लखनऊः नवाबों के शहर लखनऊ में स्थित रेजीडेंसी अपने अंदर आज भी अंग्रेजों के खिलाफ हुए गदर की यादों को समेटे हुए है. रेजीडेंसी नवाबों के शहर लखनऊ की ऐतिहासिक इमारतों में से एक है. इसकी स्थापना 1774 ईस्वी में अवध के नवाब शुजाउद्दौला ने करवाई थी. यह रेजिडेंसी न केवल नवाबों के शान-ओ-शौकत बल्कि 1857 में हुई क्रांति की भी गवाह है. इतिहासकार बताते हैं कि 1857 के गदर की लड़ाई में यहां पर अंग्रेजों को 5 महीने तक बेगम हजरत महल व उनके साथियों ने घेर रखा था.
इतिहासकार व विद्ययांत हिंदू पीजी कॉलेज प्रोफेसर अमित वर्धन बताते है कि 1850 आते-आते अवध पर अंग्रेजों ने कब्जा कर लिया था, उस समय के नवाब वाजिद अली शाह को अवध छोड़ने पर मजबूर कर दिया गया था. नवाब वाजिद अली शाह को अवध छोड़कर जाने के बाद बेगम हजरत महल यही रह गई थी. ऐसे में बेगम हजरत महल ने अपने पति के अपमान का बदला लेने के लिए 1857 की क्रांति का आगाज किया. इस क्रांति में उन्होंने अंग्रेजों को रेजिडेंसी में करीब 5 महीने तक क्रांतिकारियों के साथ घेर रखा था. इस दौरान अंग्रेजों और बेगम के सैनिकों के बीच में भीषण युद्ध हुआ जिसमें बड़ी संख्या में अंग्रेज मारे गए थे. उन्होंने अंग्रेजों सेना के प्रमुख हेनरी लॉरेंस को भी यहीं पर मारा था. इसके बाद उन्होंने अपने बेटे बिरजिस कद्र को अवध का नया नवाब घोषित कर दिया था.
इतिहासकार प्रोफेसर अमित वर्धन बताते हैं कि अंग्रेज जब अवध आए तो उन्होंने धीरे-धीरे यहां व्यापार के बहाने कब्जा करने की रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया. धीमे-धीमे करके अवध के नवाबों पर निगरानी करनी शुरू कर दी. इतना ही नहीं अंग्रेज अफसरों ने प्रशासनिक कार्यों में भी दखल देना शुरू कर दिया था. इसको लेकर अवध के नवाबों में काफी हलचल थी. इसी वजह से अवध के नवाब ने धीरे-धीरे करके रेजीडेंसी से अपनी दूरियां बनानी शुरू कर दी थीं.
उन्होंने बताया कि ब्रिटिश हुकूमत ने 7 फरवरी 1856 को अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह को अयोग्य घोषित करके उनसे सत्ता छीन ली थी. नवाब वाजिद अली शाह कोलकाता भाग गए थे. इसके बाद अवध में कंपनी ने लोगों पर नए-नए कर लगाकर अत्याचार शुरू कर दिया था. 10 मई 1857 में मेरठ से आजादी की पहली लड़ाई की क्रांति शुरू हुई थी. इस क्रांतिकारी लड़ाई की आग अवध तक पहुंच गई थी. क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत को खत्म करने के लिए वाजिद अली शाह के बेटे को अवध का नवाब घोषित कर दिया था और उनकी मां बेगम हजरत महल ने अपने नेतृत्व में क्रांति की लड़ाई लड़ी थी. 10 मई 1857 को क्रांतिकारियों ने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ रेजीडेंसी को घेर लिया था और बड़ा हमला कर दिया था. कई गोले बारूद दागे गए थे, जिसमें बड़ी संख्या में ब्रिटिश रेजीडेंट्स मार दिए गए थे. क्रांतिकारी भी इसमें मारे गए थे. 22 नवंबर को ब्रिटिश शासन यहां से भाग गया. करीब पांच महीने तक क्रांतिकारियों ने रेजीडेंसी को घेर रखा था.
इतिहासकारों का कहना है कि बेगम हजरत महल ने बहादुर शाह जफर की बेटी का सिर कटवा कर थाली में सजाकर पेश करने वाले जनरल हडसन को मारा था. इस गदर में केवल लखनऊ शहर में ही हुई लड़ाई में ढाई से तीन हजार से अधिक अंग्रेजों को बेगम हजरत महल और ऊदा देवी ने मौत के घाट उतार दिया था. अंग्रेज अफसर हेनरी लॉरेन्स तमाम अधिकारी व अपने परिवारों के साथ लखनऊ के रेजिडेंसी में छुपे हुए थे. बेगम हजरत महल ने मौलवी अहमदुल्लाह के साथ मिलकर यहां पर हमला बोल दिया था और रेजीडेंसी में मौजूद सभी अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट उतार दिया.
संत मैरी चर्च और कब्रिस्तान आज भी मौजूद
रेजीडेंसी में 1810 में गोथिक शैली के आधार पर सेंट मैरी चर्च का निर्माण कराया गया था. इस चर्च के अंदर एक कब्रिस्तान बनाया गया था. 1857 के गदर में मारे गए अंग्रेज सैनिकों औरतों और बच्चों को इसी कब्रिस्तान में दफन किया गया है.
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