लखनऊ: महिलाओं में बच्चेदानी के मुंह के कैंसर के मामलों में बढ़ोतरी हो रही है. लगातार ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है. इसके चलते एक ऐसी नई तकनीक विकसित हुई है जिससे बीमारी की पहचान भी आसान हो रही है. वहीं बीमारी की सटीक पहचान से इलाज की दिशा भी तय हो जाती है. इससे मर्ज के ठीक होने की संभावना भी कई गुना बढ़ जाती है. यह जानकारी यूएसए के विनचेस्टर हॉस्पिटल की निदेशक डॉ. सुमीता गोखले ने दी.
बुधवार को लखनऊ किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी (KGMU) के सेल्बी हॉल में अंतरराष्ट्रीय पैथोलॉजी दिवस पर सेमिनार आयोजन हुआ. इस मौके पर डॉ. सुमीता गोखले ने कहा कि लिक्विड बेस्ड साइटोलॉजी से सवाइकल (बच्चेदानी के मुंह) कैंसर का सटीक पता लगाया जा सकता है.
वहीं, जांच रिपोर्ट भी एक दिन में आ जाती है. बताया कि समय पर कैंसर की पहचान से इलाज आसान हो जाता है. लेकिन अभी भी 60 से 70 फीसदी मरीज देरी से अस्पताल आते हैं. इससे मर्ज गंभीर हो जाता है. ऐसे में इलाज भी मुश्किल हो जाता है. हालांकि कैंसर का इलाज पहले से काफी आसान और पुख्ता हुआ है.
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वहीं, किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी के पैथोलॉजी विभाग के अध्यक्ष डॉ. यूएस सिंह ने बताया कि बायोप्सी (मांस का टुकड़ा) लेने में खासी सावधानी बरतने की जरूरत है. सही जगह व पर्याप्त कोशिका लेने से बीमारी की अच्छी तरह से पहचान हो सकती है. बताया कि फेफड़े की बायोप्सी, पेट में ट्यूमर की बायोप्सी एंडोस्कोपी से की जा सकती है.
बता दें कि केजीएमयू में आयोजित सेमिनार कार्यक्रम में मेडिकल कॉलेज के कुलपति डॉ. बिपिन पुरी, माइक्रोबायोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. अमिता जैन, डीन डॉ. उमा सिंह, डॉ. प्रदीप टंडन व लोहिया संस्थान में पैथोलॉजी विभाग की अध्यक्ष डॉ. नुजहत हुसैन समेत अन्य कई डॉक्टर मौजूद रहे.
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