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ये उपाय अपनाएं, धान का स्वस्थ और अधिक उत्पादन पाएं

धान खरीफ मौसम की प्रमुख फसल मानी जाती है. मौसम के हालात और बीमारियों का प्रकोप धान की उपज को पूरी तरह से प्रभावित कर देते हैं. किसानों को फसल के प्रति विशेष सावधानी बरतने की जरूरत है. जरा सी भी लापरवाही से फसल रोगों की चपेट में आ सकती है. ऐसे में सारी मेहनत पर पानी फिर सकता है.

कॉन्सेप्ट इमेज.
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Published : Jun 17, 2021, 9:01 AM IST

लखनऊ: खरीफ की प्रमुख फसल धान के लिए इस बार आरंभ से ही वर्षा होने से किसानों को इसके बेहतर उत्पादन की उम्मीद है. बीते वर्ष भी यह फसल अच्छी थी, लेकिन कटाई से ठीक पहले बड़े पैमाने पर धान में कंडुआ रोग लग गया था. इस वर्ष भी धान की नर्सरी डालने व धान की रोपाई का समय है. हालांकि जनपद के कुछ क्षेत्रों में धान की फसल में कंडुआ रोग लग रहा है. फसल में रोग लगने की शिकायत जिला कृषि रक्षा अधिकारी को भी लगातार मिल रही है, जिससे वो भी चिंतित हैं. हालांकि जिला कृषि रक्षा अधिकारी धनंजय सिंह ने धान की फसल को रोगों से बचाने के उपाय बताएं हैं.

फसल में लग रहा मिथ्या कड़वा रोग
जिला कृषि रक्षा अधिकारी धनंजय सिंह ने बताया कि जनपद के कुछ क्षेत्रों में धान की फसल में मिथ्या कंडुआ रोग दिखाई दिया था. यह एक फफूंद जनित रोग है, जो ustilaginoidea से होता है, जिसका प्राथमिक स्रोत मृदा एवं प्राकोपित बीज होते हैं. इस रोग का लक्षण बाली निकलने के बाद ही दिखाई देता है. इसमें दाने पीले व काले आवरण से ढके रहते हैं, जिसमें पीले व काले के साथ भूरे रंग के पाउडर जैसे स्पाट रहते हैं. उन्होंने बताया कि इस रोग के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 90% से अधिक आद्रता अनुकूल होती है.

इसे भी पढ़े:- कोरोना में ऑक्सीजन पर रहे मरीजों की याददाश्त हो रही कमजोर

इनका करें छिड़काव
इस रोग से बचाव के लिए नर्सरी बुवाई में प्रमाणित एवं स्वस्थ बीज का ही प्रयोग करना चाहिए. बीज का स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में 20 को 30 मिनट भिगोकर या ट्राईकोडार्मा 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज शोधन, नीम की खली 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर नर्सरी की जड़ों को साफ कर रोपाई व छिड़काव करें. दाने बनते समय रोग दिखाई देने पर कॉपर हाइड्रोक्साइड, प्रॉपिकॉनाजोल, पिकॉक्सिस्ट्रॉबिन, स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस, कार्बेंडाजिम पानी में घोलकर 20 से 25 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

लखनऊ: खरीफ की प्रमुख फसल धान के लिए इस बार आरंभ से ही वर्षा होने से किसानों को इसके बेहतर उत्पादन की उम्मीद है. बीते वर्ष भी यह फसल अच्छी थी, लेकिन कटाई से ठीक पहले बड़े पैमाने पर धान में कंडुआ रोग लग गया था. इस वर्ष भी धान की नर्सरी डालने व धान की रोपाई का समय है. हालांकि जनपद के कुछ क्षेत्रों में धान की फसल में कंडुआ रोग लग रहा है. फसल में रोग लगने की शिकायत जिला कृषि रक्षा अधिकारी को भी लगातार मिल रही है, जिससे वो भी चिंतित हैं. हालांकि जिला कृषि रक्षा अधिकारी धनंजय सिंह ने धान की फसल को रोगों से बचाने के उपाय बताएं हैं.

फसल में लग रहा मिथ्या कड़वा रोग
जिला कृषि रक्षा अधिकारी धनंजय सिंह ने बताया कि जनपद के कुछ क्षेत्रों में धान की फसल में मिथ्या कंडुआ रोग दिखाई दिया था. यह एक फफूंद जनित रोग है, जो ustilaginoidea से होता है, जिसका प्राथमिक स्रोत मृदा एवं प्राकोपित बीज होते हैं. इस रोग का लक्षण बाली निकलने के बाद ही दिखाई देता है. इसमें दाने पीले व काले आवरण से ढके रहते हैं, जिसमें पीले व काले के साथ भूरे रंग के पाउडर जैसे स्पाट रहते हैं. उन्होंने बताया कि इस रोग के लिए 25 से 35 डिग्री सेल्सियस तापमान पर 90% से अधिक आद्रता अनुकूल होती है.

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इनका करें छिड़काव
इस रोग से बचाव के लिए नर्सरी बुवाई में प्रमाणित एवं स्वस्थ बीज का ही प्रयोग करना चाहिए. बीज का स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में 20 को 30 मिनट भिगोकर या ट्राईकोडार्मा 5 से 10 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज या 2.5 ग्राम प्रति किलोग्राम से बीज शोधन, नीम की खली 150 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस 10 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर नर्सरी की जड़ों को साफ कर रोपाई व छिड़काव करें. दाने बनते समय रोग दिखाई देने पर कॉपर हाइड्रोक्साइड, प्रॉपिकॉनाजोल, पिकॉक्सिस्ट्रॉबिन, स्यूडोमोनास फ्लोरिसेंस, कार्बेंडाजिम पानी में घोलकर 20 से 25 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें.

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