लखनऊः उत्तर प्रदेश में बिजली विभाग का घाटा बढ़कर 97,000 करोड रुपए हो गया है. रोज महकमे को 80 करोड़ का घाटा हो रहा है. महीने में विभाग को कुल 2400 करोड़ रुपए का घाटा हो रहा है. इसी घाटे के चलते विभाग अब महंगी बिजली भी खरीदने की स्थिति में नहीं रह गया है.
पीक आवर में भी बिजली विभाग 7 रुपए प्रति यूनिट से ज्यादा बिजली खरीदने में लाचार है. ऐसे में अगर इस गर्मी में उपभोक्ताओं को भीषण बिजली संकट का सामना करना पड़े तो कोई हैरानी की बात नहीं होगी. बिजली आपूर्ति के लिए हर दिन बिजली विभाग 80 करोड़ का घाटा उठा रहा है जबकि राजस्व वसूली कोरोना के चलते बुरी तरह प्रभावित हो चुकी है. अभी भी यह वसूली पटरी पर नहीं आ पाई है.
अभी तक जहां बिजली विभाग का घाटा 90,000 करोड रुपए हुआ करता था वह अब बढ़कर 97000 करोड़ रुपए पहुंच चुका है. ऐसे में घाटे की प्रतिपूर्ति के लिए राजस्व वसूली के अलावा विभाग के पास कोई दूसरा चारा नहीं है और वसूली उस स्तर की हो नहीं पा रही जो पावर कारपोरेशन को संजीवनी दे सके.
बड़ा घाटा झेल रहा पावर कारपोरेशन बिजली की दरें बढ़ाकर प्रतिपूर्ति करना चाहता है लेकिन विभाग की इस राह में भी उपभोक्ताओं का बकाया रोड़े अटका रहा है. दरअसल, नियम यह है कि जब तक उपभोक्ताओं का कर्ज बिजली विभाग उतार नहीं देता है तब तक बिजली की दर नहीं बढ़ा सकता है. वर्तमान में बिजली कंपनियों पर उपभोक्ताओं का लगभग 20,596 करोड़ रुपया बकाया निकल रहा है. यही वजह है कि हाल में पावर कारपोरेशन ने नियामक आयोग में वार्षिक राजस्व आवश्यकता प्रस्ताव तो दाखिल कर दिया लेकिन नई बिजली दरों का टैरिफ दाखिल नहीं कर पाया.
बिजली विभाग बीते वर्ष का राजस्व वसूली का लक्ष्य ही नहीं पूरा कर पाया. वसूली के वक्त बिजली विभाग के अभियंता और कर्मचारी अपनी समस्याओं को लेकर प्रदर्शन करते रहे. यही वजह है कि इस बार ज्यादा राजस्व वसूली ही नहीं हो पाई. उस पर तत्कालीन ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने भी कोरोना काल के दौरान किसी भी उपभोक्ता से बकाया वसूली पर भी रोक लगा दी थी. ओटीएस योजना में भी उस स्तर का फायदा बिजली विभाग को नहीं हो पाया जिस फायदे की उम्मीद से यह योजना लागू की गई थी. यही वजह है कि पावर कारपोरेशन के पास उपभोक्ताओं के बिजली बिल का भुगतान भी नहीं पहुंचा, जिसका घाटा विभाग को उठाना पड़ रहा है.
बिजली की दरों में कमी करने को ऊर्जामंत्री को सौंपा प्रस्ताव
उपभोक्ता परिषद ने विद्युत नियामक आयोग में याचिका दाखिल कर विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में कमी किए जाने की मुहिम छेड रखी है. विद्युत नियामक आयोग ने पावर कारपोरेशन से जवाब-तलब किया है. इसका जवाब अभी तक कारपोरेशन ने नहीं दिया है. इसी बीच बिजली की दरों में कमी कराने को लेकर घेराबंदी करते हुए उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा से मुलाकात कर एक विस्तृत जनहित लोक महत्व प्रस्ताव सौपा है. पूरे मामले में सरकार से हस्तक्षेप करने की मांग की. उन्होंने ऊर्जा मंत्री से कहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार लोक महत्व का विषय मानते हुए विद्युत अधिनियम 2003 की धारा 108 के तहत विद्युत नियामक आयोग को बिजली दरों में कमी कराने का निर्देश दे जिससे प्रदेश के घरेलू, शहरी ग्रामीण व किसानों की बिजली दरों में कमी हो सके. प्रदेश के ऊर्जा मंत्री एके शर्मा ने उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष को आश्वासन दिया कि वह पूरे मामले में उचित निर्णय कराएंगे.
उपभोक्ता परिषद अध्यक्ष अवधेश कुमार वर्मा ने जनहित प्रस्ताव में यह मुद्दा भी उठाया कि जब- जब बिजली कंपनियों का प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं पर कोई भी सरप्लस पैसा निकला है तो प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं से समय-समय पर 3.7 प्रतिशत व 4.28 प्रतिशत रेगुलेटरी सरचार्ज की वसूली की गई है. ऐसे में जब प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं का बिजली कंपनियों पर अब सरप्लस रुपया 20596 करोड़ निकल रहा है तो प्रदेश के विद्युत उपभोक्ताओं की बिजली दरों में भी कमी की जानी चाहिए. उपभोक्ता परिषद ने ऊर्जा मंत्री को सौपे जनहित प्रस्ताव में यह मुद्दा भी उठाया कि विद्युत नियामक आयोग द्वारा उपभोक्ता परिषद की याचिका पर पावर कारपोरेशन से दो बार जवाब तलब किया गया, लेकिन अभी तक पावर कारपोरेशन ने बिजली दरों में कमी किए जाने के लिए कोई प्रस्ताव नहीं दाखिल किया.
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