रविवार को उनकी मां कृष्णा पटेल की तरफ से बाकायदा एक बयान जारी किया गया, जिसमें उन्होंने साफ कर दिया है कि किसी भी कीमत पर अनुप्रिया पटेल के साथ नहीं जाएंगी.
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पार्टी और समाज को दिया धोखा- कृष्णा पटेल
अपना दल की तरफ से आधिकारिक बयान जारी किया गया है कि पेड न्यूज के तौर पर भारतीय जनता पार्टी के दबाव में कई तरह की सूचनाएं मिल रही हैं. कहीं कोई एक होने की बात कर रहा है तो कोई मंत्री पद की बात कर रहा है. इन्हें डॉक्टर पटेल के आंदोलन की अहमियत और हैसियत का अंदाजा ही नहीं है. यह नहीं जानते कि डॉक्टर पटेल मंत्री बनाने और एमएलसी बनाने के लिए नहीं लड़ रहे थे. वह लड़ रहे थे किसानों और कमरों के लिए. जो लोग इनसे समझौता करके बैठे हैं वह बहुत छोटी राजनीति कर रहे हैं. मैं अपना दल की राष्ट्रीय अध्यक्ष हूं. मुझे पार्टी के बाहर का कोई व्यक्ति, जिसे पार्टी से निकाला जा चुका हो उसे यह बोलने से पहले सोचना चाहिए. मेरी अध्यक्षता ही स्वीकार होती तो ऐसे समाज और इस पार्टी को धोखा देकर नहीं जाते. जनता और समाज इस खेल को समझ रहे हैं. मीडिया को भी समझने की जरूरत है.