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क्या आपको पता है झाड़ू का इतिहास, जानिए इनसाइड स्टोरी

दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली झाड़ू को हर कोई अपने घर, दुकान और आंगन में रखता है. पर क्या आपको इसका इतिहास पता है. झाड़ू का इतिहास जानने के लिए पढ़िए हमारी ये खास रिपोर्ट.

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झाड़ू का इतिहास.
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Published : Feb 18, 2020, 3:34 AM IST

लखनऊः दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली झाड़ू को हम सभी अपने घर, दुकान और ऑफिस में रखते हैं. झाड़ू तो सफाई के काम आती है, लेकिन क्या आपको इसका इतिहास पता है. शायद कुछ लोगों को पता हो पर अधिकतर लोगों को यह नहीं पता कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई. आइए जानते हैं कि आखिरकार क्या है झाड़ू का इतिहास.

झाड़ू का इतिहास.

इसे दिए गए हैं अनेकों नाम
परिस्थिति, भागौलिक, विभिन्न सांस्कृति के अनुरूप झाड़ू का स्वरुप बदला है. इसे कलुषनासिनी, सम्मार्जनी, ख्योरा, ब्रश, पोचड़ा, कुचा, बाढ़न, बढ़नी, कोस्ता आदि नामों से जाना जाता है.

झाड़ू की उत्पत्ति के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
इतिहासकारों का मानना है कि चीन में 25-220 ईसवी में पूर्वी हान राजवंश में इसके उल्लेख मिलते हैं. इस राजवंश में निर्मित पत्थरों की कब्र के एक दरवाजे पर एक आदमी को झाड़ू लिए दर्शाया गया है. हान राजवंश से प्राप्त अवशेषों को चीन के चैगदु शहर के सिचुआन प्रांतीय संग्रहालय में रखा गया है.

1453 ई. में यूरोप के कई साहित्यकारों ने अपने साहित्य में झाड़ू की सवारी करने वाले गुइलामोम ऐडेलिन का उल्लेख करते हैं. साथ ही 1456 ई. में ऐसी मान्यता है कि चुड़ैल झाड़ू की सवारी करती थी और इसके चित्र भी मिलते हैं.

अधिकतर वैज्ञानिक 1797 ई. में अमेरिका के मेसाचुसेट्स में एक किसान द्वारा बनाई गई झाड़ू को ही इसकी उत्पत्ति का काल मानते हैं. आधुनिक पश्चिमी विद्वान झाड़ू की उत्पत्ति को ईसा से 200 वर्ष बाद का मानते हैं.

मानव शास्त्रियों की मान्यता
मानव शास्त्रियों का मानना है कि आज से 16 से 18 लाख वर्ष पूर्व आदिमानव काल में झाड़ू की उत्पत्ति हुई. इनका मत है कि तब मनुष्य कपि रुप में था और उसके पास पूंछ हुआ करती थी. जब आदिमानव की पूंछ खत्म हुई तो कुत्ते की साफ करने की प्रवृत्ति से प्रेरित होकर जानवरों के बाल से और जंगली घासों से झाड़ू बनाकर साफ करते रहे होंगे.

प्राचीन सभ्यताओं में मिले झाड़ू के प्रमाण
इतिहासकारों का मानना है कि मिश्र की सभ्यता, हरक्वेलियम, पाम्पेई और हड़प्पा कालीन सभ्यता में पाए गए अवशेषों में झाड़ू के चिन्ह पाए गए. भारत में स्थित अजंता और एलोरा की गुफाओं में बने चित्रों और मूर्तियों में गणिकाओं के हाथ में चंवर के रूप में होना दर्शाया गया है.

भारत में झाड़ू का इतिहास
भारतीय जनमानस में झाड़ू को लेकर अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं. हिन्दुओं की देवी माता शीतला के हाथ में झाड़ू को दर्शाया गया है. साथ ही झाड़ू को लक्ष्मी का रुप मानकर धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने की परंपरा भी है. संस्कृत में झाड़ू को सम्मार्जनी कहा गया है.

प्राचीन कालीन भारतीय इतिहास में जैन मुनियों के पास चंवर होने का वर्णन मिलता है. मनुस्मृति में पंचपाप संबंधी श्र्लोक में भी झाड़ू का उल्लेख किया गया है. अग्नि पुराण के 77वें अध्याय में भी चूल्हा, चक्की के साथ झाड़ू को व्यवस्थित रखने की बात कही गई है.

यूपी के संभल जिले के बहजोई शिव मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर झाड़ू चढ़ाने की परंपरा है. वहीं बिहार के गया में विष्णु पद मंदिर में जिस झाड़ू से सफाई की जाती है, भक्त उसे अपने माथे पर लगाने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

विश्व परिदृश्य में झाड़ू की महत्वता
फिलिपीन्स द्वीप समूह में बागाबो जनजाति झाड़ू को लोक देवता का प्रतीक मानते हैं. आस्ट्रेलिया के बुमरेंग जनजाति में बुजुर्ग हर समय सम्मान के प्रतीक स्वरुप झाड़ू को अपने साथ रखते हैं. प्रशांत महासागर में स्थित न्यूगिनी द्वीप में बुरी आत्माओं से बचने के लिए झाड़ू को घर के दरवाजे पर लटकाकर रखते हैं.

मान्यता है कि 18 शताब्दी में गुलाम अमेरिका में ब्रुमस्टिक शादी करते थे. इसमें नवदंपति को झाड़ू के ऊपर कूदना होता है. वहीं इटली, कनाडा और अफ्रीका महाद्वीप के कुछ देशों में तुलसी की झाड़ से बनी झाड़ू को लोग पवित्र मानते हैं. भारत, यूरोप सहित अफ्रीका में सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू न लगाने की परंपरा है.

लखनऊः दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली झाड़ू को हम सभी अपने घर, दुकान और ऑफिस में रखते हैं. झाड़ू तो सफाई के काम आती है, लेकिन क्या आपको इसका इतिहास पता है. शायद कुछ लोगों को पता हो पर अधिकतर लोगों को यह नहीं पता कि इसकी उत्पत्ति कैसे हुई. आइए जानते हैं कि आखिरकार क्या है झाड़ू का इतिहास.

झाड़ू का इतिहास.

इसे दिए गए हैं अनेकों नाम
परिस्थिति, भागौलिक, विभिन्न सांस्कृति के अनुरूप झाड़ू का स्वरुप बदला है. इसे कलुषनासिनी, सम्मार्जनी, ख्योरा, ब्रश, पोचड़ा, कुचा, बाढ़न, बढ़नी, कोस्ता आदि नामों से जाना जाता है.

झाड़ू की उत्पत्ति के कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
इतिहासकारों का मानना है कि चीन में 25-220 ईसवी में पूर्वी हान राजवंश में इसके उल्लेख मिलते हैं. इस राजवंश में निर्मित पत्थरों की कब्र के एक दरवाजे पर एक आदमी को झाड़ू लिए दर्शाया गया है. हान राजवंश से प्राप्त अवशेषों को चीन के चैगदु शहर के सिचुआन प्रांतीय संग्रहालय में रखा गया है.

1453 ई. में यूरोप के कई साहित्यकारों ने अपने साहित्य में झाड़ू की सवारी करने वाले गुइलामोम ऐडेलिन का उल्लेख करते हैं. साथ ही 1456 ई. में ऐसी मान्यता है कि चुड़ैल झाड़ू की सवारी करती थी और इसके चित्र भी मिलते हैं.

अधिकतर वैज्ञानिक 1797 ई. में अमेरिका के मेसाचुसेट्स में एक किसान द्वारा बनाई गई झाड़ू को ही इसकी उत्पत्ति का काल मानते हैं. आधुनिक पश्चिमी विद्वान झाड़ू की उत्पत्ति को ईसा से 200 वर्ष बाद का मानते हैं.

मानव शास्त्रियों की मान्यता
मानव शास्त्रियों का मानना है कि आज से 16 से 18 लाख वर्ष पूर्व आदिमानव काल में झाड़ू की उत्पत्ति हुई. इनका मत है कि तब मनुष्य कपि रुप में था और उसके पास पूंछ हुआ करती थी. जब आदिमानव की पूंछ खत्म हुई तो कुत्ते की साफ करने की प्रवृत्ति से प्रेरित होकर जानवरों के बाल से और जंगली घासों से झाड़ू बनाकर साफ करते रहे होंगे.

प्राचीन सभ्यताओं में मिले झाड़ू के प्रमाण
इतिहासकारों का मानना है कि मिश्र की सभ्यता, हरक्वेलियम, पाम्पेई और हड़प्पा कालीन सभ्यता में पाए गए अवशेषों में झाड़ू के चिन्ह पाए गए. भारत में स्थित अजंता और एलोरा की गुफाओं में बने चित्रों और मूर्तियों में गणिकाओं के हाथ में चंवर के रूप में होना दर्शाया गया है.

भारत में झाड़ू का इतिहास
भारतीय जनमानस में झाड़ू को लेकर अनेक मान्यताएं प्रचलित हैं. हिन्दुओं की देवी माता शीतला के हाथ में झाड़ू को दर्शाया गया है. साथ ही झाड़ू को लक्ष्मी का रुप मानकर धनतेरस के दिन झाड़ू खरीदने की परंपरा भी है. संस्कृत में झाड़ू को सम्मार्जनी कहा गया है.

प्राचीन कालीन भारतीय इतिहास में जैन मुनियों के पास चंवर होने का वर्णन मिलता है. मनुस्मृति में पंचपाप संबंधी श्र्लोक में भी झाड़ू का उल्लेख किया गया है. अग्नि पुराण के 77वें अध्याय में भी चूल्हा, चक्की के साथ झाड़ू को व्यवस्थित रखने की बात कही गई है.

यूपी के संभल जिले के बहजोई शिव मंदिर में शिवरात्रि पर्व पर झाड़ू चढ़ाने की परंपरा है. वहीं बिहार के गया में विष्णु पद मंदिर में जिस झाड़ू से सफाई की जाती है, भक्त उसे अपने माथे पर लगाने की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं.

विश्व परिदृश्य में झाड़ू की महत्वता
फिलिपीन्स द्वीप समूह में बागाबो जनजाति झाड़ू को लोक देवता का प्रतीक मानते हैं. आस्ट्रेलिया के बुमरेंग जनजाति में बुजुर्ग हर समय सम्मान के प्रतीक स्वरुप झाड़ू को अपने साथ रखते हैं. प्रशांत महासागर में स्थित न्यूगिनी द्वीप में बुरी आत्माओं से बचने के लिए झाड़ू को घर के दरवाजे पर लटकाकर रखते हैं.

मान्यता है कि 18 शताब्दी में गुलाम अमेरिका में ब्रुमस्टिक शादी करते थे. इसमें नवदंपति को झाड़ू के ऊपर कूदना होता है. वहीं इटली, कनाडा और अफ्रीका महाद्वीप के कुछ देशों में तुलसी की झाड़ से बनी झाड़ू को लोग पवित्र मानते हैं. भारत, यूरोप सहित अफ्रीका में सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू न लगाने की परंपरा है.

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