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हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर घटना के रिपोर्ट की जरूरत नहीं - घरेलू हिंसा के मामलों में नोटिस

घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय पारित किया है. कोर्ट ने कहा है कि घरेलू हिंसा के मामलों में नोटिस जारी करने के लिए सम्बंधित मजिस्ट्रेट को घरेलू घटना की रिपोर्ट (डीआईआर) की बाध्यता नहीं है.

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Published : Jul 20, 2022, 9:14 PM IST

लखनऊ: घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय पारित किया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर मामलों में अंतरिम आदेश, अंतिम आदेश और नोटिस जारी करने के लिए सम्बंधित मजिस्ट्रेट को घरेलू घटना की रिपोर्ट (डीआईआर) की आवश्यकता नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने ममता की याचिका पर पारित किया है.

याचिका में कहा गया था कि याची ने निचली अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत परिवाद दायर किया था. जिस पर अदालत ने संरक्षण अधिकारी से घरेलू घटना की रिपोर्ट तलब करने का निर्देश दिया और मामले में अगली तिथि नियत कर दी. अगली तिथि पर भी डीआईआर न आने पर निचली अदालत ने अंतरिम आदेश और प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए बिना पुन: डीआईआर तलब की. इसमें याची की ओर से दलील दी गई है कि इस प्रकार से मामलों के निस्तारण में अनावश्यक विलंब हो रहा है.

यह भी पढ़ें- सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर लखनऊ में हटाई जाएगी अवैध बस्ती, नोटिस सर्व होने के दौरान हंगामा

न्यायालय ने निचली अदालत के डीआईआर तलब करने के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने प्रभा सिंह त्यागी मामले में यह व्यवस्था दी हुई है कि जिन मामले में संरक्षण अधिकारी नियुक्त नहीं है और पीड़िता द्वारा स्वयं ही हरेलू हिंसा का परिवाद दाखिल किया गया है. उन मामलों में निचली अदालत डीआईआर पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं है. न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के आधार पर कहा है कि निचली अदालत बिना डीआईआर के भी याची के परिवाद को निर्णित कर सकती है.

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लखनऊ: घरेलू हिंसा के मामलों को लेकर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्त्वपूर्ण निर्णय पारित किया है. कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत दायर मामलों में अंतरिम आदेश, अंतिम आदेश और नोटिस जारी करने के लिए सम्बंधित मजिस्ट्रेट को घरेलू घटना की रिपोर्ट (डीआईआर) की आवश्यकता नहीं है. यह आदेश न्यायमूर्ति राजीव सिंह की एकल पीठ ने ममता की याचिका पर पारित किया है.

याचिका में कहा गया था कि याची ने निचली अदालत में घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत परिवाद दायर किया था. जिस पर अदालत ने संरक्षण अधिकारी से घरेलू घटना की रिपोर्ट तलब करने का निर्देश दिया और मामले में अगली तिथि नियत कर दी. अगली तिथि पर भी डीआईआर न आने पर निचली अदालत ने अंतरिम आदेश और प्रतिवादियों को नोटिस जारी किए बिना पुन: डीआईआर तलब की. इसमें याची की ओर से दलील दी गई है कि इस प्रकार से मामलों के निस्तारण में अनावश्यक विलंब हो रहा है.

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न्यायालय ने निचली अदालत के डीआईआर तलब करने के आदेश को खारिज करते हुए कहा कि शीर्ष अदालत ने प्रभा सिंह त्यागी मामले में यह व्यवस्था दी हुई है कि जिन मामले में संरक्षण अधिकारी नियुक्त नहीं है और पीड़िता द्वारा स्वयं ही हरेलू हिंसा का परिवाद दाखिल किया गया है. उन मामलों में निचली अदालत डीआईआर पर विचार करने के लिए बाध्य नहीं है. न्यायालय ने सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश के आधार पर कहा है कि निचली अदालत बिना डीआईआर के भी याची के परिवाद को निर्णित कर सकती है.

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