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जानिए लोकसभा चुनावों के लिए कितनी तैयार है बहुजन समाज पार्टी? क्या किसी गठबंधन की तलाश में हैं मायावती

अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर सभी राजनीतिक दल (Lok Sabha election 2024) बिसात बिछाने में जुट गए हैं. इस चुनाव को लेकर बहुजन समाज पार्टी कितनी तैयार है? क्या बसपा किसी गठबंधन की तलाश में है? पढ़ें पूरी खबर.

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Oct 30, 2023, 7:19 PM IST

Updated : Oct 30, 2023, 7:55 PM IST

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती (Bahujan Samaj Party) उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही हैं. 2007 में उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी. अपनी सरकार में मायावती ने कई ऐसे काम किए थे, जिनके कारण उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरीं. माफिया के खिलाफ कार्रवाई का मामला हो या नौकरशाही पर नियंत्रण की बात, प्रदेश के कई जिलों में स्मारकों के निर्माण की बात हो या अपने जन्मदिवस पर महंगे उपहार लेने का प्रसंग, मायावती की खूब चर्चा हुई. उनकी सरकार के कई मंत्री लोकायुक्त जांच में दोषी पाए गए और उन्हें अपने पद भी गंवाने पड़े. बावजूद इसके उनके रुतबे में कमी नहीं आई, हालांकि 2012 के विधानसभा चुनावों से प्रदेश की राजनीति में ऐसी धारा बही कि धीरे-धीरे बसपा अपने अस्तित्व के संकट से जूझने लगी. आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए लोग सवाल करने लगे हैं कि बहुजन समाज पार्टी इसके लिए कितनी तैयार है? क्या बसपा किसी गठबंधन की तलाश में है या वह अकेले ही चुनावी मैदान में उतरेगी.

लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में स्थिति
विधानसभा चुनाव में स्थिति



2024 के लिए बसपा की रणनीति जानने से पहले उसके अतीत के विषय में जानना जरूरी है. 2022 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 12.81 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन वह सिर्फ एक सीट ही जीतने में कामयाब हो पाई थी, वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में उसका मत प्रतिशत 22.24 था और तब पार्टी को प्रदेश की 22 सीटों पर सफलता मिली थी. 2012 में उसे 25.95 प्रतिशत वोट और 80 सीटों पर विजय मिली थी, जबकि 2007 में 30.43 प्रतिशत वोटों के साथ 206 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस लिहाज से देखें तो बसपा के वोट लगातार घटे हैं, हालांकि साढ़े बारह प्रतिशत से ज्यादा वोट उसे हाल के चुनाव में भी हासिल हुए हैं. सीटें भले ही कम मिली हों, लेकिन मत प्रतिशत विपक्षी दलों को जरूर आकर्षित करने वाला है. यदि कुछ अन्य दलों के साथ मायावती मिलकर चुनाव लड़ें, तो उनका मत प्रतिशत और सीटें दोनों ही बढ़ सकती हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव इसका उदाहरण हैं. तब सपा और बसपा ने एक बेमेल गठबंधन किया था, जिसका बसपा को बड़ा फायदा मिला. 2014 में शून्य सीटों के मुकाबले बसपा को 2019 के लोकसभा चुनावों में 10 सीटें मिलीं. बावजूद इसके बसपा ने सपा से रिश्ता तोड़ लिया, जबकि गठबंधन का असल में नुकसान सपा को उठाना पड़ा था, क्योंकि उसे लोकसभा चुनाव में सिर्फ पांच सीटें ही मिली थीं. मायावती पहले भी अवसरवाद की राजनीति करती रही हैं. उन्हें भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन भाजपा को उनसे हमेशा धोखा ही मिला.

विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में यूपी की दलीय स्थिति
लोकसभा चुनाव में यूपी की दलीय स्थिति




2019 के लोकसभा चुनावों के अनुभव के बाद समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर बसपा के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं होंगे. ऐसे में बसपा के सामने कांग्रेस और लोकदल जैसे विपक्षी दलों का ही विकल्प है. कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में अपनी शर्तों पर ही गठबंधन करेंगे, जबकि उत्तर प्रदेश से बाहर उनकी पार्टी का खास वजूद नहीं है. दूसरी बात हाल ही में मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे से अखिलेश यादव कांग्रेस से खफा हैं. वह इसका बदला लोकसभा में यूपी के टिकट बंटवारे में निकाल सकते हैं. यही कारण है कि कांग्रेस भीतर खाने में सपा से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर विचार और मंथन कर रही है. पार्टी को लगता है कि यदि कांग्रेस कार्यकर्ता ठीक से मेहनत कर लेंगे और बसपा का वोट बैंक भी उसे मिल गया तो उसे प्रदेश में अच्छी सफलता मिल जाएगी. यदि साथ में राष्ट्रीय लोकदल भी आ जाए, तो भाजपा और सपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश में एक मजबूत गठबंधन होगा और ऐसे में कांग्रेस को ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर तो मिलेगा ही साथ ही उसकी सफलता भी ज्यादा हो सकती है. दूसरी बात लंबे अरसे से अल्पसंख्यक मतदाताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही रही है. कांग्रेस इस वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है. यदि सपा के साथ चुनाव लड़ा, तो यह वोट बैंक सपा के साथ ही रहेगा, जबकि कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प वही है और कांग्रेस ही देश को भाजपा की सत्ता से मुक्ति दिला सकती है. ऐसे में मुसलमान मतदाता उसे ही वोट देंगे.

कितने दिन रहीं मुख्यमंत्री
कितने दिन रहीं मुख्यमंत्री

राजनीतिक विश्लेषक डॉ एसटी मिश्र कहते हैं 'कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा-सपा गठबंधन में सीधी लड़ाई के बजाए त्रिकोणीय मुकाबला करना चाहेगी. यह कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है. हालांकि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ गठबंधन बनाना चाहती है. इस संबंध में दो बार की बैठकें भी हो चुकी हैं, जिनमें मायावती को बुलाया नहीं गया है. बावजूद इसके कांग्रेस बसपा और राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन की संभावनाएं तलाशती रहेगी. राजनीति में कहीं भी दरवाजे बंद नहीं होते और संभावनाओं से दरवाजे खुले रहते हैं. बसपा भी पहल भले ही न करें, किंतु उसे भी मालूम है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. यदि सफलता चाहिए, तो महत्वपूर्ण सहयोगी भी जरूरी हैं.'

यह भी पढ़ें : Mayawati : कांशीराम के परिनिर्वाण दिवस पर लगे "देश की मजबूरी है मायावती जरूरी है" के नारे, बसपा सुप्रीमो ने दिया ऐसा रीएक्शन

यह भी पढ़ें : Lok Sabha Election 2024 : भाजपा और विपक्ष के साथ मायावती नहीं करेंगी गठबंधन, पार्टी को मजबूत करने की तैयारी

लखनऊ : बहुजन समाज पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती (Bahujan Samaj Party) उत्तर प्रदेश की चार बार मुख्यमंत्री रही हैं. 2007 में उन्होंने पूर्ण बहुमत के साथ प्रदेश में अपनी सरकार बनाई थी. अपनी सरकार में मायावती ने कई ऐसे काम किए थे, जिनके कारण उन्होंने खूब सुर्खियां बटोरीं. माफिया के खिलाफ कार्रवाई का मामला हो या नौकरशाही पर नियंत्रण की बात, प्रदेश के कई जिलों में स्मारकों के निर्माण की बात हो या अपने जन्मदिवस पर महंगे उपहार लेने का प्रसंग, मायावती की खूब चर्चा हुई. उनकी सरकार के कई मंत्री लोकायुक्त जांच में दोषी पाए गए और उन्हें अपने पद भी गंवाने पड़े. बावजूद इसके उनके रुतबे में कमी नहीं आई, हालांकि 2012 के विधानसभा चुनावों से प्रदेश की राजनीति में ऐसी धारा बही कि धीरे-धीरे बसपा अपने अस्तित्व के संकट से जूझने लगी. आगामी लोकसभा चुनावों को देखते हुए लोग सवाल करने लगे हैं कि बहुजन समाज पार्टी इसके लिए कितनी तैयार है? क्या बसपा किसी गठबंधन की तलाश में है या वह अकेले ही चुनावी मैदान में उतरेगी.

लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में स्थिति
विधानसभा चुनाव में स्थिति



2024 के लिए बसपा की रणनीति जानने से पहले उसके अतीत के विषय में जानना जरूरी है. 2022 के विधानसभा चुनावों में बसपा को 12.81 प्रतिशत वोट मिले थे, लेकिन वह सिर्फ एक सीट ही जीतने में कामयाब हो पाई थी, वहीं 2017 के विधानसभा चुनावों में उसका मत प्रतिशत 22.24 था और तब पार्टी को प्रदेश की 22 सीटों पर सफलता मिली थी. 2012 में उसे 25.95 प्रतिशत वोट और 80 सीटों पर विजय मिली थी, जबकि 2007 में 30.43 प्रतिशत वोटों के साथ 206 विधानसभा सीटों पर जीत हासिल हुई थी. इस लिहाज से देखें तो बसपा के वोट लगातार घटे हैं, हालांकि साढ़े बारह प्रतिशत से ज्यादा वोट उसे हाल के चुनाव में भी हासिल हुए हैं. सीटें भले ही कम मिली हों, लेकिन मत प्रतिशत विपक्षी दलों को जरूर आकर्षित करने वाला है. यदि कुछ अन्य दलों के साथ मायावती मिलकर चुनाव लड़ें, तो उनका मत प्रतिशत और सीटें दोनों ही बढ़ सकती हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव इसका उदाहरण हैं. तब सपा और बसपा ने एक बेमेल गठबंधन किया था, जिसका बसपा को बड़ा फायदा मिला. 2014 में शून्य सीटों के मुकाबले बसपा को 2019 के लोकसभा चुनावों में 10 सीटें मिलीं. बावजूद इसके बसपा ने सपा से रिश्ता तोड़ लिया, जबकि गठबंधन का असल में नुकसान सपा को उठाना पड़ा था, क्योंकि उसे लोकसभा चुनाव में सिर्फ पांच सीटें ही मिली थीं. मायावती पहले भी अवसरवाद की राजनीति करती रही हैं. उन्हें भाजपा ने मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन भाजपा को उनसे हमेशा धोखा ही मिला.

विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन
विधानसभा चुनाव में बसपा का प्रदर्शन
लोकसभा चुनाव में यूपी की दलीय स्थिति
लोकसभा चुनाव में यूपी की दलीय स्थिति




2019 के लोकसभा चुनावों के अनुभव के बाद समाजवादी पार्टी किसी भी कीमत पर बसपा के साथ गठबंधन करने के लिए तैयार नहीं होंगे. ऐसे में बसपा के सामने कांग्रेस और लोकदल जैसे विपक्षी दलों का ही विकल्प है. कांग्रेस के कुछ नेताओं का मानना है कि अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश में अपनी शर्तों पर ही गठबंधन करेंगे, जबकि उत्तर प्रदेश से बाहर उनकी पार्टी का खास वजूद नहीं है. दूसरी बात हाल ही में मध्य प्रदेश में सीटों के बंटवारे से अखिलेश यादव कांग्रेस से खफा हैं. वह इसका बदला लोकसभा में यूपी के टिकट बंटवारे में निकाल सकते हैं. यही कारण है कि कांग्रेस भीतर खाने में सपा से निपटने के लिए अन्य विकल्पों पर विचार और मंथन कर रही है. पार्टी को लगता है कि यदि कांग्रेस कार्यकर्ता ठीक से मेहनत कर लेंगे और बसपा का वोट बैंक भी उसे मिल गया तो उसे प्रदेश में अच्छी सफलता मिल जाएगी. यदि साथ में राष्ट्रीय लोकदल भी आ जाए, तो भाजपा और सपा के खिलाफ उत्तर प्रदेश में एक मजबूत गठबंधन होगा और ऐसे में कांग्रेस को ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने का अवसर तो मिलेगा ही साथ ही उसकी सफलता भी ज्यादा हो सकती है. दूसरी बात लंबे अरसे से अल्पसंख्यक मतदाताओं की पहली पसंद समाजवादी पार्टी ही रही है. कांग्रेस इस वोट बैंक में सेंध लगाना चाहती है. यदि सपा के साथ चुनाव लड़ा, तो यह वोट बैंक सपा के साथ ही रहेगा, जबकि कांग्रेस नेतृत्व का मानना है कि राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा का विकल्प वही है और कांग्रेस ही देश को भाजपा की सत्ता से मुक्ति दिला सकती है. ऐसे में मुसलमान मतदाता उसे ही वोट देंगे.

कितने दिन रहीं मुख्यमंत्री
कितने दिन रहीं मुख्यमंत्री

राजनीतिक विश्लेषक डॉ एसटी मिश्र कहते हैं 'कांग्रेस पार्टी उत्तर प्रदेश में भाजपा-सपा गठबंधन में सीधी लड़ाई के बजाए त्रिकोणीय मुकाबला करना चाहेगी. यह कांग्रेस पार्टी के अस्तित्व के लिए भी जरूरी है. हालांकि पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा के खिलाफ गठबंधन बनाना चाहती है. इस संबंध में दो बार की बैठकें भी हो चुकी हैं, जिनमें मायावती को बुलाया नहीं गया है. बावजूद इसके कांग्रेस बसपा और राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन की संभावनाएं तलाशती रहेगी. राजनीति में कहीं भी दरवाजे बंद नहीं होते और संभावनाओं से दरवाजे खुले रहते हैं. बसपा भी पहल भले ही न करें, किंतु उसे भी मालूम है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता. यदि सफलता चाहिए, तो महत्वपूर्ण सहयोगी भी जरूरी हैं.'

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Last Updated : Oct 30, 2023, 7:55 PM IST
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