लखनऊ: हम जिन आभूषणों का इस्तेमाल करते हैं, इनकी गुणवत्ता की परख के लिए उन पर हॉलमार्क लगाया जाता है. कैसे हालमार्क आभूषणों पर लगाया जाता है और हॉलमार्क लगाते समय अगर असावधानी बरती जाए तो वह उन कारीगरों के लिए कितना घातक साबित हो सकता है. हॉलमार्क को लेकर की गई ईटीवी भारत की इस खास पड़ताल में जो हकीकत सामने आई वो बेहद चौंका देने वाली है.
प्राचीन काल से ही इंसान आभूषणों का शौकीन रहा है. सोने, चांदी, हीरे, मोती, या प्लैटिनम आदि तत्वों से नए-नए प्रकार के आभूषणों का निर्माण किया जाता है, जिसे लोग काफी शौक से पहनते हैं. वहीं इन आभूषणों की गुणवत्ता के सत्यापन के लिए इन पर हॉलमार्क सरकार द्वारा लगाया जाता है.
क्या होता है हॉलमार्क ?
हॉलमार्क एक प्रकार का चिन्ह है, जिसे आभूषणों पर बनाया जाता है. इससे आभूषण की गुणवत्ता का सत्यापन किया जा सकता है कि आभूषण असली हैं या नकली. वहीं, इन हॉलमार्क को बनाने के लिए अलग-अलग प्रकार की तकनीकों का इस्तेमाल भी किया जाता है. शुरुआती दौर में हॉलमार्क बनाने के लिए स्टांपिंग का इस्तेमाल किया जाता था, जिसके बाद नई-नई तकनीकें सामने आई. जैसे- लेजर टेक्निक, लेजर टेक्निक में एक्सरे फ्लोरोसेंस का इस्तेमाल कर आभूषणों पर हॉल मार्किंग की जाती है.
कितना खतरनाक होता है हॉलमार्किंग करना
ईटीवी भारत की टीम राजधानी लखनऊ के एक ज्वेलरी शोरूम पहुंची, जहां मैनेजर ने बताया कि सरकार के द्वारा यह सख्त आदेश दिया गया है कि कोई भी दुकानदार बिना हॉलमार्क के जेवर को नहीं बेच सकता. वहीं मैनेजर ने बताया कि आभूषणों की सत्यता को जांचने के लिए उनके द्वारा भी एक्स-रे किया जाता है, जिस दौरान अगर असावधानी बरती गई तो काफी खतरनाक भी हो सकता है.
वहीं जब हॉलमार्किंग को लेकर की गई पड़ताल में ईटीवी भारत ने डॉक्टर से बात की तो उनका कहना है कि हॉल मार्किंग के दौरान इस्तेमाल किए जाने वाले केमिकल्स व एक्स-रे फ्लोरोसेंस आदि इंसानों के लिए बहुत घातक होते हैं. जहां एक तरफ हमें आभूषण खरीदते समय हॉलमार्क का ध्यान रखना बहुत आवश्यक है. वहीं दूसरी तरफ हॉलमार्किंग करने वाले कारीगरों को भी सावधानी बरतनी बहुत जरूरी है.
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