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उर्दू, अरबी और फारसी पर घमासान, राजभवन से अनिवार्यता समाप्त करने की अनुमति मांगी

ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने स्नातक स्तर पर उर्दू, अरबी या फारसी भाषा पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त करने के लिए राजभवन से अनुमति मांगी है. अनुमति मिलने पर छात्रों को नये विषय पढ़ने का विकल्प मिल सकता है.

लखनऊ
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Published : Mar 20, 2021, 9:12 PM IST

लखनऊः ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने स्नातक स्तर पर उर्दू, अरबी या फारसी भाषा पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त करने के लिए राजभवन से अनुमति मांगी है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर शनिवार को इस संबंध में राजभवन से अनुमति मांगी गई. अनुमति मिली तो इस विश्वविद्यालय में स्नातर स्तर पर उर्दू, अरबी, फारसी पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी. छात्रों को अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानीज तथा अन्य विदेशी भाषाएं एवं 'इंट्रोडक्शन टू हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ लैंग्वेजेज' विषय पढ़ने का विकल्प मिलेगा.

एक साल में बदल गया स्वरूप
इस विश्वविद्यालय को हमेशा एक धर्म समुदाय से जोड़कर देखा जाता रहा है. इधर, पिछले एक साल में इसका स्वरूप बदला जा रहा है. पिछले वर्ष इसके नाम में परिवर्तन किया गया. ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी व फारसी विश्वविद्यालय से इसका नाम बदलकर ख्वाजा मुईनुद्दीन भाषा विश्वविद्यालय किया गया. अभी तक इस विश्वविद्यालय के लोगो में उर्दू का इस्तेमाल होता था. एक मार्च को नया लोगो जारी किया गया. इसमें उर्दू को हटा दिया गया. इसको लेकर काफी नाराजगी भी है.

कार्यपरिषद से लग चुकी है मुहर
भाषा विश्वविद्यालय की मीडिया प्रभारी डॉ. तनु डंग ने बताया कि विश्वविद्यालय की परिनियमावली के अनुसार स्नातक स्तर पर सभी विद्यार्थियों को उर्दू, अरबी या फारसी भाषाओं के प्रारंभिक स्तरीय अध्ययन को अनिवार्य किया गया है. बीती 5 फरवरी की कार्यपरिषद की बैठक में इस अनिवार्यता को समाप्त करने की अनुमति दे दी गई.

इसे भी पढ़ेंः यूनेस्को सूची में शामिल होगा सारनाथ का पुरातात्विक खंडहर परिसर, भेजा जाएगा प्रस्ताव

बैठक में लिया गया था यह फैसला
कार्यपरिषद द्वारा यह निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना 12 मार्च 2020 के अनुसार विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तित कर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय किया गया है एवं इस परिप्रेक्ष्य में यह अनिवार्य है कि विश्वविद्यालय द्वारा सभी भाषाओं को बढ़ावा देने का समुचित प्रयास किया जाए. विश्वविद्यालय में टरकिश, पाली, प्राकृत एवं विभिन्न विदेशी भाषाओं के रोज़गारपरक पाठ्यक्रम तैयार करने एवं उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन भी किया गया है. इसी संदर्भ में कार्यपरिषद द्वारा यह निर्णय लिया गया कि परिनियमावली की परिनियम संख्या 7.10 में परिवर्तन कर अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानीज तथा अन्य विदेशी भाषाएं एवं 'इंट्रोडक्शन टू हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ़ लैंग्वेजइज़' विषय को सम्मिलित किया जाए.

बदलाव से एक तबके में है नाराजगी
विश्वविद्यालय में हो रहे इन बदलावों को लेकर काफी नाराजगी भी है. एक पक्ष लगातार इन बदलावों का विरोध कर रहा है. इनका कहना है कि उर्दू, अरबी, फारसी इस विश्वविद्यालय के मूल स्वरूप में है. ऐसे में इनकी अनिवार्यता को खत्म करके इन भाषाओं के साथ गलत किया जा रहा है. बता दें, विश्वविद्यालय में हो रहे इन बदलावों को लेकर पहले ही कुलाधिपति कार्यालय में आपत्तियां दर्ज कराई गई हैं.

लखनऊः ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय ने स्नातक स्तर पर उर्दू, अरबी या फारसी भाषा पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त करने के लिए राजभवन से अनुमति मांगी है. विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर शनिवार को इस संबंध में राजभवन से अनुमति मांगी गई. अनुमति मिली तो इस विश्वविद्यालय में स्नातर स्तर पर उर्दू, अरबी, फारसी पढ़ने की अनिवार्यता समाप्त हो जाएगी. छात्रों को अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानीज तथा अन्य विदेशी भाषाएं एवं 'इंट्रोडक्शन टू हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ लैंग्वेजेज' विषय पढ़ने का विकल्प मिलेगा.

एक साल में बदल गया स्वरूप
इस विश्वविद्यालय को हमेशा एक धर्म समुदाय से जोड़कर देखा जाता रहा है. इधर, पिछले एक साल में इसका स्वरूप बदला जा रहा है. पिछले वर्ष इसके नाम में परिवर्तन किया गया. ख्वाजा मुईनुद्दीन चिश्ती उर्दू, अरबी व फारसी विश्वविद्यालय से इसका नाम बदलकर ख्वाजा मुईनुद्दीन भाषा विश्वविद्यालय किया गया. अभी तक इस विश्वविद्यालय के लोगो में उर्दू का इस्तेमाल होता था. एक मार्च को नया लोगो जारी किया गया. इसमें उर्दू को हटा दिया गया. इसको लेकर काफी नाराजगी भी है.

कार्यपरिषद से लग चुकी है मुहर
भाषा विश्वविद्यालय की मीडिया प्रभारी डॉ. तनु डंग ने बताया कि विश्वविद्यालय की परिनियमावली के अनुसार स्नातक स्तर पर सभी विद्यार्थियों को उर्दू, अरबी या फारसी भाषाओं के प्रारंभिक स्तरीय अध्ययन को अनिवार्य किया गया है. बीती 5 फरवरी की कार्यपरिषद की बैठक में इस अनिवार्यता को समाप्त करने की अनुमति दे दी गई.

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बैठक में लिया गया था यह फैसला
कार्यपरिषद द्वारा यह निर्णय लिया गया कि उत्तर प्रदेश शासन की अधिसूचना 12 मार्च 2020 के अनुसार विश्वविद्यालय का नाम परिवर्तित कर ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय किया गया है एवं इस परिप्रेक्ष्य में यह अनिवार्य है कि विश्वविद्यालय द्वारा सभी भाषाओं को बढ़ावा देने का समुचित प्रयास किया जाए. विश्वविद्यालय में टरकिश, पाली, प्राकृत एवं विभिन्न विदेशी भाषाओं के रोज़गारपरक पाठ्यक्रम तैयार करने एवं उन्हें बढ़ावा देने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन भी किया गया है. इसी संदर्भ में कार्यपरिषद द्वारा यह निर्णय लिया गया कि परिनियमावली की परिनियम संख्या 7.10 में परिवर्तन कर अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन, जापानीज तथा अन्य विदेशी भाषाएं एवं 'इंट्रोडक्शन टू हिस्ट्री एंड कल्चर ऑफ़ लैंग्वेजइज़' विषय को सम्मिलित किया जाए.

बदलाव से एक तबके में है नाराजगी
विश्वविद्यालय में हो रहे इन बदलावों को लेकर काफी नाराजगी भी है. एक पक्ष लगातार इन बदलावों का विरोध कर रहा है. इनका कहना है कि उर्दू, अरबी, फारसी इस विश्वविद्यालय के मूल स्वरूप में है. ऐसे में इनकी अनिवार्यता को खत्म करके इन भाषाओं के साथ गलत किया जा रहा है. बता दें, विश्वविद्यालय में हो रहे इन बदलावों को लेकर पहले ही कुलाधिपति कार्यालय में आपत्तियां दर्ज कराई गई हैं.

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