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कबीर एक नाम नहीं, एक विचार धारा है: दीपक कबीर - दीपक कबीर

राजधानी लखनऊ में चार दिवसीय कबीर फेस्टिवल का चौथा सीजन 22 नवंबर से चल रहा है. इस फेस्टिवल में देशभर के संस्कृतिकर्मी और सामाजिक कार्यकर्ता देश की कला और संस्कृति का प्रदर्शन कर रहे हैं.

कबीर फेस्टिवल
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Published : Nov 25, 2019, 3:42 AM IST

लखनऊ: राजधानी में एक बार फिर कबीर फेस्टिवल युवाओं को अपने रंग में रंग चुका है. फेस्टिवल में युवाओं की प्रतिभा के नए-नए रंग दिख रहे हैं. उनकी नई-नई प्रतिभा लोगों के दिलों में घर कर रही है. खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले इस कबीर फेस्टिवल में सिर्फ एक शहर से नहीं, बल्कि अलग-अलग प्रांतों से भी लोग आ रहे हैं और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं.

कबीर फेस्टिवल में जुटे देशभर के कलाकार.
कबीर एक विचार धारा है
फेस्टिवल के संस्थापक दीपक कबीर कहते हैं कि कबीर एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार हैं, एक आइकॉन हैं, एक प्रेरणा हैं, जो पाखंडों के खिलाफ बात करता है, लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करता है और युवाओं को अपना हक पाने की बात करता है. इसलिए इस फेस्टिवल का नाम कबीर फेस्टिवल रखा गया है और पिछले 4 वर्षों में यह युवाओं में बहुत लोकप्रिय साबित हुआ है. कबीर फेस्टिवल का स्लोगन भी 'फेस्टिवल ऑफ ह्यूमैनिटी फिलॉसफी एंड फ्रेंडशिप' रखा गया है.
पंजाब से आईं है जहांगीत
कबीर फेस्टिवल के चौथे सीजन में पंजाब की महज 21 वर्ष की एक ढोल बजाने वाली लड़की जहांगीत सिंह भी आई हैं. उन्होंने बताया कि वह लखनऊ पहली बार आई हैं. जहांगीत बताती हैं कि वह पिछले 9 वर्षों से ढोल बजा रही हैं और तमाम तरह के कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर चुकी हैं.

इसे भी पढ़ें - पॉप स्टार कैटी पेरी म्यूजिक फेस्टिवल के लिए पहुंची मुंबई

रविवार को फेस्टिवल में युवाओं की एक टोली ने संविधान पर एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया. इस नाटक के जरिए उन्होंने संविधान के कुछ अहम बातों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया.

लखनऊ: राजधानी में एक बार फिर कबीर फेस्टिवल युवाओं को अपने रंग में रंग चुका है. फेस्टिवल में युवाओं की प्रतिभा के नए-नए रंग दिख रहे हैं. उनकी नई-नई प्रतिभा लोगों के दिलों में घर कर रही है. खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले इस कबीर फेस्टिवल में सिर्फ एक शहर से नहीं, बल्कि अलग-अलग प्रांतों से भी लोग आ रहे हैं और अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं.

कबीर फेस्टिवल में जुटे देशभर के कलाकार.
कबीर एक विचार धारा है
फेस्टिवल के संस्थापक दीपक कबीर कहते हैं कि कबीर एक नाम नहीं, बल्कि एक विचार हैं, एक आइकॉन हैं, एक प्रेरणा हैं, जो पाखंडों के खिलाफ बात करता है, लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करता है और युवाओं को अपना हक पाने की बात करता है. इसलिए इस फेस्टिवल का नाम कबीर फेस्टिवल रखा गया है और पिछले 4 वर्षों में यह युवाओं में बहुत लोकप्रिय साबित हुआ है. कबीर फेस्टिवल का स्लोगन भी 'फेस्टिवल ऑफ ह्यूमैनिटी फिलॉसफी एंड फ्रेंडशिप' रखा गया है.
पंजाब से आईं है जहांगीत
कबीर फेस्टिवल के चौथे सीजन में पंजाब की महज 21 वर्ष की एक ढोल बजाने वाली लड़की जहांगीत सिंह भी आई हैं. उन्होंने बताया कि वह लखनऊ पहली बार आई हैं. जहांगीत बताती हैं कि वह पिछले 9 वर्षों से ढोल बजा रही हैं और तमाम तरह के कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर चुकी हैं.

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रविवार को फेस्टिवल में युवाओं की एक टोली ने संविधान पर एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया. इस नाटक के जरिए उन्होंने संविधान के कुछ अहम बातों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित किया.

Intro:लखनऊ। राजधानी में एक बार फिर कबीर फेस्टिवल युवाओं को अपने रंग में रंग चुका है तबीयत से बल में होने वाले हर तरह के आयोजन में युवाओं के नए नए रंग दिख रहे हैं उनकी नई नई प्रतिभा लोगों के दिलों में घर कर रही है और उनके उड़ान को पंख भी मिल रहे हैं खास बात यह है कि उत्तर प्रदेश में होने वाले इस कबीर फेस्टिवल में सिर्फ एक शहर से नहीं बल्कि अलग-अलग प्रांतों से लोग आ रहे हैं अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन कर रहे हैं और लोगों का दिल जीत रहे हैं।


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कभी फेस्टिवल के संस्थापक दीपक कबीर कहते हैं कि कबीर एक नाम है एक विचार है एक आइकन है एक प्रेरणा है जो प्रखंडों के खिलाफ बात करता है लोकतांत्रिक अधिकारों की बात करता है और युवाओं को अपना हक पाने की बात करता है इसलिए इस फेस्टिवल का नाम कबीर फेस्टिवल रखा गया है और पिछले 4 वर्षों में यह युवाओं में खासा लोकप्रिय साबित हुआ है कबीर फेस्टिवल का स्लोगन भी 'फेस्टिवल ऑफ ह्यूमैनिटी फिलॉसफी एंड फ्रेंडशिप' रखा गया है ताकि यहां युवा आए नहीं नहीं प्रतिभा दिखाएं, नए हुनर को सीखें और इस फेस्टिवल से अपने साथ कुछ न कुछ एक ऐसा लेकर जाएं जो उनके दिल में ताउम्र एक बेहतरीन याद बनकर रह जाए।

कबीर फेस्टिवल के चौथे सीजन में पंजाब की महज 21 वर्ष की एक ढोल बजाने वाली लड़की जहांगीत सिंह भी आई थी। यहां पर उन्होंने बताया कि वह लखनऊ पहली बार आई है और ढोल बजाकर समाज में चल रही एक सोच को बदलने की ओर अग्रसर है। वह कहती है कि यहां पर लोग सोचते हैं कि ढोल बजाने का काम सिर्फ लड़कों का है और लड़कियां इस काम को नहीं कर सकती। मैं पिछले 9 वर्षों से ढोल बजा रही हूं और तमाम तरह के कार्यक्रमों में प्रतिभाग कर चुकी हूं और मुझे लगता है कि मेरा यह कदम तमाम लड़कियों की जिंदगी में बदलाव लेकर आएगा।


Conclusion:इस फेस्टिवल में आज युवाओं की एक टोली ने संविधान पर एक नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया इस नाटक के जरिए उन्होंने लोगों को संविधान के कुछ अहम बातों की ओर ध्यान आकर्षित किया इसके अलावा एक मनुष्य के जीवन के छह मौलिक अधिकारों के बारे में भी जागरूक करने की कोशिश की।

बाइट- दीपक कबीर, संस्थापक, कबीर फेस्टिवल
बाइट- जहाँगीत सिंह, पंजाब

रामांशी मिश्रा
9598003584
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