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राष्ट्रपति से लेकर लेखपाल तक की लखनऊ में नियम विरूद्ध बनती हैं मुहर, ईटीवी भारत ने अवैध धंधा किया उजागर - सहायक आयुक्त आयकर विभाग

आपको राष्ट्रपति से लेकर लेखपाल तक की अगर फर्जी मुहर (Illegal seal is made in Lucknow) बनवानी हो तो सीधे चले आइए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जहां 2 घंटे में किसी की भी मुहर तैयार मिल जाएगी. हैरानी की बात तो ये है कि रोजाना सैकड़ों युवकों को इन्हीं फर्जी मुहर लगा नियुक्ति पत्र देकर नौकरी के नाम पर ठगा जाता है.

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Published : Dec 2, 2022, 7:21 PM IST

Updated : Dec 3, 2022, 7:27 PM IST

लखनऊ : आपको राष्ट्रपति से लेकर लेखपाल तक की अगर फर्जी मुहर (Illegal seal is made in Lucknow) बनवानी हो तो सीधे चले आइए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जहां 2 घंटे में किसी की भी मुहर तैयार मिल जाएगी. हैरानी की बात तो ये है कि रोजाना सैकड़ों युवकों को इन्हीं फर्जी मुहर लगा नियुक्ति पत्र देकर नौकरी के नाम पर ठगा जाता है. यही नहीं पुलिस को इस फर्जीवाड़े की माकूल जानकारी है बावजूद इसके अब तक कोई भी कार्रवाई नही हो सकी है.


राजधानी स्थित आयकर विभाग के कार्यालय में बीते दिनों आयकर इंस्पेक्टर के पद के लिए फर्जी इंटरव्यू चल रहा था. यही नहीं, इंटरव्यू पास करने वाले अभ्यर्थियों को सहायक आयुक्त आयकर विभाग की मुहर व सील लगे नियुक्ति पत्र भी दिए जा रहे थे. मामले का भंडाफोड़ हुआ तो पता चला कि कभी आयकर विभाग में संविदा की नौकरी करने वाली प्रियंका मिश्रा इस जालसाजी की मास्टरमाइंड थी और आयकर विभाग के सहायक आयुक्त, उपायुक्त समेत बड़े अधिकारियों की मुहर लगाकर फर्जी नियुक्ति पत्र बांट रही थी. पुलिस को जांच में पता चला था कि जालसाज प्रियंका ने सभी मुहर राजधानी में ही बनवाई थी, बावजूद इसके पुलिस ने मुहर बनाने के इस गोरखधंधे से मुंह फेर लिया है. ऐसे में ईटीवी भारत ने ये जानने की कोशिश की है कि क्या सच में इतना आसान है पुलिस की नाक के नीचे किसी भी अधिकारी की मुहर बनवाना?

जानकारी देते संवाददाता गगन दीप मिश्रा





डीसीपी की मुहर 60 रुपये में तैयार : राजधानी लखनऊ के हज़रतगंज जैसा वीवीआईपी इलाका हो या डीएम कार्यालय के पास कैसरबाग व अमीनाबाद, इन जगहों पर दर्जनों ऐसी दुकानें दिख जाएंगी जहां लिखा होगा 'यहां मुहर बनती है'. ईटीवी भारत के संवाददाता ने ऐसी ही दुकानों में कुछ अधिकारियों का नाम व पद लिखकर एक कागज लेकर मुहर की दुकानों में जाने का फैसला किया. सबसे पहले हजरतगंज कोतवाली के करीब एक दुकान पर ईटीवी भारत की टीम पहुंची. हजरतगंज कोतवाली में ही डीसीपी मध्य का कार्यालय है, ऐसे में हमने मुहर बनाने वाले से डीसीपी मध्य अपर्णा रजत कौशिक की मुहर बनाने के लिए कहते हुए एक कागज दे दिया, जिसमें पूरी डिटेल लिखी हुई थी. मुहर बनाने वाले ने 60 रुपये प्रति मुहर का रेट बताया और दूसरे दिन आने को कहा, यही नहीं दो घंटे में मुहर लेने का चार्ज 120 बताया. टीम ने उन्हें पैसे दिए और दो घंटे के बाद डीसीपी की मुहर ले ली.





इसके बाद ईटीवी भारत की टीम कैसरबाग इलाके में पहुंची, जहां लाइन से दर्जनों दुकानें मौजूद थीं जहां लिखा हुआ था 'यहां मुहर बनती है'. यहां एक दुकान में जाकर हमने रिटायर हो चुके पूर्व अपर मुख्य सचिव गृह व मौजूदा मुख्यमंत्री सलाहकार अवनीश अवस्थी के नाम की मुहर बनवाने के लिए कहा. उन्होंने कागज में डिटेल लिखवाई व 60 रुपये लेकर दूसरे दिन आने को कहा. दूसरे दिन अवनीश अवस्थी के नाम की भी मुहर मिल गई.


कैसरबाग की ही एक दुकान पर हमने पूछा कि क्या 'हस्ताक्षर' की भी मुहर बनती है. दुकान वाले ने तुरंत कहा कि हस्ताक्षर क्या साहब कहें तो राष्ट्रपति की मुहर बना दें. इस दौरान एक हस्ताक्षर वाली मुहर का ऑर्डर दे दिया गया. हस्ताक्षर वाली मुहर का रेट थोड़ा ज्यादा था. दुकानदार ने कहा कि इस तरह की मुहर को बनाने के लिए हस्ताक्षर को स्कैन करना पड़ता है फिर बड़ी कारीगिरी से बनाई जाती है, इसलिये 170 रुपए से कम की नहीं बनेगी. हमने पैसे दिए और दूसरे दिन उसे ले लिया.



सबूतों की कमी से बच जाते है मुहर बनाने वाले : लखनऊ में सचिवालय से लेकर आयकर विभाग के अंदर बेरोजगार नौजवानों से नौकरी के नाम पर ठगी के मामले सामने आए हैं. यही नहीं इस ठगी में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वो मुहर ही निभाती है जिन्हें देखकर भोले भाले नौजवानों को यह भरोसा हो जाता है कि उन्हें दिया गया नियुक्ति पत्र असली है.

इस तरह खुलेआम बन रही फर्जी मुहर को रोकने के लिए आखिर क्यो कार्यवाई नहीं हो पा रही है यह पता करने के लिए ईटीवी भारत ने लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट की प्रवक्ता व डीजीपी मध्य अपर्णा रजत कौशिक से बातचीत की. उन्होंने फोन पर बताया कि आमतौर पर जब हम किसी जालसाज को गिरफ्तार करते हैं तो उसके पास से जो मुहर बरामद होती है, वह कहां से बनी इसका सबूत उन्हें नहीं मिल पाता है. चूंकि जालसाज के पास कोई रसीद भी नहीं होती है ऐसे में हम मुहर बनाने वाले पर कार्रवाई नहीं कर पाते हैं.

अधिकारी की बिना जानकारी के मुहर बनना है अपराध : डीसीपी बताती हैं कि, यदि कोई किसी भी व्यक्ति के नाम की मुहर बनाता है उसके लिए मुहर बनाने वाले को ये सुनिश्चित करना चाहिये कि वह जिस व्यक्ति की मुहर बना रहा है क्या यह उसकी जानकारी में है. जैसे लेटरपैड में लिख कर दिया गया हो या किसी अधिकारी ने अपना कर्मचारी भेजा हो. अगर इन सब बातों का ध्यान मुहर बनाने वाले नहीं दे रहे तो यह कानूनन अपराध है. डीसीपी के मुताबिक, अगर किसी अन्य अधिकारी की जानकारी के बगैर मुहर बनाई जाती है तो धारा 420, 468 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

यह भी पढ़ें : प्रदेश के वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को मिलेगा शोध कराने का मौका

लखनऊ : आपको राष्ट्रपति से लेकर लेखपाल तक की अगर फर्जी मुहर (Illegal seal is made in Lucknow) बनवानी हो तो सीधे चले आइए उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ, जहां 2 घंटे में किसी की भी मुहर तैयार मिल जाएगी. हैरानी की बात तो ये है कि रोजाना सैकड़ों युवकों को इन्हीं फर्जी मुहर लगा नियुक्ति पत्र देकर नौकरी के नाम पर ठगा जाता है. यही नहीं पुलिस को इस फर्जीवाड़े की माकूल जानकारी है बावजूद इसके अब तक कोई भी कार्रवाई नही हो सकी है.


राजधानी स्थित आयकर विभाग के कार्यालय में बीते दिनों आयकर इंस्पेक्टर के पद के लिए फर्जी इंटरव्यू चल रहा था. यही नहीं, इंटरव्यू पास करने वाले अभ्यर्थियों को सहायक आयुक्त आयकर विभाग की मुहर व सील लगे नियुक्ति पत्र भी दिए जा रहे थे. मामले का भंडाफोड़ हुआ तो पता चला कि कभी आयकर विभाग में संविदा की नौकरी करने वाली प्रियंका मिश्रा इस जालसाजी की मास्टरमाइंड थी और आयकर विभाग के सहायक आयुक्त, उपायुक्त समेत बड़े अधिकारियों की मुहर लगाकर फर्जी नियुक्ति पत्र बांट रही थी. पुलिस को जांच में पता चला था कि जालसाज प्रियंका ने सभी मुहर राजधानी में ही बनवाई थी, बावजूद इसके पुलिस ने मुहर बनाने के इस गोरखधंधे से मुंह फेर लिया है. ऐसे में ईटीवी भारत ने ये जानने की कोशिश की है कि क्या सच में इतना आसान है पुलिस की नाक के नीचे किसी भी अधिकारी की मुहर बनवाना?

जानकारी देते संवाददाता गगन दीप मिश्रा





डीसीपी की मुहर 60 रुपये में तैयार : राजधानी लखनऊ के हज़रतगंज जैसा वीवीआईपी इलाका हो या डीएम कार्यालय के पास कैसरबाग व अमीनाबाद, इन जगहों पर दर्जनों ऐसी दुकानें दिख जाएंगी जहां लिखा होगा 'यहां मुहर बनती है'. ईटीवी भारत के संवाददाता ने ऐसी ही दुकानों में कुछ अधिकारियों का नाम व पद लिखकर एक कागज लेकर मुहर की दुकानों में जाने का फैसला किया. सबसे पहले हजरतगंज कोतवाली के करीब एक दुकान पर ईटीवी भारत की टीम पहुंची. हजरतगंज कोतवाली में ही डीसीपी मध्य का कार्यालय है, ऐसे में हमने मुहर बनाने वाले से डीसीपी मध्य अपर्णा रजत कौशिक की मुहर बनाने के लिए कहते हुए एक कागज दे दिया, जिसमें पूरी डिटेल लिखी हुई थी. मुहर बनाने वाले ने 60 रुपये प्रति मुहर का रेट बताया और दूसरे दिन आने को कहा, यही नहीं दो घंटे में मुहर लेने का चार्ज 120 बताया. टीम ने उन्हें पैसे दिए और दो घंटे के बाद डीसीपी की मुहर ले ली.





इसके बाद ईटीवी भारत की टीम कैसरबाग इलाके में पहुंची, जहां लाइन से दर्जनों दुकानें मौजूद थीं जहां लिखा हुआ था 'यहां मुहर बनती है'. यहां एक दुकान में जाकर हमने रिटायर हो चुके पूर्व अपर मुख्य सचिव गृह व मौजूदा मुख्यमंत्री सलाहकार अवनीश अवस्थी के नाम की मुहर बनवाने के लिए कहा. उन्होंने कागज में डिटेल लिखवाई व 60 रुपये लेकर दूसरे दिन आने को कहा. दूसरे दिन अवनीश अवस्थी के नाम की भी मुहर मिल गई.


कैसरबाग की ही एक दुकान पर हमने पूछा कि क्या 'हस्ताक्षर' की भी मुहर बनती है. दुकान वाले ने तुरंत कहा कि हस्ताक्षर क्या साहब कहें तो राष्ट्रपति की मुहर बना दें. इस दौरान एक हस्ताक्षर वाली मुहर का ऑर्डर दे दिया गया. हस्ताक्षर वाली मुहर का रेट थोड़ा ज्यादा था. दुकानदार ने कहा कि इस तरह की मुहर को बनाने के लिए हस्ताक्षर को स्कैन करना पड़ता है फिर बड़ी कारीगिरी से बनाई जाती है, इसलिये 170 रुपए से कम की नहीं बनेगी. हमने पैसे दिए और दूसरे दिन उसे ले लिया.



सबूतों की कमी से बच जाते है मुहर बनाने वाले : लखनऊ में सचिवालय से लेकर आयकर विभाग के अंदर बेरोजगार नौजवानों से नौकरी के नाम पर ठगी के मामले सामने आए हैं. यही नहीं इस ठगी में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका वो मुहर ही निभाती है जिन्हें देखकर भोले भाले नौजवानों को यह भरोसा हो जाता है कि उन्हें दिया गया नियुक्ति पत्र असली है.

इस तरह खुलेआम बन रही फर्जी मुहर को रोकने के लिए आखिर क्यो कार्यवाई नहीं हो पा रही है यह पता करने के लिए ईटीवी भारत ने लखनऊ पुलिस कमिश्नरेट की प्रवक्ता व डीजीपी मध्य अपर्णा रजत कौशिक से बातचीत की. उन्होंने फोन पर बताया कि आमतौर पर जब हम किसी जालसाज को गिरफ्तार करते हैं तो उसके पास से जो मुहर बरामद होती है, वह कहां से बनी इसका सबूत उन्हें नहीं मिल पाता है. चूंकि जालसाज के पास कोई रसीद भी नहीं होती है ऐसे में हम मुहर बनाने वाले पर कार्रवाई नहीं कर पाते हैं.

अधिकारी की बिना जानकारी के मुहर बनना है अपराध : डीसीपी बताती हैं कि, यदि कोई किसी भी व्यक्ति के नाम की मुहर बनाता है उसके लिए मुहर बनाने वाले को ये सुनिश्चित करना चाहिये कि वह जिस व्यक्ति की मुहर बना रहा है क्या यह उसकी जानकारी में है. जैसे लेटरपैड में लिख कर दिया गया हो या किसी अधिकारी ने अपना कर्मचारी भेजा हो. अगर इन सब बातों का ध्यान मुहर बनाने वाले नहीं दे रहे तो यह कानूनन अपराध है. डीसीपी के मुताबिक, अगर किसी अन्य अधिकारी की जानकारी के बगैर मुहर बनाई जाती है तो धारा 420, 468 के तहत कार्रवाई की जा सकती है.

यह भी पढ़ें : प्रदेश के वित्तविहीन डिग्री कॉलेजों के शिक्षकों को मिलेगा शोध कराने का मौका

Last Updated : Dec 3, 2022, 7:27 PM IST
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