लखनऊ: आगामी विधानसभा चुनावों के लिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल सिंह यादव यानी चाचा-भतीजे मैदान में उतर चुके हैं. दोनों ही लोगों ने 12 अक्टूबर को अलग-अलग क्षेत्रों से अपनी चुनावी यात्रा शुरू की. समाजवादी विचारधारा को लेकर राजनीति करने वाली यह दोनों पार्टियां जब अलग-अलग चुनावी मैदान में लड़ाई करेंगी, तो इसका सियासी नुकसान भी होगा.
विश्लेषक मानते हैं कि शिवपाल सिंह यादव अपने भतीजे अखिलेश यादव को करीब 50 से अधिक विधानसभा सीटों पर नुकसान पहुंचा सकते हैं. सपा के परंपरागत वोट बैंक में से चाचा शिवपाल सेंध लगाएंगे. इससे नुकसान समाजवादी पार्टी का ही होगा. ऐसे में समाजवादी पार्टी व प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के बीच गठबंधन न होने का बड़ा खामियाजा अखिलेश यादव को भुगतना पड़ सकता है. क्योंकि जिस वोट बैंक की राजनीति अखिलेश यादव करते हैं, उसी वोट बैंक को लेकर शिवपाल सिंह यादव चुनाव मैदान में हैं.
दरअसल सपा और प्रसपा पिछड़े, अति पिछड़े और मुस्लिम वोट बैंक को आधार बनाकर राजनीति करती हैं. ऐसे में जब शिवपाल सिंह यादव का अखिलेश यादव के साथ कोई चुनावी गठबंधन नहीं हो पाया है, तो दोनों लोग अलग-अलग चुनाव मैदान में पूरी ताकत दिखाने लगे हैं. इससे पहले धर्म युद्ध की बात करते हुए शिवपाल सिंह यादव ने सपा के खिलाफ चुनाव लड़ने की बात कही है.
उन्होंने कहा था कि प्रसपा ने सिर्फ कुछ सीटें मांगी थीं और अखिलेश से कई बार बात करने का प्रयास किया. 11 अक्टूबर तक का समय भी दिया था, लेकिन कोई जवाब नहीं आया. इसके बाद 12 अक्टूबर से जो शिवपाल सिंह यादव ने अपनी रथयात्रा निकालने का एलान कर दिया था. समाजवादी पार्टी की तरफ से भी 12 अक्टूबर का ही दिन चुना गया और समाजवादी विजय रैली का एलान हुआ. ऐसे में अब दोनों के बीच गठबंधन पर बातचीत की संभावनाएं बहुत ही कम नजर आ रही हैं.
एक आकलन के अनुसार कन्नौज, इटावा, मैनपुरी, फिरोजाबाद, फर्रुखाबाद, एटा, कासगंज, अलीगढ़, बुलंदशहर, मुजफ्फरनगर, कानपुर देहात, शामली और मेरठ जैसे कई जिले हैं, जहां समाजवादी पार्टी काफी मजबूत स्थिति में है. ऐसे में जब समाजवादी पार्टी के खिलाफ प्रगतिशील समाजवादी पार्टी मैदान में उतरेगी, तो सपा को नुकसान होगा. अगर प्रत्येक सीट पर पांच सात-हजार वोट भी शिवपाल यादव के उम्मीदवारों को मिलेंगे, तो वह सेंधमारी सपा उम्मीदवार को जाने वाले वोटों में होगी. करीब पचास सीटों पर शिवपाल सिंह यादव सपा को बड़ा सियासी नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं. देखना दिलचस्प होगा कि चुनाव तक किसी गठबंधन आदि पर सहमति बनती है या फिर आमने-सामने ही दोनों दलों की सेनाएं उतरती हैं.
राजनीतिक विश्लेषक और वरिष्ठ पत्रकार रतनमणि लाल कहते हैं कि इसमें कोई शक नहीं है कि शिवपाल सिंह यादव ने अपनी तरफ से बहुत कोशिश की थी और कई महीनों तक उन्होंने प्रयास भी किया. संदेश भी अखिलेश यादव को भेजे कि किसी तरह से कोई गठबंधन हो जाए, लेकिन अखिलेश यादव की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. इसका कारण यह हो सकता है कि अखिलेश अपनी क्षमता, अपनी ताकत, अपनी पहुंच और जनता के समर्थन के प्रति आश्वस्त हैं और उन्हें ऐसा लगता है कि शिवपाल को साथ लेकर चलने में कोई बहुत ज्यादा राजनीतिक फायदा नहीं होगा. इसके पीछे उनके अपने कारण हो सकते हैं.
हालांकि अंदाज लगाया जा सकता है कि यदि विलय होता है, तो शिवपाल के लोगों को भी पार्टी में शामिल करना पड़ेता. शायद यही कारण है कि गठबंधन नहीं हो पाया. अभी दोनों ही लोगों ने अपनी-अपनी रथयात्रा शुरू कर दी हैं. फिलहाल गठबंधन की कोई संभावना दिखती नहीं है. हालांकि मैं इस बात से इंकार नहीं करता हूं कि यात्राओं के जो भी नतीजे निकलेंगे, उसके बाद दोनों ही नेता अपनी-अपनी सामर्थ्य का आकलन करेंगे, तो हो सकता है गठबंधन की बात रातों-रात बन जाए. अगर ऐसा नहीं होता है, तो पश्चिमी यूपी और मध्य उत्तर प्रदेश की तमाम सीटें हैं, जहां शिवपाल सिंह यादव समर्थकों का दबदबा है और उनकी जनता के बीच पकड़ और पहुंच अच्छी है. वहां पर अखिलेश यादव को अपनी बढ़त बनाने में मुश्किल होगी.
प्रसपा अगस्त 2018 में बनी और उसके बाद उसने पहला चुनाव 2019 का लोकसभा चुनाव लड़ा, किसी भी सीट पर प्रसपा अपने उम्मीदवार नहीं जिता पाई लेकिन सपा को कई सीटों पर हराने का काम किया था. लोकसभा चुनाव 2019 में सपा को जहां 18.11 फीसद वोट मिला तो प्रसपा को 0.30 फीसद मत ही प्राप्त हो पाए. वोट परसेंट भले ही न के बराबर रहा हो लेकिन सपा को कई सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा. उदाहरण की बात करें तो फिरोजाबाद में सपा उम्मीदवार अक्षय यादव करीब 24 हजार वोट से भाजपा से चुनाव हार गए थे जबकि इस सीट पर प्रसपा उम्मीदवार को 91 हजार वोट मिले थे जो हार की सबसे बड़ी वजह थी. जो पिछड़ी जातियों व मुस्लिम समाज का वोट सपा को मिलता है उसमें शिवपाल की पार्टी ने सेंधमारी कर दी. इनमें यादव, कुशवाहा, सैनी, मौर्य, नाई राजभर जैसी जातियां शामिल हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव की बात करें तो समाजवादी पार्टी को 21.8 फीसदी वोट मिले थे, अब इस बार प्रसपा कितना वोट पाएगी, यह देखना दिलचस्प होगा. यूपी में 53 फीसद पिछड़ा वोट बैंक और करीब 20 फीसद मुस्लिम वोट बैंक सपा और प्रसपा का मुख्य रूप से आधार वोट बैंक है. अब इनमें से शिवपाल कितनी सेंधमारी करते हैं, यह चुनाव में पता चलेगा.