लखनऊ :सुप्रसिद्ध आलोचक और हिंदी साहित्यकार नामवर सिंह के निधन से साहित्यकारों औरलेखकों में शोक की लहर दौड़ उठी है. राजधानी लखनऊ के साहित्यकारों ने उनके निधन पर शोक जताया है.नामवर सिंह हिंदी के आलोचक माने जाते थे, लेकिन उर्दू जगत में उनका मान-सम्मान रहा है, जिसके चलते उर्दू साहित्यकारों में भी शोक की लहर है.
दरअसल वाराणसी के रहने वाले हिंदी के जाने-माने साहित्यकार नामवर सिंह का मंगलवार देर रात निधन हो गया.93 वर्षकी अवस्था में वेदुनिया को छोड़कर चले गए. जनवरी के महीने में अचानक वहअपने कमरे में गिर गए थे. तब से उन्हें एम्स के ट्रॉमा सेंटर में भर्ती कराया गया था. उन्होंने रात करीब 12 बजे अंतिम सांस ली. साहित्यकार नामवर सिंह काइलाज कर रहे चिकित्सकों की रिपोर्ट के अनुसार उन्हें ब्रेन हेमरेज हुआ था,लेकिनवेखतरे से बाहर आ गए थे. चिकित्सकों के अनुसार उनकी हालत में सुधार भी हो रहा था, लेकिन मंगलवार को उन्होंने दुनिया को अलविदा कर दिया.
चुनाव मैदान में आजमाई किस्मत
साहित्यकार नामवर सिंह का जन्म 28 जुलाई 1926को वाराणसी (वर्तमान में चंदौली जिला) के गांव जीयनपुर में हुआ था. उन्होंनेहिंदी साहित्य से MA औरPHDकरने के बाद काशी हिंदू विश्वविद्यालय में शिक्षा ली. नामवर सिंह नेराजनीति में भी किस्मत आजमाई थी.वर्ष 1959 में चकिया-चंदौली लोकसभा सीट से भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार रूप में चुनाव लड़ा और हार के चलते उनको BHUछोड़ना पड़ा. इसके बाद वह सागर विश्वविद्यालय, जोधपुर विश्वविद्यालय और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में अध्यापन से जुड़ गए.
इस विश्वविद्याल में रहे कुलाधिपति
बताते हैं कि JNU में अवकाश प्राप्त करने के बाद भी वेविश्वविद्यालय के भारतीय भाषा केंद्र में इमेरिट्स प्रोफेसर रहे. साहित्यकार नामवर सिंह महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय के कुलाधिपति भी रह चुके हैं. इसके साथ ही राजा राममोहन राय पुस्तकालय प्रतिष्ठान के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.हिंदी के साथ-साथ नामवर सिंह काउर्दू जगत में भी मान-सम्मान रहा है.उनके जाने से उर्दू साहित्यकार उनको याद कर उर्दू जगत में भी बड़ी क्षतिमान रहे हैं.
उर्दू साहित्यकारों में शोक की लहर
उर्दू साहित्यकार शकील सिद्दीकी बताते हैं किनामवर सिंहकिसी एक मैदान तक सीमित रहने वालों में से नहीं थे. उन्होंने आलोचना लिखी, इतिहास लिखा, कहानी, कविता और यहांतक कि सियासत में भी किस्मतआजमाई.साहित्यकार शकील बताते हैकि नामवर सिंहने JNU में दक्षिण भाषाओं का अध्ययन केंद्र खोला,जिसके बाद JNUसे कई लोगों ने भाषाओं पर अध्ययन करके नाम कमाया. गौरतलब है कि जहांमौजूदा समय में आलोचकों को दुनिया भूलती जा रही है. वहीं आलोचक नामवर सिंह ने दुनिया को भुला दिया.लोगों का मानना है कि अब इस दौर में आलोचकों की कमी है और नामवर सिंह के जाने के बाद यह कमी कोई और पूरी भी नहीं कर सकता.