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Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary: वो क्रांतिकारी जिसने कहा 'आजाद हूं, आजाद रहूंगा'... - लखनऊ खबर

आजादी के मतवाले चंद्रशेखर आजाद (Chandra Shekhar Azad) की आज जयंती है. अंग्रेजी हुकूमत चंद्रशेखर आजाद के नाम से भय खाती थी. बेखौफ अंदाज के चंद्रशेखर आजाद सिर्फ 14 साल की उम्र में ही आजादी की लड़ाई में शामिल हो गए थे. आज पूरा देश उनके जन्मदिवस (Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary) पर उनको याद कर रहा है.

चंद्रशेखर आजाद जंयती.
चंद्रशेखर आजाद जंयती.
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Published : Jul 23, 2021, 7:23 AM IST

Updated : Jul 23, 2021, 10:48 AM IST

हैदराबादः स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक चंद्रशेखर आजाद का जन्म (Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary) मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के झाबुआ में 23 जुलाई 1906 को हुआ था. जहां चंद्रशेखर आजाद ((Chandra Shekhar Azad) का जन्म हुआ उस जगह को अब आजादनगर नाम से जाना जाता है. आजाद ने बचपन में ही निशाने बाजी सीख ली थी, इसी वजह से चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की उम्र में 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे. अचानक गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को बंद कर देने से इनकी विचारधारा में बदलाव आया. वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए.

जज ने पूछा नाम तो बताया था "आजाद"

चंद्रशेखर आजाद 14 साल की उम्र में ही गिरफ्तार होकर जेल पहुंच गए थे. जब उन्हें जज के समक्ष प्रस्तुत किया गया था तो जज ने जब इनका नाम पूछा तो पूरी दृढ़ता से उन्होंने कहा- 'आजाद'. पिता का नाम पूछने पर बोले, "स्वतंत्रता". जब चंद्रशेखर से उनका पता पूछ गया तो उन्होंने निडर होके कहा था- "जेल". जवाब सुनकर जज ने उन्हें सरेआम 15 कोड़े मारे जाने की सजा सुनाई थी. चंद्रशेखर की पीठ पर जब कोड़े पड़ रहे थे तो उनके मुख से वंदे मातरम् का उदघोष कर रहे थे. इसी दिन से उनके साथी उन्हें आजाद के नाम से पुकारने लगे थे.

चंद्रशेखर आजाद की जयंती.
चंद्रशेखर आजाद की जयंती.

निशानेबाजी में थे पारंगत

सन 1922 ई. में चौरी चौरा कांड के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के कई नवयुवकों की तरह चंद्रशेखर का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया. इसके बाद पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ का गठन किया. इस संगठन की चंद्रशेखर आजाद ने सदस्यता ले ली. क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई.

काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों की उड़ गई थी नींद

चंद्रशेखर आजाद ने उसके बाद अन्य क्रांन्तिकारियों को लेकर सरकारी खजानों को लूटना शुरू कर दिया था. 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया. उन्होंने ब्रिटिश खजाने को लूट ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार की नींद हराम कर दी.

चंद्रशेखर पार्ट आजाद पार्क में लगी 'आजाद' की मूर्ती.
चंद्रशेखर आजाद पार्क में लगी 'आजाद' की मूर्ति.

इसे भी पढ़ें- Mangal Pandey Birth Anniversary : मंगल पांडे के विद्रोह से शुरू हुआ था भारत का पहला स्वतंत्रता संग्राम

लाला राजपत राय की मौत लिया बदला

अंग्रेजों द्वारा लाला लाजपत राय की बेरहमी से पिटाई करने और उनकी मौत से क्रांतिकारियों में गुस्सा भर गया था. 1928 में चंद्रशेखर आजाद ने लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया. इस कांड से अंग्रेजी सरकार सकते में आ गई. आजाद यहीं नहीं रुके. उन्होंने लाहौर की दिवारों पर खुलेआम परचे भी चिपकाए. परचों पर लिखा था कि लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है. आजाद हमेशा कहते थे कि वह "आजाद हैं और आजाद रहेंगे". वह कहते थे कि उन्हें अंग्रेजी सरकार उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ सकती. न ही गोली मार सकती है.

खुद की पिस्तौल से मारी गोली

अंग्रेज सरकार की नाक में दमकर चुके आजाद को 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने इलाहाबाद (प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में चारों तरफ से घेर लिया. आजाद ने 20 मिनट तक अंग्रेजी पुलिस का डटकर सामना किया. इस दौरान उन्होंने अपने साथियों को वहां से सुरक्षित बाहर भी निकाल दिया. जब उनके पास बस एक गोली बची तो उन्होंने उसे खुद को मार ली. उन्होंने संकल्प लिया था कि उन्हें कभी भी अंग्रेजी पुलिस जिंदा नहीं पकड़ सकती. इस तरह आजाद ने अपना संकल्प पूरा किया. जिस पार्क में चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिए आजाद हो गए आज उस पार्क को चंद्रशेखर आजाद पार्क ( Chandra Shekhar Azad Park) के नाम से जाना जाता है.

हैदराबादः स्वतंत्रता संग्राम के नायकों में से एक चंद्रशेखर आजाद का जन्म (Chandra Shekhar Azad Birth Anniversary) मध्य प्रदेश के अलीराजपुर जिले के झाबुआ में 23 जुलाई 1906 को हुआ था. जहां चंद्रशेखर आजाद ((Chandra Shekhar Azad) का जन्म हुआ उस जगह को अब आजादनगर नाम से जाना जाता है. आजाद ने बचपन में ही निशाने बाजी सीख ली थी, इसी वजह से चंद्रशेखर सिर्फ 14 साल की उम्र में 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन से जुड़ गए थे. अचानक गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन को बंद कर देने से इनकी विचारधारा में बदलाव आया. वे हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सक्रिय सदस्य बन गए.

जज ने पूछा नाम तो बताया था "आजाद"

चंद्रशेखर आजाद 14 साल की उम्र में ही गिरफ्तार होकर जेल पहुंच गए थे. जब उन्हें जज के समक्ष प्रस्तुत किया गया था तो जज ने जब इनका नाम पूछा तो पूरी दृढ़ता से उन्होंने कहा- 'आजाद'. पिता का नाम पूछने पर बोले, "स्वतंत्रता". जब चंद्रशेखर से उनका पता पूछ गया तो उन्होंने निडर होके कहा था- "जेल". जवाब सुनकर जज ने उन्हें सरेआम 15 कोड़े मारे जाने की सजा सुनाई थी. चंद्रशेखर की पीठ पर जब कोड़े पड़ रहे थे तो उनके मुख से वंदे मातरम् का उदघोष कर रहे थे. इसी दिन से उनके साथी उन्हें आजाद के नाम से पुकारने लगे थे.

चंद्रशेखर आजाद की जयंती.
चंद्रशेखर आजाद की जयंती.

निशानेबाजी में थे पारंगत

सन 1922 ई. में चौरी चौरा कांड के बाद गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया तो देश के कई नवयुवकों की तरह चंद्रशेखर का भी कांग्रेस से मोहभंग हो गया. इसके बाद पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ का गठन किया. इस संगठन की चंद्रशेखर आजाद ने सदस्यता ले ली. क्रांतिकारी संगठन हिंदुस्तान रिपब्लिक एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़ने के बाद उनकी जिंदगी बदल गई.

काकोरी कांड के बाद अंग्रेजों की उड़ गई थी नींद

चंद्रशेखर आजाद ने उसके बाद अन्य क्रांन्तिकारियों को लेकर सरकारी खजानों को लूटना शुरू कर दिया था. 9 अगस्त 1925 को रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद ने साथी क्रांतिकारियों के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम दिया. उन्होंने ब्रिटिश खजाने को लूट ऐतिहासिक काकोरी ट्रेन डकैती को अंजाम दिया. इस घटना ने ब्रिटिश सरकार की नींद हराम कर दी.

चंद्रशेखर पार्ट आजाद पार्क में लगी 'आजाद' की मूर्ती.
चंद्रशेखर आजाद पार्क में लगी 'आजाद' की मूर्ति.

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लाला राजपत राय की मौत लिया बदला

अंग्रेजों द्वारा लाला लाजपत राय की बेरहमी से पिटाई करने और उनकी मौत से क्रांतिकारियों में गुस्सा भर गया था. 1928 में चंद्रशेखर आजाद ने लाहौर में ब्रिटिश पुलिस ऑफिसर एसपी सॉन्डर्स को गोली मारकर लाला लाजपत राय की मौत का बदला लिया. इस कांड से अंग्रेजी सरकार सकते में आ गई. आजाद यहीं नहीं रुके. उन्होंने लाहौर की दिवारों पर खुलेआम परचे भी चिपकाए. परचों पर लिखा था कि लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला ले लिया गया है. आजाद हमेशा कहते थे कि वह "आजाद हैं और आजाद रहेंगे". वह कहते थे कि उन्हें अंग्रेजी सरकार उन्हें कभी जिंदा नहीं पकड़ सकती. न ही गोली मार सकती है.

खुद की पिस्तौल से मारी गोली

अंग्रेज सरकार की नाक में दमकर चुके आजाद को 27 फरवरी 1931 को अंग्रेजी पुलिस ने इलाहाबाद (प्रयागराज) के अल्फ्रेड पार्क में चारों तरफ से घेर लिया. आजाद ने 20 मिनट तक अंग्रेजी पुलिस का डटकर सामना किया. इस दौरान उन्होंने अपने साथियों को वहां से सुरक्षित बाहर भी निकाल दिया. जब उनके पास बस एक गोली बची तो उन्होंने उसे खुद को मार ली. उन्होंने संकल्प लिया था कि उन्हें कभी भी अंग्रेजी पुलिस जिंदा नहीं पकड़ सकती. इस तरह आजाद ने अपना संकल्प पूरा किया. जिस पार्क में चंद्रशेखर आजाद हमेशा के लिए आजाद हो गए आज उस पार्क को चंद्रशेखर आजाद पार्क ( Chandra Shekhar Azad Park) के नाम से जाना जाता है.

Last Updated : Jul 23, 2021, 10:48 AM IST
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