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केजीएमयू में किडनी ट्रांसप्लांट ठप, पीजीआई में लंबा इंतजार - लोहिया में किडनी ट्रांसप्लांट

राजधानी लखनऊ में किडनी ट्रांस्प्लांट के लिए मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ रहा है. राजधानी के प्रसिद्ध अस्पताल पीजीआई, लोहिया और केजीएमयू में किडनी ट्रांस्प्लांट के लिए महीनों और सालों की वेटिंग चल रही है. इससे मरीजों को काफी लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.

पीजीआई में लंबा इंतजार
पीजीआई में लंबा इंतजार
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Published : Mar 11, 2021, 5:55 PM IST

Updated : Jun 8, 2021, 5:22 PM IST

लखनऊ: शहर में किडनी रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है और शहर में समय पर इलाज मिलना मुश्किल होता जा रहा है. कारण यह है कि सरकारी संस्थानों में डायलिसिस के लिए वेटिंग है. इसके साथ ही किडनी ट्रांसप्लांट के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.

आज 11 मार्च को विश्व किडनी दिवस है. शहर के कई अस्पतालों में जागरूकता संबंधी कार्यक्रम आयोजित किए गए. पीजीआई, लोहिया में विशेषज्ञों ने रोगियों को बीमारी से बचाव के उपाय बताए. साथ ही इलाज की उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी दी. हालांकि संस्थान में डॉक्टरों और संसाधनों की कमी के कारण किडनी रोगियों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है. जिला अस्पतालों में नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं हैं. चिकित्सा संस्थानों में भी नेफ्रोलॉजी के चिकित्सकों का संकट है. ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.

एसपीजीआई में तीन साल की वेटिंग
राजधानी के एसजीपीजीआई में सबसे पहले किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया गया था. यहां एक साल में 120 से 130 मरीजों को किडनी ट्रांस्प्लांट की जाती है. 400 के करीब मरीजों का नाम वेटिंग लिस्ट में है. इसके बाद आने वाले मरीजों को तीन साल की वेटिंग दी जा रही है. लिहाजा गुर्दा प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांस्प्लांट) के मरीजों के लिए डायलिसिस ही एकमात्र सहारा है. समय पर ट्रांसप्लांट के लिए मरीज प्राइवेट में बड़ा खर्च करना होता है.

इसे भी पढ़ें : लखनऊ KGMU भर्ती घोटाला: खुलासा होते ही छुट्टी पर गए कुलपति-कुलसचिव

लोहिया संस्थान में तीन माह की वेटिंग
लोहिया संस्थान में कुछ समय पहले ही किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया गया है. यहां के यूरोलॉजी में तीन फैकल्टी हैं. नेफ्रोलॉजी में दो फैकल्टी हैं. ऑपरेशन थियेटर कम हैं. ऐसे में महीने में चार-पांच मरीजों को ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पा रही हैं. मरीजों की तीन माह की वेटिंग चल रही है. यूरोलॉजी के विभागाध्यक डॉ. ईश्वर राम धयाल के मुताबिक, जांच और नियमों को पूरा कर उपलब्ध संसाधनों के आधार पर समय पर मरीजों का ट्रांसप्लांट किया जा रहा है.

केजीएमयू में सात साल से ट्रांसप्लांट ठप
केजीएमयू में ऑर्गन ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट बनाया गया है. वर्ष 2014 में संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू हुआ, लेकिन अव्यवस्था के चलते डॉक्टरों का संस्थान से पलायन शुरू हो गया. किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट यूरोलॉजी के डॉक्टर और नेफ्रोलॉजिस्ट ने निजी अस्पताल ज्वॉइन कर लिया है. किडनी ट्रांसप्लांट ठप होने से करोड़ों रुपये के संसाधनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. मीडिया प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि जल्द ही डॉक्टरों की भर्ती कर सुविधा को शुरू किया जाएगा.

लखनऊ: शहर में किडनी रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है और शहर में समय पर इलाज मिलना मुश्किल होता जा रहा है. कारण यह है कि सरकारी संस्थानों में डायलिसिस के लिए वेटिंग है. इसके साथ ही किडनी ट्रांसप्लांट के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.

आज 11 मार्च को विश्व किडनी दिवस है. शहर के कई अस्पतालों में जागरूकता संबंधी कार्यक्रम आयोजित किए गए. पीजीआई, लोहिया में विशेषज्ञों ने रोगियों को बीमारी से बचाव के उपाय बताए. साथ ही इलाज की उपलब्ध सुविधाओं के बारे में जानकारी दी. हालांकि संस्थान में डॉक्टरों और संसाधनों की कमी के कारण किडनी रोगियों को समय पर इलाज नहीं मिल पा रहा है. जिला अस्पतालों में नेफ्रोलॉजिस्ट नहीं हैं. चिकित्सा संस्थानों में भी नेफ्रोलॉजी के चिकित्सकों का संकट है. ऐसे में मरीजों को इलाज के लिए लंबा इंतजार करना पड़ रहा है.

एसपीजीआई में तीन साल की वेटिंग
राजधानी के एसजीपीजीआई में सबसे पहले किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया गया था. यहां एक साल में 120 से 130 मरीजों को किडनी ट्रांस्प्लांट की जाती है. 400 के करीब मरीजों का नाम वेटिंग लिस्ट में है. इसके बाद आने वाले मरीजों को तीन साल की वेटिंग दी जा रही है. लिहाजा गुर्दा प्रत्यारोपण (किडनी ट्रांस्प्लांट) के मरीजों के लिए डायलिसिस ही एकमात्र सहारा है. समय पर ट्रांसप्लांट के लिए मरीज प्राइवेट में बड़ा खर्च करना होता है.

इसे भी पढ़ें : लखनऊ KGMU भर्ती घोटाला: खुलासा होते ही छुट्टी पर गए कुलपति-कुलसचिव

लोहिया संस्थान में तीन माह की वेटिंग
लोहिया संस्थान में कुछ समय पहले ही किडनी ट्रांसप्लांट शुरू किया गया है. यहां के यूरोलॉजी में तीन फैकल्टी हैं. नेफ्रोलॉजी में दो फैकल्टी हैं. ऑपरेशन थियेटर कम हैं. ऐसे में महीने में चार-पांच मरीजों को ही किडनी ट्रांसप्लांट हो पा रही हैं. मरीजों की तीन माह की वेटिंग चल रही है. यूरोलॉजी के विभागाध्यक डॉ. ईश्वर राम धयाल के मुताबिक, जांच और नियमों को पूरा कर उपलब्ध संसाधनों के आधार पर समय पर मरीजों का ट्रांसप्लांट किया जा रहा है.

केजीएमयू में सात साल से ट्रांसप्लांट ठप
केजीएमयू में ऑर्गन ट्रांसप्लांट डिपार्टमेंट बनाया गया है. वर्ष 2014 में संस्थान में किडनी ट्रांसप्लांट शुरू हुआ, लेकिन अव्यवस्था के चलते डॉक्टरों का संस्थान से पलायन शुरू हो गया. किडनी ट्रांसप्लांट एक्सपर्ट यूरोलॉजी के डॉक्टर और नेफ्रोलॉजिस्ट ने निजी अस्पताल ज्वॉइन कर लिया है. किडनी ट्रांसप्लांट ठप होने से करोड़ों रुपये के संसाधनों का उपयोग नहीं हो पा रहा है. मीडिया प्रवक्ता डॉ. सुधीर सिंह ने कहा कि जल्द ही डॉक्टरों की भर्ती कर सुविधा को शुरू किया जाएगा.

Last Updated : Jun 8, 2021, 5:22 PM IST
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