लखनऊ: देश भर में भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती मनाई जा रही है. उनकी जयंती के अवसर पर उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने ईटीवी भारत से खास बातचीत की. ईटीवी से बात करते हुए उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से जुड़े कुछ रोचक संस्मरणों को साझा किया.
उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि अटल जी दुनिया के सबसे बड़े नेता, कुशल वक्ता और सबसे ज्यादा प्रभाव डालने वाले राजनेता रहे हैं. मेरा सौभाग्य है कि 1972-1973 में पहली बार संगठन का प्रमुख होने के नाते अटल जी को उन्नाव में एक कार्यक्रम में बुलाया था. उस समय माइक संभालने के बाद मैने जैसे ही कुछ वाक्य बोला तब तक अटल जी ने बैठे-बैठे ही कहा कि आप राजनीतिक दल की बैठक का संचालन कर रहे हैं, किसी साहित्य सम्मेलन में नहीं बोल रहे हैं. उन्होंने बताया कि उनकी हिंदी क्लिष्ठ हुआ करती थी. हालाकि बाद में फिर अटल जी ने हंसते हुए सुधार करना सिखाया.
नैनी जेल में अटल जी और हम
हृदय नारायण दीक्षित ने कहा कि साल 1975 के अप्रैल महीने में एक आंदोलन हुआ था और हम लोगों ने गिरफ्तारी दी. उस गिरफ्तारी में उन्नाव, हरदोई, रायबरेली और आस-पास के कार्यकर्ताओं को बुलाया गया था. हम लोग गिरफ्तार हुए. उस समय यह निश्चित हुआ कि जो जिला स्तर के पदाधिकारी हैं, वह अटल जी के साथ नैनी जेल में रहेंगे और जो छोटे कार्यकर्ता हैं वह लखनऊ जेल में रहेंगे. हमारा सौभाग्य था कि हम अटल जी के साथ नैनी जेल में रहे. जेल में अटल जी के बिस्तर के ठीक बगल में हमने भी अपना बिस्तर लगाया था. इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्र और यूनियन के पदाधिकारियों ने अटल जी से कहा कि आपने विवाह क्यों नहीं किया. तब उन्होंने कहा कि जब शादी करने की उम्र थी तब तो हम संघ का काम कर रहे थे, उसके बाद नेतागिरी में आ गए. अब तो उम्र भी ढल गई है, अब हमें कौन पूछेगा? कोई प्रस्ताव लाए हो क्या? उनके इस सवाल पर लड़के लहालोट होकर हंसने लगे.
नैनी जेल में शाम को हम लोग आपस में कबड्डी खेलते थे. हमारे बगल के गांव के किरन सिंह को उन्होंने कहा कि तुम हमारी तरफ से खेलो. एक दिन किरन सिंह अटल जी से छुपाकर लोटा के अंदर सिगरेट पी रहे थे. अटल जी ने उनको दूर से देखा और मुझसे कहा कि आपके कार्यकर्ता ने सिगरेट पीने का नया तरीका खोजा है. इस तो सबको पता होना चाहिए. इस तरह से वह हमेशा आस-पास के लोगों को आनंदित करते रहते थे.
जब गुस्से में लिखा था अटल जी को पत्र
पहली बार 1977 में जब अटल जी विदेश मंत्री बने तब हमारे क्षेत्र में एक व्यक्ति का पासपोर्ट बनवाने का काम था. उस समय अधिकारियों ने ठीक से बात नहीं की तो रात में मैंने अटल जी को एक पत्र लिखा और पासपोर्ट अधिकारी के ठीक से बात न करने की बात लिख डाली. कुछ दिन बाद अटल जी का जवाब आया तो लिखा था कि गुस्से में पत्र लिखते समय आप तारीख लिखना भूल जाते हैं. हालांकि बाद में उस व्यक्ति का पासपोर्ट भी बन गया. वह इसी तरह से हमेशा कुछ नया सिखाते रहते थे.
एक बार ऐसे ही हम वीवीआईपी गेस्ट हाउस में बैठे हुए थे. इसी बीच मेरा फोन आ गया तो मैं उठकर बाहर चला गया. वापस आया तो देखा कुर्सियां भर गई हैं, तब अटल जी ने कहा कि बाहर जाया करो तो कुर्सी पकड़ कर ले जाया करो. कुर्सी पकड़ कर रखना चाहिए. इसके बाद जो लोग कुर्सी पर बैठे थे, उन्होंने मेरे लिए कुर्सी छोड़ दी. उनका हर बात कहने का एक अंदाज होता था.
अटल जी का अलग अंदाज
लोकसभा में उनके भाषण, राज्यसभा के भाषण, पब्लिक में उनके भाषण, सारे के सारे भाषण हम लोगों के लिए प्रेरणा का विषय बनते हैं. बार-बार मन में आता है कि मैं उनकी तरह कैसे बोलूं, कैसे लिखूं, मैं उनकी तरह विषय को कैसे रखूं. अटल जी ने कहा था कि गजनी मेरे मेरे सीने में, मेरी पसलियों में चुभता है और गजनी के महमूद ने यहां पर कई बार आक्रमण किए थे. उसको हमलावर न बताकर अटल जी ने अपने अंदाज में अपनी बात कही.
राष्ट्रधर्म पत्रिका के जनसंघ अंक का संपादन मैंने किया था. अटल जी उस समय काफी अस्वस्थ हो गए थे. यह तय हुआ कि इसका विमोचन उन्हीं से कराया जाना है. उस अंक में उनके जमाने के फोटो, फटे हुए कुर्ते के फोटो लगाए गए. हम लोग जब दिल्ली गए तो ठंड का महीना था, दिल्ली में विमोचन कराना था. तब अटल जी ने फोटो देखा तो वह रोने लगे. हम लोगों ने बहुत मेहनत करके उनको तैयार किया था. उन्होंने हम लोगों की बहुत प्रशंसा भी की थी.
जब कार्यक्रम हो गया तब अटल जी ने कहा कि तुम कभी खुशवन्त सिंह से मिले हो कि नहीं. उनसे मिलना वह तुम्हारी तारीफ करते हैं. इस तरह बड़े लोगों से मिलना प्रोत्साहित करना बड़ा व्यक्तित्व था. अटल जी का राजनीति में ऐसा व्यक्तित्व उन्हीं की दृष्टि को लेकर अब भारतीय जनता पार्टी की नरेंद्र मोदी सरकार और योगी सरकार काम कर रही है. हम लोग उनके मार्गदर्शन में उन्हीं के रास्ते पर चलने का प्रयास करते हैं. कभी लुढ़क जाते हैं तो कभी चलने लगते हैं.