लखनऊ : सीएसआईआर-केंद्रीय औषधि अनुसंधान संस्थान में शनिवार से आठवीं 'ड्रग डिस्कवरी रिसर्च में वर्तमान रुझानों पर अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन शुरू हुआ. सीएसआईआर-सीडीआरआई के निदेशक डॉ. डी. श्रीनिवास रेड्डी इस मेगा इवेंट में मौजूद रहें. उद्घाटन कार्यक्रम में प्रोफेसर शिव कुमार सरीन, निदेशक, यकृत और पित्त विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली, भारत ने फेकल माइक्रोबायोटा सिप्लोट इन अल्कोहालिक हेपेटाइटिस: ए न्यू ड्रग थेरेपी विषय पर उद्घाटन भाषण दिया.
उन्होंने हाल के आंकड़ों के आधार पर उल्लेख किया कि भारत में शराब की खपत बढ़ रही है. दुख की बात है कि लीवर सिरोसिस के मामले भी बढ़ रहे हैं. शराब, यकृत (लीवर) में सूजन का कारण बनती है जिससे कुछ मामलों में यकृत शिरोसिस और यकृत कैंसर होता है. उन्होंने बताया कि स्वस्थ डोनर (दाता) से फेकल (मल) जीवाणुओं को अलग करने के उपरांत प्रसंस्कृत करके अल्कोहालिक हेपेटाइटिस से पीड़ित मरीज में प्रत्यारोपण के द्वारा अल्कोहालिक लीवर (यकृत व जिगर) की बीमारी के इलाज के लिए हानिकारक इंटस्टाइनल माइक्रोब (अत्र जीवाणु) के स्थान पर लाभदायक जीवाणुओं को प्रत्यारोपित किया जा सकता है.
हालिया अनुसंधान का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि सात दिनों तक नैजो/ड्यूडेनल रूट (नासिका व गुदा मार्ग) के माध्यम से फेकल माइक्रोबायोटा का प्रत्यारोपण करने मरीजों की मृत्युदर में कमी लाई जा सकती है. इस प्रकार शिट माइक्रोब ट्रांसप्लाट थेरेपी (आंत्र जीवाणु प्रत्यारोपण धेरेपी शराब के सेवन से होने वाले हेपेटाइटिस के इलाज में कारगर है. यह चिकित्सा अल्कोहल जनित लीवर रोगों के लिए एक वैकल्पिक चिकित्सा हो सकती है.
विशिष्ट अतिथि कोलकाता के सीटीवीएस वुडलैंड्स अस्पताल के निर्देशक प्रो. भावतोष विश्वास ने भी प्रतिभागियों को संबोधित किया. प्रोफेसर, भावतोष विश्वास ने इस बात पर जोर दिया कि विश्वस्तर पर रोग के बोझ को कम करने के लिए वैज्ञानिक और डॉक्टर के बीच घनिष्ठ सहयोग की आवश्यकता है. वैज्ञानिकों और चिकित्सकों (डॉक्टरों) को दवा की खोज और विकास के लिए एक साथ काम करना चाहिए और उनका समर्पित सहयोग इसके लिए एक महत्वपूर्ण शर्त है.
उन्होंने कहा कि दुनिया में शराब, धूम्रपान की बढती लत और पोषण की कमी व असुरक्षित खान पान रोग का प्रमुख कारण है. उन्होंने एलडीएल या खराब कोलेस्ट्रॉल चयापचय जैसे शोध कि आवश्यकता के बारे में भी बात की.
हाइपरग्लाइसेमिक रहे मरीजों में शुगर कंट्रोल के वावजूद रोग का प्रभाव बना रहता है.
दूसरे सत्र में सिटी ऑफ होप नेशनल मेडिकल सेंटर, यूएसए की प्रोफेसर रमा नटराजन ने बताया कि पूर्व हाइपरग्लाइसेमिक (शुगर की अधिकता) रहे कुछ मधुमेह रोगियों में बाद में शुगर नियंत्रण के बावजूद जटिलताएं विकसित हो जातीं हैं. उन्होंने मधुमेह की जटिलताओं और चयापचय स्मृति एपिजेनेटिक्स पर अपने हालिया शोध को साझा किया.
प्रोफेसर रमा ने मधुमेह में दवा लक्ष्यों का अध्ययन करने के लिए हाई-थ्रूपुट तकनीकों का उपयोग किया है. उन्होंने इस बारे में बताया कि गैर-कोडिंग आरएनए कितने समय तक मधुमेह को विनियमित कर सकते हैं. वह मधुमेह जटिलताओं के इलाज के लिए इन लंबे गैर-कोटिंग आरएनए को लक्षित करने की कोशिश कर रही है.
सीएसआईआर-सीडीआरआई, लखनऊ की पूर्व निदेशक एवं जेसी बोस नेशनल फेलो, डॉ. मधु दीक्षित ने एंटी-थ्रोम्बोटिक दवा जो नैदानिक परीक्षण में प्रवेश करने जा रही है, के विकास पर अपने अध्ययन को साझा किया. उन्होंने इंट्रावास्कुलर थ्रोम्बिसिस की रोकथाम के लिए कोलेजन विरोधी अपने महत्वपपूर्ण शोध निष्कर्षों पर चर्चा की.
हृदय रोग मौत का प्रमुख कारण
अपने संबोधन में उन्होंने बताया कि इंट्रावैस्कुलर थ्रोम्बिसिस अक्सर मायोकार्डियल इंफावर्शन या स्ट्रोक की घटनाओं के साथ होता है जो दुनिया भर में रुग्णता और मृत्यु दर का प्रमुख कारण है. हृदय रोग (सीवीडी) विश्व स्तर पर मौत का प्रमुख कारण हैं. भारत में सीवीडी के वैश्विक रोग बोझ का 60% हिस्सा है. उन्होंने वर्ष 1999 में सीडीआरआई में शुरू किए गए एंटी थ्रोम्बोटिक ड्रग डिस्कवरी प्रोग्राम का नेतृत्व किया है. उन्होंने कोलेजन मध्यस्थता प्लेटलेट आसंजन और एकत्रीकरण को विशेष रूप से रोकने वाले अपने दो यौगिकों के बारे में भी चर्चा की.
भारतीय विज्ञान संस्थान, बंगलुरु के डॉ. एन. रवि सुंदरसन ने कार्डियक लिपोटॉक्सिसिटी के इलाज के लिए SIRT6 को संभावित चिकित्सीय लक्ष्य के रूप में उपयोगी बताया. अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि लिपोटॉक्सिसिटी, मधुमेह या मोटापे में हृदय को कैसे प्रभावित करती है. कार्डिएक लिपोटॉक्सिसिटी हृदय में लिपिड के कारण होने वाले प्रमुख हृदय के चयापचय संबंधी विकारों में से एक है.
यह मुख्य रूप से लिपिड के दोषपूर्ण ऑक्सीकरण या संचय की वजह से बढ़ाे हुए लेवल के कारण होता है. कई लिपिड ट्रांसपोर्टरों को कार्डियक लिपोटॉक्सिसिटी और डायबिटिक कार्डियोमायोपैथी के दौरान बढ़ा हुआ पाया गया है. हालांकि, फैटी एसिड ट्रांसपोर्टरों के अपग्रेडेशन के पीछे के तंत्र के विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है.
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