लखनऊ : प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार मोटे अनाजों यानी मिलेट्स के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई प्रोत्साहन योजनाएं चला रही है. सरकार चाहती है कि सेहत के गुणों से भरपूर मोटे अनाजों का उपयोग बढ़े, जिससे किसानों को मोटे अनाजों के उत्पादन के लिए प्रोत्साहन मिल सके. वैसे मोटे अनाजों का उत्पादन कई मायनों में किसानों के लिए बहुत ही लाभकारी है. इसके लिए ज्यादा पानी और देखरेख की जरूरत नहीं होती है. इस कारण इन फसलों पर लागत भी काफी कम आती है. भारत मोटे अनाजों का दुनिया में सबसे बड़ा उत्पादक देश है. उत्तर प्रदेश समेत 21 राज्यों में मोटे अनाजों का उत्पादन किया जाता है. यह बात और है कि लगभग चार दशक पूर्व उत्तर प्रदेश के तमाम जिलों में इन अनाजों का उत्पादन बहुत ज्यादा था, किंतु गन्ने जैसी नकदी वाली फसल का उत्पादन बढ़ने के साथ ही मोटे अनाजों का चलन कम होता गया. अब यह प्रदेश के कुछ ही जिलों तक सीमित रह गया है.
गौरतलब है कि मोटे अनाजों में ज्वार, बाजरा, रागी, कंगनी, काकुन, चीना, कोदो, सांवा, झगोरा, कुटकी, कुट्टू, चौलाई, चना, मक्का आदि को प्रमुख माना जाता है. वर्ष 2023 को अंतरराष्ट्रीय 'मोटा अनाज वर्ष' के रूप में मनाया जा रहा है. इस संबंध में विगत पांच मार्च 2021 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने समृद्ध परंपरा और संपूर्ण पोषण को ध्यान में रखते हुए वर्ष 2023 को मोटे अनाज का अंतरराष्ट्रीय वर्ष मनाने की घोषणा की थी. इसका प्रस्ताव भारत ने रखा था और 72 देशों ने इसका समर्थन किया था. यही नहीं 2018 में भारतीय खाद्य सुरक्षा अभियान के तहत मोटे अनाज को पोषक अन्न घोषित किया गया था. मोटे अनाजों के लिए तेलंगाना राज्य स्थित हैदराबाद में भारतीय खाद्यान्न अनुसंधान संस्थान की स्थापना 1954 में की गई थी. देश में मोटे अनाजों के उत्पादक राज्यों में मुख्य रूप से राजस्थान‚ महाराष्ट्र‚ उत्तर प्रदेश‚ कर्नाटक‚ गुजरात‚ हरियाणा‚ मध्य प्रदेश‚ तमिलनाडु‚ आंध्र प्रदेश और उत्तराखंड शामिल हैं। मोटे अनाज ग्लूटेन मुक्त‚ न्यूनतम वसा व न्यूनतम कार्बोहाइड्रेट युक्त होते हैं, जिसके कारण यह सेहत के लिए बहुत ही लाभदायक होते हैं. माना जाता है कि इनके सेवन से शुगर और बीपी जैसी बीमारियां दूर रहती हैं.
लगभग चार दशक पहले उत्तर प्रदेश के अधिकांश जिलों में बड़े पैमाने पर मोटे अनाजों का उत्पादन किया जाता था. खासतौर पर मध्य उत्तर प्रदेश और बुंदेलखंड के जिलों में अच्छा-खासा उत्पादन होता था. हालांकि धीरे-धीरे गन्ने की नकदी वाली फसल की ओर लोगों का रुझान बढ़ा और अच्छी आमदनी की चाहत में किसानों ने गन्ना, गेहूं, आलू आदि जैसी फसलों पर ज्यादा ध्यान देना आरंभ कर दिया. हालांकि इन फसलों को मोटे अनाजों की तुलना में पानी कई गुना ज्यादा चाहिए होता है. सिंचाई के लिए अत्यधिक भू जल के दोहन से प्रदेश में लगातार भूगर्भ जलस्तर में गिरावट आती जा रही है. ऐसे में यदि किसान फिर से मोटे अनाजों के उत्पादन की ओर लौटते हैं, तो इससे लोगों की सेहत तो सुधरेगी ही आने वाले जल संकट से भी राहत मिल जाएगी. सरकार लगातार इस दिशा में अपने प्रयास कर रही है. हालांकि यह कहना कठिन है कि किसना दोबारा मोटे अनाज का रुख करेंगे भी या नहीं. यदि मांग बढ़ी और उन्हें अपनी फसल की अच्छी कीमत मिलने का भरोसा हुआ, तो भी किसानों का विश्वास लौट सकता है.
इसी कड़ी में प्रदेश सरकार राजधानी में आगामी 27 अक्टूबर से तीन दिवसीय कृषि कुंभ का आयोजन करने जा रही है. गोमतीनगर स्थित इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में आयोजित होने वाले इस कार्यक्रम में अन्न महोत्सव और मिलेट्स (मोटे अनाज) पर कार्यशाला भी आयोजित की जाएगी. कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुद मौजूद रहेंगे. इसके साथ ही अलग-अलग दिनों में प्रदेश के सभी मंडलों से किसानों की भागीदारी भी होगी. कार्यक्रम में कृषि विश्वविद्यालयों के शिक्षक एवं छात्रों को भी आमंत्रित किया गया है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कार्यक्रम में प्रगतिशील किसानों को सम्मानित करने के साथ-साथ मोटे अनाज पैदा करने के लिए प्रेरित भी करने वाले हैं.Body: