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महंगाई की मार से 1.86 करोड़ बच्चों की थाली हुई बेस्वाद, जानिए क्यों

सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मिड-डे मील (Mid Day Meal) के तहत दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. लेकिन महंगाई की मार से 1.86 करोड़ बच्चों की थाली अब बेस्वाद होने लगी है. शिक्षकों का कहना है कि महंगाई का सीधा असर खाने की गुणवत्ता पर पड़ रहा है.

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महंगाई की मार से 1.86 करोड़ बच्चों की थाली हुई बेस्वाद
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Published : Apr 11, 2022, 11:08 AM IST

लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महंगाई की मार से 1.86 करोड़ बच्चों की थाली अब बेस्वाद होने लगी है. सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले इन बच्चों को मिड-डे मील (Mid Day Meal) के तहत दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. अरहर की दाल से लेकर सरसों के तेल, सब्जियों तक के रेट आसमान छू रहे हैं. गैस सिलेंडर के बढ़ते दाम आम आदमी के पसीने छुड़ा रहा है. ऐसे में सरकारी स्कूलों के इन बच्चों को आज भी दो साल पुरानी कीमतों पर भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. शिक्षकों का कहना है कि इसका सीधा असर खाने की गुणवत्ता पर पड़ रहा है.

प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने बताया कि लखनऊ में अक्षयपात्र संस्था की ओर से बच्चों को खाना खिलाया जाता है. चूंकि यह संस्था बड़े स्तर पर खाना बनाकर बच्चों को उपलब्ध कराती है, इसलिए यहां समस्या नहीं है. लेकिन, दूर-दराज के जिलों में काफी समस्या आ रही है. इन जगहों पर प्रधान की देख-रेख में शिक्षकों से व्यवस्था करवाई जाती है. कई जगहों पर तो प्रधान कमीशन खाते हैं. उन्होंने बताया कि महंगाई बढ़ने से सीधा असर खाने की गुणवत्ता पर पड़ रहा है. इसके चलते कई बार तहरी से सब्जी गायब होने की शिकायतें मिलती हैं तो कई बार गुणवत्ता सही न होने की बात सामने आती है.

जानकारी देते हुए प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष
यूपी में यह है मिड-डे मील की तस्वीर

उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद के अधीन 1 लाख 33 हजार 598 स्कूलों का संचालन किया जाता है. इनमें, करीब 1.65 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. इसके अलावा, सरकारी/राजकीय, मकतब/मदरसा और विशेष प्रशिक्षण केंद्र (बाल श्रमिक विद्यालय) के बच्चों को भी मिड-डे मील उपलब्ध कराया जाता है. कुल मिलाकर रोजाना 1.86 करोड़ बच्चों के लिए मिड-डे मील की व्यवस्था की जाती है. खाना बनाने के लिए सरकार की तरफ से कनवर्जन कास्ट दी जाती है. हर दिन का मेन्यू तय है. उसके आधार पर ही बच्चों को खाना उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है.

यह है मैन्यू
सोमवार: रोटी, सब्जी एवं ताजा फल
मंगलवार: चावल, दाल
बुधवार: तहरी/खीर
गुरुवार: रोटी, दाल
शुक्रवार: तहरी/खीर
शनिवार: चावल सब्जी

यह भी पढ़ें- इस पुलिस अधिकारी ने उठाया सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य को संवारने का बीड़ा

महंगाई छू रही आसमान

शिक्षकों का कहना है कि महंगाई का आलम यह है कि जो अरहर की दाल पहले 80 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही थी, वह अब 120 रुपये पहुंच गई है. इसी तरह सब्जियां भी महंगी हो चली हैं. घरेलू गैस सिलेंडर के दाम 987.5 रुपये पहुंच गए हैं. ऐसे में सवाल है कि स्कूलों के हेडमास्टर बच्चों को गुणवत्तायुक्त भोजन कैसे परोसें? प्रधानाध्यापकों को इसी लागत में भोजन तैयार कराना होता है. उसमें भी 60 से 75 फीसदी बच्चों की उपस्थिति पर ही विभाग भुगतान करता है.

अप्रैल 2020 में बढ़ा था पैसा

वर्तमान में प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए कन्वर्जन कास्ट की दर 4.97 रुपये छात्र प्रतिदिन और अपर प्राइमरी के बच्चों के लिए 7.45 रुपये छात्र प्रतिदिन है. यह दर अप्रैल 2020 में लागू की गई थी.

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लखनऊ: उत्तर प्रदेश में महंगाई की मार से 1.86 करोड़ बच्चों की थाली अब बेस्वाद होने लगी है. सरकारी प्राइमरी और अपर प्राइमरी स्कूलों में पढ़ने वाले इन बच्चों को मिड-डे मील (Mid Day Meal) के तहत दोपहर का भोजन उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. अरहर की दाल से लेकर सरसों के तेल, सब्जियों तक के रेट आसमान छू रहे हैं. गैस सिलेंडर के बढ़ते दाम आम आदमी के पसीने छुड़ा रहा है. ऐसे में सरकारी स्कूलों के इन बच्चों को आज भी दो साल पुरानी कीमतों पर भोजन उपलब्ध कराया जा रहा है. शिक्षकों का कहना है कि इसका सीधा असर खाने की गुणवत्ता पर पड़ रहा है.

प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष विनय कुमार सिंह ने बताया कि लखनऊ में अक्षयपात्र संस्था की ओर से बच्चों को खाना खिलाया जाता है. चूंकि यह संस्था बड़े स्तर पर खाना बनाकर बच्चों को उपलब्ध कराती है, इसलिए यहां समस्या नहीं है. लेकिन, दूर-दराज के जिलों में काफी समस्या आ रही है. इन जगहों पर प्रधान की देख-रेख में शिक्षकों से व्यवस्था करवाई जाती है. कई जगहों पर तो प्रधान कमीशन खाते हैं. उन्होंने बताया कि महंगाई बढ़ने से सीधा असर खाने की गुणवत्ता पर पड़ रहा है. इसके चलते कई बार तहरी से सब्जी गायब होने की शिकायतें मिलती हैं तो कई बार गुणवत्ता सही न होने की बात सामने आती है.

जानकारी देते हुए प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन के प्रदेश अध्यक्ष
यूपी में यह है मिड-डे मील की तस्वीर

उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा परिषद के अधीन 1 लाख 33 हजार 598 स्कूलों का संचालन किया जाता है. इनमें, करीब 1.65 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील उपलब्ध कराने की व्यवस्था है. इसके अलावा, सरकारी/राजकीय, मकतब/मदरसा और विशेष प्रशिक्षण केंद्र (बाल श्रमिक विद्यालय) के बच्चों को भी मिड-डे मील उपलब्ध कराया जाता है. कुल मिलाकर रोजाना 1.86 करोड़ बच्चों के लिए मिड-डे मील की व्यवस्था की जाती है. खाना बनाने के लिए सरकार की तरफ से कनवर्जन कास्ट दी जाती है. हर दिन का मेन्यू तय है. उसके आधार पर ही बच्चों को खाना उपलब्ध कराने की व्यवस्था की गई है.

यह है मैन्यू
सोमवार: रोटी, सब्जी एवं ताजा फल
मंगलवार: चावल, दाल
बुधवार: तहरी/खीर
गुरुवार: रोटी, दाल
शुक्रवार: तहरी/खीर
शनिवार: चावल सब्जी

यह भी पढ़ें- इस पुलिस अधिकारी ने उठाया सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के भविष्य को संवारने का बीड़ा

महंगाई छू रही आसमान

शिक्षकों का कहना है कि महंगाई का आलम यह है कि जो अरहर की दाल पहले 80 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रही थी, वह अब 120 रुपये पहुंच गई है. इसी तरह सब्जियां भी महंगी हो चली हैं. घरेलू गैस सिलेंडर के दाम 987.5 रुपये पहुंच गए हैं. ऐसे में सवाल है कि स्कूलों के हेडमास्टर बच्चों को गुणवत्तायुक्त भोजन कैसे परोसें? प्रधानाध्यापकों को इसी लागत में भोजन तैयार कराना होता है. उसमें भी 60 से 75 फीसदी बच्चों की उपस्थिति पर ही विभाग भुगतान करता है.

अप्रैल 2020 में बढ़ा था पैसा

वर्तमान में प्राइमरी स्कूल के बच्चों के लिए कन्वर्जन कास्ट की दर 4.97 रुपये छात्र प्रतिदिन और अपर प्राइमरी के बच्चों के लिए 7.45 रुपये छात्र प्रतिदिन है. यह दर अप्रैल 2020 में लागू की गई थी.

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