लखनऊ: कड़ाके की ठंड में उत्तर प्रदेश के सियासी मौसम को आईटी की छापेमारी ने गर्म कर दिया है. सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव के करीबी नेता और व्यापारियों के ठिकानों पर आयकर विभाग की छापेमारी के बाद इत्र अध्याय शुरू होने से सियासी हलचल तेज हो गई है. सपा नेताओं के घर पर आयकर विभाग की टीम की रेड ऐसे समय पड़ी है, जब प्रदेश में विधानसभा चुनाव को लेकर माहौल गर्म है और सत्तापक्ष से लेकर विपक्ष तक चुनावी अभियान में जुटी हैं. आइए जानते हैं कि आखिरकार चुनाव और छापेमारी का कनेक्शन क्या है?
बीते दिनों लखनऊ, मऊ, मैनपुरी समेत 6 जगहों पर अखिलेश के करीबियों के ठिकानों पर आयकर विभाग ने छापेमारी की थी. वहीं, अब कन्नौज में इत्र धंधे के बेताज बादशाहों के ठिकानों पर छापेमारी के बाद हर टाइमिंग पर सवाल उठाए जा रहे हैं. दिलचस्प बात यह है कि आयकर विभाग यूपी ही नहीं बल्कि देश के अन्य राज्यों में भी चुनाव से ठीक पहले ऐसे ही एक्टिव होकर विपक्षी नेताओं को अपने रडार पर लेती रही है. यूपी से पहले पश्चिम बंगाल से लेकर महाराष्ट्र, बिहार, हरियाणा और तमिलनाडु में चुनाव से पहले केंद्रीय जांच एजेंसियों की सक्रियता देखने को मिल चुकी है.
गौरतलब है कि यूपी में जल्द ही विधानसभा चुनाव का औपचारिक ऐलान होना है. लेकिन इससे पहले सपा मुखिया के करीबी नेताओं के घर आयकर विभाग ने छापेमारी जारी है. अखिलेश के बेहद भरोसेमंद सिपाहियों के यहां से हुई जो छापेमारी अब कानपुर और कन्नौज में इत्र धंधे से जुड़े सपा एमएलसी पम्पी जैन के यहां तक पहुंची है. जिससे समाजवादी पार्टी तिलमिलाई हुई है.
हालांकि, इससे पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में जब अखिलेश मायावती ने गठबंधन कर एक साथ चुनाव लड़ने का फैसला किया था. ऐलान के एक सप्ताह के बाद हमीरपुर में सपा सरकार के दौरान खनिजों के अवैध खनन संबंधी आरोपों को लेकर पूरे उत्तर प्रदेश में छापेमारे की गई थी. इस मामले में सपा एमएलसी रमेश कुमार मिश्रा और बसपा नेता संजय दीक्षित के नाम थे. लोकसभा चुनाव के दौरान ही साल 2019 में ईडी ने लखनऊ के सात ठिकानों पर स्मारक घोटाले के संबंध में छापे मारे थे. मायावती और अखिलेश यादव ने इसे बदले की कार्रवाई बताई थी.
क्या कहते है विशेषज्ञ?
आयकर के मामलों के जानकार राकेश मिश्रा ने कहा कि ' ये सच है कि चुनाव के वक्त सबसे ज्यादा राजनीतिक दलों के नेताओं और उनसे संबंध रखने वाले व्यापारियों के यहां आयकर विभाग की छापेमारी होती है. दरअसल, ये सब एक प्रोसीजर के तहत ही होता है. आयकर विभाग पहले से ही रेकी कर चुका होता है. इसके बाद आयकर की टीम सही समय का इंतजार करती है. चूंकि चुनाव के समय ही सबसे ज्यादा पैसों का मूवमेंट होता है. इसलिए चुनाव से ठीक पहले रेकी की गई जगहों पर आईटी ताबड़तोड़ छापेमारी करने लगती है. जिसका ताजा उदाहरण कानपुर के पीयूष जैन के यहां पड़ी छापेमारी में मिले 250 करोड़ से भी ज्यादा रुपये है. जो साफ तौर पर चुनाव में ही खपाने के लिए रखे गए थे.'
दो दशक से आयकर मामलों में परामर्श दे रहे एडवोकेट अनुपम श्रीवास्तव का कहना है कि 'जब से आयकर विभाग पूरी तरह से ऑनलाइन हो गया है. तब से इस विभाग का फोकस सिर्फ और सिर्फ इन्वेस्टिगेशन और सर्च में ही रहता है. जो भी साल भर जानकारी जुटाई जाती है वो चुनाव के वक़्त इम्प्लीमेंट की जाती है. इसका कारण है कि सबसे ज्यादा पैसों का लेनदेन इस वक़्त ही होता है. यहीं नही लगभग हर राजनीतिक दल का नेता किसी न किसी अन्य व्यापार से जुड़ा होता है. साथ ही कर की चोरी कर रहे व्यापारी भी राजनीतिक दलों से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े होते हैं. ऐसे नाम आयकर विभाग की हिट लिस्ट में रहते हैं. लेकिन कुछ ऐसी भी रेड होती है जो इमीडिएट रेड की जाती है. जो किसी न किसी रेड के वक़्त प्राप्त जानकारी के अनुसार तुरंत कही और भी आईटी टीम पहुंच जाती है.'
विशेषज्ञों के तर्क से साफ है कि चुनाव के वक्त को आयकर विभाग जानबूझ कर चुनता है. इसका कारण बदले की भावना या फिर राजनीतिक दलों में भय पैदा करना नही बल्कि सटीक जानकारी और पैसों का एक जगह इकट्ठा रहने की सूचना के तहत ही ये छापेमारी होती है.