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वैश्विक मंदी से कैसे बचे भारत, जानिए अर्थशास्त्री की राय - आर्थिक मंदी में जीडीपी

अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरविंद मोहन ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. इस दौरान उन्होंने वैश्विक आर्थिक मंदी को लेकर चिंता व्यक्त की. इस दौरान उन्होंने कहा कि आर्थिक मंदी की वजह फिर से दिख रही है. हमारी अपनी आर्थिक परेशानियां हैं, हमें उन्हें संभालना होगा.

ईटीवी भारत से बात करते अर्थशास्त्री.
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Published : Aug 23, 2019, 11:57 PM IST


लखनऊ: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शुक्रवार को जिस प्रकार से वैश्विक आर्थिक मंदी को लेकर चिंता व्यक्त की, साथ ही इस मंदी का असर भारत पर नहीं पड़ने की भी बात कही हैं. इससे देश में इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर वैश्विक मंदी आती है तो इससे भारत बच नहीं पाएगा. कम या ज्यादा हो सकता है. 2008-09 में जब वैश्विक आर्थिक मंदी आई थी, तो उसका असर भारत पर भी पड़ा था. अगर केंद्रीय वित्त मंत्री इस बात का दावा करती हैं कि भारत पर वैश्विक मंदी का कम या ज्यादा असर पड़ेगा तो उन्हें एकदम स्पष्ट बताना चाहिए.

ईटीवी भारत से बातचीत करते अर्थशास्त्री.

भारत पर भी अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का असर
अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरविंद मोहन ने कहा कि अमेरिका और चीन का जो ट्रेड वॉर है, उसका असर भारत पर पड़ता है. पूरे विश्व में आर्थिक स्थिति का जो माहौल आर्थिक स्तर पर विकसित हो रहा है, उसका असर भी भारत पर पड़ेगा, यह पहला सच है. दूसरा सच यह है कि हिंदुस्तान के अपने कुछ जटिल मुद्दे हैं. आर्थिक मंदी की वजह से वह फिर से दिख रहे हैं. हमारी अपनी आर्थिक परेशानियां हैं, हमें उन्हें संभालना होगा.

2008-09 में आर्थिक मंदी में जीडीपी थी मजबूत
अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरविंद मोहन ने कहा कि अगर पहले मुद्दे की बात करें तो 2008-09 में आर्थिक मंदी आई थी. उस समय जब भारत के फंडामेंटल्स का आकलन किया तो जीडीपी रहा हो या फिर चाहे अन्य सारी चीजें बहुत मजबूत रहीं. 200 देशों की जो अर्थव्यवस्था है, उसे स्टडी कर रहा था. भारत के फंडामेंटल्स सबसे बेहतर थे. वैश्विक मंदी दूसरे देशों में हो रही थी. उसका असर हिंदुस्तान पर पड़ा, लेकिन हमारे मजबूत फंडामेंटल्स के चलते उतना असर नहीं पड़ा. आज जब हम अपने फंडामेंटल्स को देख रहे हैं तो तुलनात्मक रूप से तब से लेकर आज की स्थिति में काफी कमजोर हुए हैं.

पहले की तुलना में जीडीपी ग्रोथ कम
आज जब जीडीपी को देखते हैं तो जो जीडीपी का ग्रोथ रेट है. वह पहले की तुलना में थोड़ा सा कम है, लेकिन आज भी उसी लेवल पर दिखाई पड़ती है. उसको जब हम ब्रेकअप कर रहे हैं तो विदेशी निवेश हो या घरेलू सेविंग का हिस्सा रहा हो, जो कि 37% से 32% आ गया है. इसी तरह से दूसरा फंडामेंटल्स उस स्तर पर नहीं दिख रहा है. 2009 में जो शेयर मार्केट की स्थिति थी वह आज नहीं दिख रही है.

चुनौतियों को स्पष्ट करे सरकार
मोटे तौर पर आज अगर वैश्विक माहौल बिगड़ेगा तो हिंदुस्तान पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ेगा. हमें उसके लिए अभी से निर्णय लेने पड़ेंगे. ताकि हम उन चुनौतियों से लड़ सकें. वित्त मंत्री हों, राष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार हों या फिर नीति आयोग हो, उन्हें चुनौतियों को भी स्पष्ट करना चाहिए. उनके कारणों पर फोकस करना चाहिए. इसके कारण देश के लोगों के सामने आने चाहिए. स्पष्ट चीजें सामने सामने दिखनी चाहिए. दूसरा बड़ा मुद्दा है कि जो हमारे घरेलू चुनौतियां हैं. कई कारणों से कमजोर हुई हैं. वह चाहे जीएसटी का मुद्दा रहा हो या फिर कुछ और हो. इसके साथ ही कुछ रियल इस्टेट सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर पहले से ही समस्या से ग्रस्त हैं. आज यह मंदी और भी गहराती हुई दिखाई पड़ रही है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वैश्विक मंदी अगर सामने आती है तो इससे भारत बच नहीं सकेगा. कम हो या ज्यादा इससे निपटने के लिए देश की जनता या उद्योग जगत के लोग हैं, इससे कहीं ज्यादा सरकार को समझना होगा.


लखनऊ: केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण शुक्रवार को जिस प्रकार से वैश्विक आर्थिक मंदी को लेकर चिंता व्यक्त की, साथ ही इस मंदी का असर भारत पर नहीं पड़ने की भी बात कही हैं. इससे देश में इसको लेकर चर्चा शुरू हो गई है. अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर वैश्विक मंदी आती है तो इससे भारत बच नहीं पाएगा. कम या ज्यादा हो सकता है. 2008-09 में जब वैश्विक आर्थिक मंदी आई थी, तो उसका असर भारत पर भी पड़ा था. अगर केंद्रीय वित्त मंत्री इस बात का दावा करती हैं कि भारत पर वैश्विक मंदी का कम या ज्यादा असर पड़ेगा तो उन्हें एकदम स्पष्ट बताना चाहिए.

ईटीवी भारत से बातचीत करते अर्थशास्त्री.

भारत पर भी अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर का असर
अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरविंद मोहन ने कहा कि अमेरिका और चीन का जो ट्रेड वॉर है, उसका असर भारत पर पड़ता है. पूरे विश्व में आर्थिक स्थिति का जो माहौल आर्थिक स्तर पर विकसित हो रहा है, उसका असर भी भारत पर पड़ेगा, यह पहला सच है. दूसरा सच यह है कि हिंदुस्तान के अपने कुछ जटिल मुद्दे हैं. आर्थिक मंदी की वजह से वह फिर से दिख रहे हैं. हमारी अपनी आर्थिक परेशानियां हैं, हमें उन्हें संभालना होगा.

2008-09 में आर्थिक मंदी में जीडीपी थी मजबूत
अर्थशास्त्री प्रोफेसर अरविंद मोहन ने कहा कि अगर पहले मुद्दे की बात करें तो 2008-09 में आर्थिक मंदी आई थी. उस समय जब भारत के फंडामेंटल्स का आकलन किया तो जीडीपी रहा हो या फिर चाहे अन्य सारी चीजें बहुत मजबूत रहीं. 200 देशों की जो अर्थव्यवस्था है, उसे स्टडी कर रहा था. भारत के फंडामेंटल्स सबसे बेहतर थे. वैश्विक मंदी दूसरे देशों में हो रही थी. उसका असर हिंदुस्तान पर पड़ा, लेकिन हमारे मजबूत फंडामेंटल्स के चलते उतना असर नहीं पड़ा. आज जब हम अपने फंडामेंटल्स को देख रहे हैं तो तुलनात्मक रूप से तब से लेकर आज की स्थिति में काफी कमजोर हुए हैं.

पहले की तुलना में जीडीपी ग्रोथ कम
आज जब जीडीपी को देखते हैं तो जो जीडीपी का ग्रोथ रेट है. वह पहले की तुलना में थोड़ा सा कम है, लेकिन आज भी उसी लेवल पर दिखाई पड़ती है. उसको जब हम ब्रेकअप कर रहे हैं तो विदेशी निवेश हो या घरेलू सेविंग का हिस्सा रहा हो, जो कि 37% से 32% आ गया है. इसी तरह से दूसरा फंडामेंटल्स उस स्तर पर नहीं दिख रहा है. 2009 में जो शेयर मार्केट की स्थिति थी वह आज नहीं दिख रही है.

चुनौतियों को स्पष्ट करे सरकार
मोटे तौर पर आज अगर वैश्विक माहौल बिगड़ेगा तो हिंदुस्तान पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ेगा. हमें उसके लिए अभी से निर्णय लेने पड़ेंगे. ताकि हम उन चुनौतियों से लड़ सकें. वित्त मंत्री हों, राष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार हों या फिर नीति आयोग हो, उन्हें चुनौतियों को भी स्पष्ट करना चाहिए. उनके कारणों पर फोकस करना चाहिए. इसके कारण देश के लोगों के सामने आने चाहिए. स्पष्ट चीजें सामने सामने दिखनी चाहिए. दूसरा बड़ा मुद्दा है कि जो हमारे घरेलू चुनौतियां हैं. कई कारणों से कमजोर हुई हैं. वह चाहे जीएसटी का मुद्दा रहा हो या फिर कुछ और हो. इसके साथ ही कुछ रियल इस्टेट सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर पहले से ही समस्या से ग्रस्त हैं. आज यह मंदी और भी गहराती हुई दिखाई पड़ रही है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वैश्विक मंदी अगर सामने आती है तो इससे भारत बच नहीं सकेगा. कम हो या ज्यादा इससे निपटने के लिए देश की जनता या उद्योग जगत के लोग हैं, इससे कहीं ज्यादा सरकार को समझना होगा.

Intro:नोट-श्रवण सर के निर्देश पर यह स्टोरी भेजी जा रही है, डेस्क कृपया उनके संज्ञान में लाने का कष्ट करें।

लखनऊ। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आज जिस प्रकार से वैश्विक आर्थिक मंदी को लेकर चिंता व्यक्त की है, साथ ही इस मंदी का असर भारत पर नहीं पड़ने की भी बात कही है। इससे देश में इसको लेकर चर्चा शुरू हो गयी है। अर्थशास्त्रियों का मानना है कि अगर वैश्विक मंदी आती है तो इससे भारत बच नहीं पाएगा। कम या ज्यादा हो सकता है। 2008-09 में जब वैश्विक आर्थिक मंदी आई थी, तो उसका असर भारत पर भी पड़ा था। अगर केंद्रीय वित्त मंत्री इस बात का दावा करती हैं कि भारत पर वैश्विक मंदी का कम या ज्यादा असर पड़ेगा तो उन्हें एकदम स्पष्ट बताना चाहिए। देश की जनता के सामने यह चीजें स्पष्ट होनी चाहिए कि वैश्विक आर्थिक मंदी से भारत कैसे निपट पाएगा।


Body:अर्थशास्त्री प्रोफ़ेसर अरविंद मोहन का कहना है कि इसमें कई पहलू हैं। अमेरिका और चीन का जो ट्रेड वॉर है, उसका असर भारत पर भी पड़ता है। पूरे विश्व में आर्थिक स्थिति का जो माहौल आर्थिक स्तर पर विकसित हो रहा है, उसका असर भारत पर भी पड़ेगा। यह पहला सच है। दूसरा सच यह है कि हिंदुस्तान के अपने कुछ जटिल मुद्दे हैं। आर्थिक मंदी की वजह से वह फिर से दिख रहे हैं। हमारी अपनी आर्थिक परेशानियां हैं। हमें उन्हें संभालना होगा। अगर हम पहले मुद्दे की बात करें तो 2008-09 में आर्थिक मंदी आई थी। उस समय जब हम भारत के फंडामेंटल्स का आकलन किया तो हिंदुस्तान का जीडीपी रहा हो या फिर चाहे अन्य सारी चीजें बहुत मजबूत रहीं।

200 देशों की जो अर्थव्यवस्था है, उसे स्टडी कर रहा था। भारत के फंडामेंटल्स सबसे बेहतर थे। वैश्विक मंदी दूसरे देशों में हो रही थी। उसका असर हिंदुस्तान पर पड़ा। लेकिन हमारे मजबूत फंडामेंटल्स के चलते उतना असर नहीं पड़ा। आज जब हम अपने फंडामेंटल्स को देख रहे हैं तो तुलनात्मक रूप से तब से लेकर आज की स्थिति में काफी कमजोर हुए हैं। आज जब जीडीपी को देखते हैं तो जो जीडीपी का ग्रोथ रेट है वह पहले की तुलना में थोड़ा सा कम है। लेकिन आज भी उसी लेवल पर दिखाई पड़ती है। लेकिन उसको जब हम ब्रेकअप कर रहे हैं तो विदेशी निवेश हो या घरेलू सेविंग का हिस्सा रहा हो जोकि 37% से 32% आ गया है। इसी तरह से दूसरा फंडामेंटल्स उस स्तर पर नहीं दिख रहा है। 2009 में जो शेयर मार्केट की स्थिति थी वह आज नहीं दिख रही है।

मोटे तौर पर आज अगर वैश्विक माहौल बिगड़ेगा तो हिंदुस्तान पर कुछ ज्यादा ही असर पड़ेगा। हमें उसके लिए अभी से निर्णय लेने पड़ेंगे। ताकि हम उन चुनौतियों से लड़ सकें। वित्त मंत्री हों , राष्ट्रीय आर्थिक सलाहकार हों या फिर नीति आयोग हो, उन्हें चुनौतियों को भी स्पष्ट करना चाहिए। उनके कारणों पर फोकस करना चाहिए। इसके कारण देश के लोगों के सामने आने चाहिए। स्पष्ट चीजें सामने सामने दिखनी चाहिए। दूसरा बड़ा मुद्दा है कि जो हमारे घरेलू चुनौतियां हैं कई कारणों से कमजोर हुई है। वह चाहे जीएसटी का मुद्दा रहा हो या फिर कुछ और। इसके साथ ही कुछ रियल इस्टेट सेक्टर, ऑटोमोबाइल सेक्टर पहले से ही समस्या से ग्रस्त हैं। आज यह मंदी और भी गहराती हुई दिखाई पड़ रही है। कम से कम सेक्टर स्पेसिफिक स्लोडाउन एकदम स्पष्ट है। इसका नेचर क्या है या देखना चाहिए। हमें क्या करना चाहिए स्पष्ट होना है। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि वैश्विक मंदी अगर सामने आती है तो इससे भारत बच नहीं सकेगा। कम हो या ज्यादा इससे निपटने के लिए देश की जनता या उद्योग जगत के लोग हैं, इससे कहीं ज्यादा सरकार को समझना होगा।


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