लखनऊ : केजीएमयू में यूपी आर्थोपेडिक्स एसोसिएशन द्वारा पीडियाट्रिक आर्थोपेडिक पर वेबिनार किया गया. इस दौरान विशेषज्ञों ने आगाह किया. कहा कि यदि डायपर पहनाते वक्त शिशु के पैर ठीक से न खुलें, दोनों पैर बराबर नहीं हैं तो इसे नजरअंदाज न करें. यह कूल्हे की हड्डी से जुड़ी गंभीर बीमारी हो सकती है. इस बीमारी को डेवलपमेंटल डिसप्लेजिया हिप (डीडीएच) कहते हैं.
केजीएमयू में पीडियाट्रिक आर्थोपैडिक्स विभाग के अध्यक्ष डॉ. अजय सिंह ने कहा कि यूपी आर्थोपेडिक्स एसोसिएशन द्वारा शनिवार को हिप डिसप्लेसिया के विषय में जागरूकता को लेकर वेबिनार हुआ. उन्होंने कहा कि देश में जन्म लेने वाले 1000 शिशु में नौ से 10 में यह परेशानी देखने को मिल रही है. जन्मजात बीमारी को शुरुआत में पकड़ा जा सकता है. उन्होंने बताया कि जब माता-पिता बच्चे को टीका लगवाने के लिए अस्पताल आते हैं तो बाल रोग विशेषज्ञ को बच्चे के शरीर की बनावट का परीक्षण करना चाहिए.
डॉ. अजय के मुताबिक कूल्हे के उतरने से बच्चे का एक पैर छोटा या बड़ा हो सकता है. शुरुआत के एक से डेढ़ माह में बीमारी की पहचान होने से इलाज की राह काफी आसान हो जाती है. एक बेल्ट चार से छह हफ्ते लगाकर कूल्हे को काफी हद तक ठीक कर सकते हैं. इससे शिशु के पैर भी काफी हद तक बराबर हो जाते हैं. वहीं, डॉ. सुरेश कुमार ने कहा कि 90 प्रतिशत तक बच्चे एक से डेढ़ साल की उम्र के बाद आते हैं. ऐसे में बेहोशी की दवा देकर बच्चे का प्लास्टर लगाना पड़ता है. कई बार ऑपरेशन तक करना पड़ता है.
केजीएमयू के पूर्व रेडियोलॉजिस्ट डॉ. पीके श्रीवास्तव के मुताबिक अल्ट्रासाउंड जांच से बीमारी को आसानी से पकड़ सकते हैं. उन्होंने बताया कि कई बार एक्सरे से मर्ज पकड़ में नहीं आता है. लिहाजा अल्ट्रसाउंड जांच ही बेहतर है. इसमें रेडिएशन का खतरा भी नहीं रहता है.
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केगीएमयू में श्रम मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्या ने 10 बीएलएस एम्बुलेंस को हरी झंडी दिखाई. इस दौरान कुलपति लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) डॉ. बिपिन पुरी, राज्यसभा सदस्य बृज लाल, प्रति कुलपति प्रो. विनीत शर्मा आदि मौजूद रहे. इस दौरान क्षत्रपति साहू जी महाराज की जयंती मनाई गई.
क्या है हिप डिस्प्लेसिया
बच्चों को होने वाली हिप डिस्प्लेसिया एक ऐसी बीमारी है जिसमें बच्चे के कूल्हे के "बॉल और सॉकेट" सही से नहीं बनते हैं. इसे जन्मजात हिप अव्यवस्था या हिप डिस्प्लेसिया भी कहा जाता है. दरअसल, आपके शरीर का हिप ज्वाइंट, जांघ की हड्डी को श्रोणि से जोड़ता है. ऐसे में अगर आपके कूल्हे सामान्य हैं तो हिप बॉल स्थानांतरित करने के लिए सॉकेट में स्वतंत्र रूप से घूमती है. वहीं, अगर आपको हिप डिस्प्लेसिया की परेशानी है तो हिप बॉल और सॉकेट पूरी तरह से जांघ की हड्डी को आसानी से स्थानांतरित नहीं कर पाता है जिससे आपके कूल्हे का जोड़ आसानी से ढीला हो सकता है.
बच्चों में हिप डिस्प्लेसिया के कारण
अनुवांशिक, शिशु के कूल्हे और पैर मां के गर्भाशय ग्रीवा के पास होना, मां की पहली प्रेग्नेंसी में पेट का शख्त होना, शिशु में एमनियोटिक द्रव्य का स्तर कम होना. इसकी मदद से गर्भ में शिशु का मूवमेंट सीमित हो जाता है.
हिप डिस्प्लेसिया का इलाज
इसका इलाज शिशु की उम्र और लक्षणों की गंभीरता पर निर्भर करता है. हिप डिस्प्लेसिया के इलाज-
पावलिक हार्नेस : बच्चों में हिप डिस्प्लेसिया के इलाज के लिए पावलिक हार्नेस उपकरण का प्रयोग किया जाता है. इस उपकरण की मदद से बच्चों के कूल्हों को सही पोजीशन में रखने में मदद मिलती है. इससे उनके कूल्हे के जोड़ का विकास सही तरीके से होता है.
क्लोज्ड रिडक्शन : यह इलाज छह सप्ताह से एक वर्ष के बच्चों के लिए है. इसमें बच्चे को एनेस्थीसिया दी जाती है जिसके बाद डॉक्टर कूल्हे को सॉकेट में सही तरीके से फिट करता है.
ओपन रिडक्शन : यह इलाज 12 महीने से अधिक उम्र के बच्चों के लिए है. इसमें हिप डिस्प्लसिया के लिए ओपन बच्चे की रिडक्शन सर्जरी की जाती है. यह गंभीर अवस्था में ही किया जाता है.