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लखनऊ में भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन, जुटेंगे तमाम भाषाओं के विद्वान

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Published : Feb 22, 2020, 10:48 PM IST

यूपी के लखनऊ में भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन हो रहा है. इसका उद्घाटन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया. 22 से 24 फरवरी तक लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान की तरफ से भारतीय भाषा महोत्सव आयोजित किया गया है.

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कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. राज नारायण शुक्ला .

लखनऊ: राजधानी में भारतीय भाषा महोत्सव का उद्घाटन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने किया. 22 से 24 फरवरी तक लखनऊ विश्वविद्यालय में उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान की तरफ से भारतीय भाषा महोत्सव आयोजित किया गया है. लखनऊ विश्वविद्यालय में आयोजित इस महोत्सव में देश की तमाम भाषाओं के विद्वान जुटे हैं.

भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन.
महोत्सव का आयोजन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. राज नारायण शुक्ला और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित की तरफ से आयोजित किया जा रहा है. इस तीन दिवसीय भारतीय भाषा महोत्सव में राजभाषा हिंदी, देवनागरी, भारतीय भाषाएं, जनपदीय बोलियां, अनुवाद विज्ञान, संचार प्रौद्योगिकी, लोक वांगमय, विज्ञान लेखन, कोश विज्ञान, संकलन, संपादन कला, सृजनात्मक लेखन प्रक्रिया, विश्व हिंदी, दलित-स्त्री-विमर्श, आदिवासी- दिव्यांग विमर्श, अप्रवासी विमर्श, कंप्यूटरीकरण, पुराख्यानों का आधुनिकीकरण, समकालीन कविता, कथा साहित्य, नाटक, रंगमंच, शोध-समीक्षा, पाठानुसंधान, अंतरविद्यापरक समीक्षा, ज्ञान का साहित्य जैसे विषयों पर 30 गोष्ठी आयोजित होनी है.

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महोत्सव में वरिष्ठ साहित्यकार एवं भाषाई विद्वान मृदुला गर्ग, चित्रा मुद्गल, सूर्यबाला, नीरजा माधव, रजनीश शुक्ल, प्रोफेसर टीआर भट्ट, प्रोफेसर शेषारत्नम, कुलदीप अग्निहोत्री और मन्नार वेंकटेश्वर जैसे विद्वान शामिल हो रहे हैं. महोत्सव में पुस्तक मेले का भी आयोजन हो रहा है. इसमें राजकमल प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, राजपाल प्रकाशन और किताबघर प्रकाशन की तरफ से प्रकाशित साहित्य की प्रदर्शनी लगाई गई है.

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लगभग 18 प्रदेशों के साहित्यकार, बड़े-बड़े विद्वान इस महोत्सव में आए हुए हैं. प्रख्यात महिला कथाकार मृदुला गर्ग और गोपीनाथन जैसे तमाम साहित्यकार जुटे हैं. 3 दिन तक लगातार यह कार्यक्रम चलता रहेगा. महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि भाषा और संस्कृति देश की आभा और प्राण होते हैं. यह अगर नहीं बचे तो देश की संस्कृति नहीं बचेगी. इसलिए भाषाओं को बचाने की जरूरत है. न सिर्फ बचाने की जरूरत है, बल्कि देश की सभी भाषाओं को एक साथ लाने की आवश्यकता है. भाषाएं एक-दूसरे की दुश्मन नहीं हो सकतीं. भाषाएं संवाद का माध्यम हैं. भाषाएं मित्रता स्थापित करती हैं, न की दूरी बढ़ाती हैं. भाषा को दूरी का जो माध्यम बनाया जा रहा है, वह गलत है. भाषा को मैत्री का माध्यम बनाया जाए.

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भारतीय भाषा महोत्सव का आयोजन.
महोत्सव का आयोजन उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. राज नारायण शुक्ला और वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. सूर्य प्रसाद दीक्षित की तरफ से आयोजित किया जा रहा है. इस तीन दिवसीय भारतीय भाषा महोत्सव में राजभाषा हिंदी, देवनागरी, भारतीय भाषाएं, जनपदीय बोलियां, अनुवाद विज्ञान, संचार प्रौद्योगिकी, लोक वांगमय, विज्ञान लेखन, कोश विज्ञान, संकलन, संपादन कला, सृजनात्मक लेखन प्रक्रिया, विश्व हिंदी, दलित-स्त्री-विमर्श, आदिवासी- दिव्यांग विमर्श, अप्रवासी विमर्श, कंप्यूटरीकरण, पुराख्यानों का आधुनिकीकरण, समकालीन कविता, कथा साहित्य, नाटक, रंगमंच, शोध-समीक्षा, पाठानुसंधान, अंतरविद्यापरक समीक्षा, ज्ञान का साहित्य जैसे विषयों पर 30 गोष्ठी आयोजित होनी है.

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महोत्सव में वरिष्ठ साहित्यकार एवं भाषाई विद्वान मृदुला गर्ग, चित्रा मुद्गल, सूर्यबाला, नीरजा माधव, रजनीश शुक्ल, प्रोफेसर टीआर भट्ट, प्रोफेसर शेषारत्नम, कुलदीप अग्निहोत्री और मन्नार वेंकटेश्वर जैसे विद्वान शामिल हो रहे हैं. महोत्सव में पुस्तक मेले का भी आयोजन हो रहा है. इसमें राजकमल प्रकाशन, प्रभात प्रकाशन, वाणी प्रकाशन, राजपाल प्रकाशन और किताबघर प्रकाशन की तरफ से प्रकाशित साहित्य की प्रदर्शनी लगाई गई है.

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लगभग 18 प्रदेशों के साहित्यकार, बड़े-बड़े विद्वान इस महोत्सव में आए हुए हैं. प्रख्यात महिला कथाकार मृदुला गर्ग और गोपीनाथन जैसे तमाम साहित्यकार जुटे हैं. 3 दिन तक लगातार यह कार्यक्रम चलता रहेगा. महोत्सव के उद्घाटन अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि भाषा और संस्कृति देश की आभा और प्राण होते हैं. यह अगर नहीं बचे तो देश की संस्कृति नहीं बचेगी. इसलिए भाषाओं को बचाने की जरूरत है. न सिर्फ बचाने की जरूरत है, बल्कि देश की सभी भाषाओं को एक साथ लाने की आवश्यकता है. भाषाएं एक-दूसरे की दुश्मन नहीं हो सकतीं. भाषाएं संवाद का माध्यम हैं. भाषाएं मित्रता स्थापित करती हैं, न की दूरी बढ़ाती हैं. भाषा को दूरी का जो माध्यम बनाया जा रहा है, वह गलत है. भाषा को मैत्री का माध्यम बनाया जाए.

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