लखनऊ: बीते रविवार को बसपा से पूर्व सांसद रहे दाऊद अहमद की बहुमंजिला इमारत पर लखनऊ विकास प्राधिकरण ने बुलडोजर चला दिया. एलडीए का कहना है कि यह निर्माण अवैध रूप से किया जा रहा था. आंकलन है कि यह बहुमंजिला इमारत करोड़ों की लागत से बन रही थी. इस अवैध निर्माण को तोड़ने के संबंध में एलडीए की तरफ से कोई आदेश जारी नहीं किए गए बल्कि एएसआई के आदेश पर जिला प्रशासन ने यह कार्रवाई की है.
अब सवाल यह है कि बीएसपी के पूर्व सांसद दाउद अहमद की अवैध बिल्डिंग चार साल तक बनती रही लेकिन, तब एलडीए के अधिकारियों ने कोई कार्रवाई क्यों नहीं की. यह पहला मामला नहीं है जब एलडीए के सामने अवैध निर्माण कार्य होता रहा और अधिकारी चुप्पी साधे बैठे रहे. जानकारों की मानें तो इस खेल में एलडीए के अधिकारी और कर्मचारी पूरी तरह से संलिप्त हैं. दाउद अहमद के प्रभाव में आकर ही इस पूरे खेल को अंजाम दिया गया है.
एलडीए ने तो पास कर दिया था नक्शा
दाउद अहमद बहुजन समाज पार्टी के कद्दावर नेता रहे हैं. पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने के आरोपों में उन्हें निकाल दिया गया था. उनके द्वारा एक बहुमंजिला इमारत का निर्माण रिवर बैंक कॉलोनी के पास किया जा रहा था. पुराने एसएसपी ऑफिस के पास ही इसका निर्माण हो रहा था. 2018 में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग की ओर से आपत्ति जताई गई. हैरानी की बात है कि इस बिल्डिंग का नक्शा एलडीए ने पास कर दिया था. हालांकि इसे इस शर्त के साथ पास किया गया था कि एएसआई की अनुमति ले ली जाएगी. बिल्डिंग भले ही दाउद की हो लेकिन, इसमें पैसा शहर के कई बड़े लोगों का लगा है.
हालांकि यह पहला मामला नहीं है, जिसमें एलडीए के अधिकारियों और बाबुओं का खेल सामने आया हो. बीते कुछ सालों में ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिसने एलडीए की व्यवस्थाओं को बेनकाब किया है.
मृत कर्मचारियों की आईडी का इस्तेमाल कर किया खेल
एलडीए ने गोमती नगर के वास्तु खंड के प्लॉट में गड़बड़ी के लिए बाबू अजय प्रताप वर्मा के खिलाफ गोमती नगर थाने में फर्जीवाड़ा करने का मुकदमा दर्ज कराया. यह बताया गया कि जो लोग कुछ मकानों में रह रहे हैं वह अवैध है. एलडीए के बाबू विवेक कुमार सिंह ने गोमती नगर थाने में दी तहरीर में बताया कि प्लॉटों का ब्योरा दर्ज कराते समय कंप्यूटर में उन बाबुओं की आईडी डाली गई जो वर्तमान में जीवित नहीं हैं या फिर सेवानिवृत्त हो चुके हैं. इनमें डाटा इंट्री ऑपरेटर सुभाष श्रीवास्तव की आईडी का गलत इस्तेमाल हुआ, जबकि उनकी मौत 27 जुलाई 2011 को हो चुकी है. इसी तरह सहायक प्रोग्रामर गुलाम रब्बानी की आईडी का गलत प्रयोग हुआ. गुलाब की मौत भी 12 अप्रैल 2008 को हो चुकी है. जांचकर्ता आरोपित बाबू को पिछले कई माह से पत्राचार कर रहे हैं, लेकिन वह गायब है.
अकूत संपत्ति के मालिक बने बाबू
एलडीए के एक बाबू को करीब 4 साल पहले उपाध्यक्ष ने अपने ऑफिस में बुलाकर गिरफ्तार कराया था. बाबू मुक्तेश्वर नाथ ओझा के नाम पर एलडीए की ओर से ओएसडी राजेश शुक्ला ने एफआईआर दर्ज कराई. उनके ऊपर करोड़ों के प्लाटों का घपला और एक ही प्लॉट को कई लोगों को गलत तरीकों से बेचने का आरोप था. बाबू मुक्तेश्वर नाथ ओझा ने पिछले 10 सालों में करोड़ों की सम्पत्ति अपनी पत्नी के नाम पर लिखवाई है.
बाबुओं ने मिलकर बांट दिए नियुक्ति पत्र
फर्जी रजिस्ट्री, समायोजन और प्लाट आवंटन के फर्जीवाड़े के बाद एलडीए के बाबू नियुक्ति कर करोड़ों रुपये हड़पे जा रहे हैं. यह ठगी बाहरी लोगों से की जा रही है. आला अफसरों के नाम पर लोगों को फर्जी नियुक्ति पत्र तक थमा दिए गए. करीब 117 लोगों को फर्जी नियुक्ति पत्र देकर करीब 5.85 करोड़ रुपए की ठगी का मामला खुला. 2017 में यह खेल किया गया था. उत्तर प्रदेश आवास एवं शहरी नियोजन विभाग की ओर से जारी शासनादेश का उल्लेख करते हुए नियुक्ति पत्र दिए गए थे.