लखनऊः जिस उम्र में युवा अपने करियर के बारे में गंभीरता से सोच भी नहीं पाते हैं, उस उम्र में देश की रक्षा के लिए राइफलमैन सुनील जंग (Rifleman Sunil Jung) सेना में भर्ती हो गए थे. 16 की उम्र में सेना में भर्ती हुए राइफलमैन सुनील जंग करगिल विजय (Kargil Vijay) के हीरो थे. सुनील जंग कारगिल युद्ध (Kargil War) में ऐसे युवा राइफलमैन थे, जिन्होंने सबसे पहले दुश्मन सेना का सामना किया और बहादुरी से सामना करते हुए वीरगति को प्राप्त हो गए थे. देशवासियों को राइफलमैन सुनील जंग की शहादत पर नाज है. कारगिल विजय दिवस (Kargil Vijay Diwas) के उपलक्ष्य में ETV BHARAT ने शहीद राइफलमैन सुनील जंग की मां से बात की. उन्हें अपने बेटे की बहादुरी पर नाज है, लेकिन सरकार की तरफ से किए गए वादों को अब तक न पूरे किए जाने का मलाल भी है.
राइफलमैन सुनील जंग की तस्वीर दिखातीं मां बीना महत. बचपन में ही थी वर्दी और बंदूक की जिद
राइफलमैन सुनील सिंह की मां बीना महत बताती हैं कि सुनील ने अपने दादा और पिता की तरह सेना में बचपन से ही भर्ती होने का फैसला ले लिया था. उसके दादा मेजर नकुल जंग महत ने 1962 में चीन के साथ हुए युद्ध में हिस्सा लेकर अपनी बहादुरी का परिचय दिया था. वहीं, सुनील के पिता नर नारायण जंग ने गोरखा राइफल्स में साल 1971 ने पाकिस्तान के साथ हुई लड़ाई में हिस्सा लिया था. बीना महत बताती हैं कि सुनील स्कूली शिक्षा के दौरान ही सेना में जाने का फैसला कर चुके थे. वह एक किस्सा सुनाती हैं कि स्कूल में एक ड्रामा प्ले चल रहा था, जिसमें अन्य बच्चे रंग बिरंगी ड्रेस में नजर आ रहे थे. जबकि सुनील ने सेना की वर्दी पहनने की जिद कर रखी थी. उसे जब वर्दी दिलाई गई, तब जाकर माना. इतना ही नहीं वर्दी के अलावा बेटे ने बंदूक के भी जिद कर दी. तब उसे आर्टिफिशियल बंदूक दी गई, तब जाकर ड्रामा में हिस्सा लिया.
शहादत पर किए कई वादे, निभाया एक भी नहीं
बीना महत ETV BHARAT से फोन पर बात करते हुए ही बेटे को याद कर भावुक हो जाती हैं. उनका कहना है कि मेरा एक ही बेटा था, जो देश के लिए कुर्बान हो गया. बेटे की बहुत याद आती है. सुनील कारगिल युद्ध में सबसे पहले शहीद हुआ था. यह खबर मिलते ही जैसे मेरा सब कुछ लुट गया था. उसकी दो बहने हैं. एक बहन की तो शादी हो चुकी है, लेकिन दूसरी अभी पढ़ाई कर रही है. जब सुनील जंग देश के लिए शहीद हुआ तो उस समय तमाम नेताओं ने कई सारे वादे किए थे. लेकिन किसी ने सुनील की शहादत पर किए गए किसी भी वादे को नहीं निभाया. बेटे के नाम पर न बनी सड़क और न ही हॉस्पिटल
बीना महत बताती हैं कि जब सुनील कारगिल युद्ध में देश के लिए शहीद हुआ तो घर पर नेताओं का जमावड़ा लग गया था. सभी ने उनकी शहादत को नमन किया और उस समय वादा किया था कि सुनील जंग के नाम पर हॉस्पिटल और सड़क बनाई जाएगी. बड़ी मूर्ति लगेगी और स्कूल का नाम सुनील जंग के नाम पर रखा जाएगा. लेकिन अभी तक कुछ भी ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से वादा किया गया था कि शहीद सुनील जंग की शहादत को भुलाया नहीं जाएगा. घर के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दी जाएगी. सुनील को गुजरे हुए 21 साल से ज्यादा समय हो गया है. उसकी बहन B.ed भी कर चुकी है, लेकिन सरकार ने अपना वादा अब तक नहीं निभाया है. बहन को नौकरी तक नहीं मिल पाई है. मेरी सरकार से गुजारिश है कि कम से कम परिवार के एक सदस्य को नौकरी देकर अपना वादा तो निभा दे. 16 साल की उम्र में सेना में हो गए थे भर्ती
बता दें कि 1999 में कारगिल युद्ध में हिस्सा लेने वाले राइफलमैन सुनील जंग कम उम्र में शहीद हो गए थे. वे गोरखा राइफल्स में साल 1995 में महज 16 साल की उम्र में ही भर्ती हो गए थे. मई 1999 में जब कारगिल का युद्ध शुरू हुआ तो उन्हें अपनी बटालियन की तरफ से कारगिल सेक्टर में पहुंचने का आदेश मिला. कारगिल में वे अपनी टुकड़ी के साथ आगे बढ़ रहे थे. तीन दिनों तक पहाड़ों पर बैठे दुश्मन देश के जवानों ने भीषण गोलाबारी की थी. सुनील जंग ने बहादुरी के साथ इनसे लोहा लिया लेकिन एक गोली उनको लग गई जिसके चलते शहीद हो गए थे.
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