लखनऊ : वेस्टीब्युलर श्वाननोमा (vestibular schwannoma) यानि एक प्रकार के कान के नस का ट्यूमर होता है, जो पहले प्रति एक लाख में 1 लोगों में होता था, लेकिन अब यह बढ़कर 5 से 6 मामलों तक हो गया है. इसकी बड़ी वजह मोबाइल और एमआरआई जांच है. कई बार मोबाइल पर बात करते समय सही से सुनने या न समझ पाने के कारण लोग फोन एक से दूसरे कान में लगाने लगते हैं. इस समस्या से दो-चार होने के बाद लोगों द्वारा जांच कराने के कारण यह मामले अब ज्यादा देखने मिल रहे है, लेकिन हर मामले में सर्जरी हो यह जरूरी नहीं है. इसको लेकर लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है. यह जानकारी केजीएमयू के न्यूरो सर्जरी विभाग के स्थापना दिवस पर तिरुअनंतपुरम से आए न्यूरो सर्जन डॉ. सुरेश नायर ने दी.
डॉ. नायर ने बताया कि वेस्टीब्युलर श्वाननोमा (vestibular schwannoma) की एक कठिन सर्जरी होती है, क्योंकि यह बेहद जटिल जगह ब्रेन स्टेम पर होती है. जहां पर कई तरह की जटिल संरचनाएं होती हैं. ऐसे में नर्व को नुकसान पहुंचाए बिना इसे निकालना बेहद कठिन होता है, हालांकि यह ट्यूमर जेनेटिक की वजह से होता है. कुछ मामलों में अपने आप हो सकता है. पहले यह समस्या बड़े लोगों में ही पता चलती थी, लेकिन अब कम उम्र में भी पता चल रही है, क्योंकि कई बार एक्सीडेंट या अन्य वजहों से एमआरआई कराया जाता है तो इस ट्यूमर का भी पता चल रहा है. इसकी सर्जरी बेहद ही सुरक्षित है, जिसे करने के बाद साफ सुनाई देता है.
वहीं चेन्नई से आए ऐपीलेप्टालजिस्ट डॉ दिनेश नायक ने बताया कि मिर्गी ब्रेन के नर्व सेल्स एक दूसरे से इलेक्ट्रिसिटी से बात करते हैं. जिसे नेटवर्क कहते हैं. उस जगह पर शाॅर्ट सर्किट की वजह से मिर्गी होती है. इसके होने के कई कारण होते हैं, जो खासतौर पर जन्म के समय की स्थितियों के कारण से जुड़े होते हैं. जैसे गर्भ में पल रहे बच्चे के दिमाग या नस का सही से विकास न होना, डिलीवरी के दौरान समस्या, ऑक्सीजन की कमी होना, पैदा होने के तुरंत बाद मां का दूध न पिलाना, शुगर कम होना, दिमाग का डैमेज होने की वजह से होता है. इसके अलावा, हेड इंजरी, ब्रेन इंफेक्शन और जेनेटिक कारण भी होता है, हालांकि मिर्गी की 95 फीसदी समस्या का सीधा संबंध जन्म के समय की परिस्थितियों पर निर्भर करता है. ऐसे में अगर गर्भ धारण से लेकर डिलीवरी तक कोई समस्या न हो तो मिर्गी की समस्या को रोका जा सकता है.
वहीं बेंगलुरु से आए न्यूरो सर्जन डॉ. रवि मोहन राव ने बताया कि मिर्गी का सही डायग्नोसिस होना बेहद जरूरी है. जिसमें 60-70 फीसदी मरीजों को दवा से ठीक किया जा सकता है. वहीं 30 फीसदी को दवा दो साल तक दी जाती है, लेकिन इसके बावजूद समस्या सही नहीं होती है तब सर्जरी की जरूरत होती है. एक अनुमान के अनुसार, देश में करीब 10 लाख लोगों को मिर्गी की सर्जरी कराने की जरूरत है, लेकिन इसके लिए संसाधन की कमी है. अगर सर्जरी की जाए तो 60-100 फीसदी तक सफलता की दर होती है, जो मरीज की स्थिति पर डिपेंड करती है. इसकी सर्जरी बेहद ही सुरक्षित है. ऐसे में लोगों को घबराने की जरूरत नहीं है.
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