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JUVENILE OFFENDER : बड़ों बड़ों के कान काट रहा 'बच्चा गैंग', कम सजा का फायदा उठा रहे सरगना - juvenile offender

कानून के समक्ष नाबालिग (JUVENILE OFFENDER ) होने की बात साबित कर समाज में मौजूद आपराधिक सरगना बच्चों की मनोवृत्ति और उनकी जरूरतों का लालच देकर अपराध करा रहे हैं. यूपी राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के अनुसार अबतक जितने भी खुलासे किए गए हैं. उन सभी में एक बात लगभग कामन रही कि बच्चों से अपराध कराने के पीछे कोई शातिर ही काम कर रहा था.

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Published : Jan 13, 2023, 6:15 PM IST

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में नाबालिग अपने शौक पूरा करने के लिए चोरी, लूट समेत अन्य आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. बीते दिनों लखनऊ, मेरठ व बाराबंकी समेत कई जिलों में ऐसे बच्चा चोर गैंग को पुलिस ने पकड़ा था, जो बंद घरों में चोरी करता था. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात की तस्दीक भी करते हैं. औसतन देश में हर साल 34 हजार बच्चे अपराध की वारदातों में गिरफ्तार होते हैं. नाबालिग की सजा सिर्फ अधिकतम 3 साल होती है, इसलिए गैंग इन्हें शामिल कर लेते हैं.

बच्चा गैंग
बच्चा गैंग

बीते महीने राजधानी की अलीगंज पुलिस ने बंद घरों में चोरी करने वाले बच्चा चोर गैंग का खुलासा करते हुए दो किशोरों को पकड़ा था. पुलिस के मुताबिक पकड़े गए बच्चा चोर गैंग के दो किशोर बंद घरों को निशाना बनाते थे. कम उम्र होने के चलते लोग इन पर शक नहीं करते थे. पुलिस अधिकारी बताते हैं कि ये बच्चे महज मोहरे थे. इन्हें रिमोट गैंग के अन्य सदस्य करते हैं. डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक कहती है कि चंद रुपयों का लालच देकर बच्चों को अपराध की दुनिया में उतारा जा रहा है. गैंग के मास्टर माइंड उन्हें टूल की तरह यूज करते हैं. उन्होंने बताया कि पारा इलाके में इससे पहले भी पुलिस ने ऐसे ही एक दर्जन नाबालिगों को पकड़ा था. पारा के बादलखेड़ा में रहने वाले गैंग लीडर रमेश के इशारे पर ये चोरी की वारदातों को अंजाम देते थे.


चोरी की वारदात का मेहनताना : डीसीपी बताती है कि पूछताछ में गैंग लीडर ने बताया कि नाबालिग को चोरी की वारदात के बदले पांच सौ से एक हजार रुपये दिए जाते थे. चंद रुपये के लालच में नाबालिग उनके झांसे में आ जाते हैं. यही नहीं गैंग लीडर उन बच्चों को एक सप्ताह के लिए ट्रेनिंग भी देते थे, जिसमें ताला तोड़ने की ट्रिक, रेकी की तरीके, अगर पुलिस या फिर कोई घर का सदस्य आ जाए तो कैसे और किन रास्तों से भागा जाएं. इस ट्रेनिंग का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है. पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करना और गैंग के विषय में चुप्पी साधना. इससे गैंग लीडर बच जाते हैं और नाबालिगों को आसानी से बचा लेते हैं.

बाराबंकी पुलिस ने जून 2021 को एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया था, जिसका सरगना नाबालिग है. यह गिरोह सड़कों पर घूम रहे लोगों के पास मौजूद मोबाइल और गले में सोने की चेन को देखकर उन्हें लूटकर फरार हो जाता था या फिर किसी बेंक्यूट हॉल में घुस कर सोने के आभूषण गायब कर देते थे. उनके इस गिरोह में 500 से अधिक नाबालिग शामिल थे. मेरठ पुलिस ने अप्रैल 2022 को बच्चों से बाइक चोरी करवाने वाले तीन शातिर वाहन चोरों को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने गिरोह के सरगना मोहम्मद सूफियान, उसके पड़ोसी मोहम्मद आसिफ उर्फ मतीन अहमद को पकड़ा था. इस मामले में तीन नाबालिग बच्चों को भी गिरफ्तार किया गया. ये गिरोह नाबालिगों को सुनसान इलाके में खड़ी कार व बाइक की पहले रेकी करवाता फिर उसका लॉक भी उन्हीं बच्चों से तुड़वा देता था. बाद में गैंग लीडर व सदस्य आकर गाड़ी उड़ा ले जाते थे.

अपराधियों की तरह सजा नहीं : राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी बताती है कि नाबालिग को बालिग अपराधियों की तरह सजा नहीं मिलती है. वह कुछ दिन सुधार गृह में बिताने के बाद वे आजाद हो जाते हैं. इन्हें अधिकतम 3 साल की ही सजा होती है. इस बात की जानकारी गैंग लीडर को बखूबी होती है. इसी लिए वो उनका फायदा उठाते हैं. सुचिता बताती हैं कि सम्प्रेषण केंद्र में जब वो वहां निरुद्ध नाबालिगों से बात करती हैं तो बच्चे बताते हैं कि उन्हें सिर्फ वहां मौजूद रहने व रेकी करने के लिए रखा जाता है. चोरी कर गैंग लीडर तो भाग जाते हैं, लेकिन वो पकड़े जाते हैं.

शौक पूरा करने के लिए गैग में शामिल हो रहे नाबालिग : राजधानी में वन स्टॉप की काउंसलर सोनम श्रीवास्तव के मुताबिक चोरी की वारदातों में अधिकतर दो तरह के नाबालिग होते हैं. एक वो जो पढ़ाई से वंचित रहते हैं और उनके पास काफी वक्त रहता है. दूसरे ऐसे जिनके शौक तो बड़े होते हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होती है. उन्होंने बताया कि अपराध करने वाले नाबालिगों से कॉउंसिलिंग करने के समय उनसे बात करने पर कई बार सामने आया है कि छोटी उम्र में ही महंगे कपड़े, महिला मित्रों को गिफ्ट देने या महंगे मोबाइल व वीडियो गेम खरीदने के लिए वो चोरी की वारदातों को अंजाम देते हैं. इसके लिए वे एक चेन के जरिये चोरी करने वाले गैंग के संपर्क में आते हैं.

यह भी पढ़ें : Khelo India University Games : यूपी में रखी जाएगी ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स के आयोजनों की नींव

राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी

लखनऊ : उत्तर प्रदेश में नाबालिग अपने शौक पूरा करने के लिए चोरी, लूट समेत अन्य आपराधिक वारदातों को अंजाम दे रहे हैं. बीते दिनों लखनऊ, मेरठ व बाराबंकी समेत कई जिलों में ऐसे बच्चा चोर गैंग को पुलिस ने पकड़ा था, जो बंद घरों में चोरी करता था. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आंकड़े इस बात की तस्दीक भी करते हैं. औसतन देश में हर साल 34 हजार बच्चे अपराध की वारदातों में गिरफ्तार होते हैं. नाबालिग की सजा सिर्फ अधिकतम 3 साल होती है, इसलिए गैंग इन्हें शामिल कर लेते हैं.

बच्चा गैंग
बच्चा गैंग

बीते महीने राजधानी की अलीगंज पुलिस ने बंद घरों में चोरी करने वाले बच्चा चोर गैंग का खुलासा करते हुए दो किशोरों को पकड़ा था. पुलिस के मुताबिक पकड़े गए बच्चा चोर गैंग के दो किशोर बंद घरों को निशाना बनाते थे. कम उम्र होने के चलते लोग इन पर शक नहीं करते थे. पुलिस अधिकारी बताते हैं कि ये बच्चे महज मोहरे थे. इन्हें रिमोट गैंग के अन्य सदस्य करते हैं. डीसीपी अपर्णा रजत कौशिक कहती है कि चंद रुपयों का लालच देकर बच्चों को अपराध की दुनिया में उतारा जा रहा है. गैंग के मास्टर माइंड उन्हें टूल की तरह यूज करते हैं. उन्होंने बताया कि पारा इलाके में इससे पहले भी पुलिस ने ऐसे ही एक दर्जन नाबालिगों को पकड़ा था. पारा के बादलखेड़ा में रहने वाले गैंग लीडर रमेश के इशारे पर ये चोरी की वारदातों को अंजाम देते थे.


चोरी की वारदात का मेहनताना : डीसीपी बताती है कि पूछताछ में गैंग लीडर ने बताया कि नाबालिग को चोरी की वारदात के बदले पांच सौ से एक हजार रुपये दिए जाते थे. चंद रुपये के लालच में नाबालिग उनके झांसे में आ जाते हैं. यही नहीं गैंग लीडर उन बच्चों को एक सप्ताह के लिए ट्रेनिंग भी देते थे, जिसमें ताला तोड़ने की ट्रिक, रेकी की तरीके, अगर पुलिस या फिर कोई घर का सदस्य आ जाए तो कैसे और किन रास्तों से भागा जाएं. इस ट्रेनिंग का सबसे महत्वपूर्ण भाग होता है. पुलिस के सामने अपराध स्वीकार करना और गैंग के विषय में चुप्पी साधना. इससे गैंग लीडर बच जाते हैं और नाबालिगों को आसानी से बचा लेते हैं.

बाराबंकी पुलिस ने जून 2021 को एक ऐसे गिरोह का पर्दाफाश किया था, जिसका सरगना नाबालिग है. यह गिरोह सड़कों पर घूम रहे लोगों के पास मौजूद मोबाइल और गले में सोने की चेन को देखकर उन्हें लूटकर फरार हो जाता था या फिर किसी बेंक्यूट हॉल में घुस कर सोने के आभूषण गायब कर देते थे. उनके इस गिरोह में 500 से अधिक नाबालिग शामिल थे. मेरठ पुलिस ने अप्रैल 2022 को बच्चों से बाइक चोरी करवाने वाले तीन शातिर वाहन चोरों को गिरफ्तार किया था. पुलिस ने गिरोह के सरगना मोहम्मद सूफियान, उसके पड़ोसी मोहम्मद आसिफ उर्फ मतीन अहमद को पकड़ा था. इस मामले में तीन नाबालिग बच्चों को भी गिरफ्तार किया गया. ये गिरोह नाबालिगों को सुनसान इलाके में खड़ी कार व बाइक की पहले रेकी करवाता फिर उसका लॉक भी उन्हीं बच्चों से तुड़वा देता था. बाद में गैंग लीडर व सदस्य आकर गाड़ी उड़ा ले जाते थे.

अपराधियों की तरह सजा नहीं : राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग की सदस्य डॉ. सुचिता चतुर्वेदी बताती है कि नाबालिग को बालिग अपराधियों की तरह सजा नहीं मिलती है. वह कुछ दिन सुधार गृह में बिताने के बाद वे आजाद हो जाते हैं. इन्हें अधिकतम 3 साल की ही सजा होती है. इस बात की जानकारी गैंग लीडर को बखूबी होती है. इसी लिए वो उनका फायदा उठाते हैं. सुचिता बताती हैं कि सम्प्रेषण केंद्र में जब वो वहां निरुद्ध नाबालिगों से बात करती हैं तो बच्चे बताते हैं कि उन्हें सिर्फ वहां मौजूद रहने व रेकी करने के लिए रखा जाता है. चोरी कर गैंग लीडर तो भाग जाते हैं, लेकिन वो पकड़े जाते हैं.

शौक पूरा करने के लिए गैग में शामिल हो रहे नाबालिग : राजधानी में वन स्टॉप की काउंसलर सोनम श्रीवास्तव के मुताबिक चोरी की वारदातों में अधिकतर दो तरह के नाबालिग होते हैं. एक वो जो पढ़ाई से वंचित रहते हैं और उनके पास काफी वक्त रहता है. दूसरे ऐसे जिनके शौक तो बड़े होते हैं, लेकिन आर्थिक स्थिति खराब होती है. उन्होंने बताया कि अपराध करने वाले नाबालिगों से कॉउंसिलिंग करने के समय उनसे बात करने पर कई बार सामने आया है कि छोटी उम्र में ही महंगे कपड़े, महिला मित्रों को गिफ्ट देने या महंगे मोबाइल व वीडियो गेम खरीदने के लिए वो चोरी की वारदातों को अंजाम देते हैं. इसके लिए वे एक चेन के जरिये चोरी करने वाले गैंग के संपर्क में आते हैं.

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