ETV Bharat / state

हाईकोर्ट का अहम फैसला, हल्के में या तुच्छ आधार पर हिंदू विवाह को तोड़ना नहीं चाहिए - HIGH COURT DECISION

हाईकोर्ट ने एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि दो हिंदुओं के बीच विवाह पवित्र है और इसका विच्छेद केवल कानूनी तरीकों से स्वीकार्य

इलाहाबाद हाईकोर्ट
इलाहाबाद हाईकोर्ट (Photo Credit; ETV Bharat)
author img

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Jan 27, 2025, 10:24 PM IST

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि हिंदू विवाह को पहले वर्ष के भीतर तब तक भंग नहीं किया जा सकता, जब तक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 14 के प्रावधानों के तहत असाधारण कठिनाई या भ्रष्टता जैसे असाधारण आधार स्पष्ट रूप से प्रदर्शित न किए जाएं. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दो हिंदुओं के बीच विवाह पवित्र है और इसका विच्छेद केवल कानून में मान्यता प्राप्त कारणों से ही स्वीकार्य होगा. इसका विघटन हल्के में या तुच्छ आधार पर नहीं किया जाना चाहिए.

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने पारिवारिक न्यायालय सहारनपुर के निर्णय को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए दिया है. पारिवारिक न्यायालय ने वैधानिक एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि समाप्त होने से पहले आपसी सहमति से तलाक के लिए दाखिल याचिका को अस्वीकार कर दिया था.

कोर्ट ने कहा कि वैधानिक एक वर्ष की अवधि एक सार्थक उद्देश्य की पूर्ति करती है, जो दंपति को तलाक लेने से पहले सामंजस्य स्थापित करने और अपने निर्णय पर विचार करने का समय देती है. हाईकोर्ट ने सहारनपुर के पारिवारिक न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा. कहा कि विवाह के पहले वर्ष के भीतर तलाक याचिका की अनुमति देने से पारिवारिक न्यायालय के इनकार में कोई अवैधानिकता या विकृति नहीं थी. साथ ही अपीलार्थी असाधारण कठिनाई या असाधारण भ्रष्टता का अस्तित्व प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं. जिसके लिए वैधानिक एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को माफ किया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि याची धारा 14 के तहत अनिवार्य एक वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद नई याचिका करने के लिए स्वतंत्र होंगे.

इसे भी पढ़ें-जज ने पहले भगवान शिव-पार्वती के प्रेम का दिया उदाहरण, फिर पत्नी मीरा की हत्या करने वाले पति श्रवण को सुनाई उम्रकैद की सजा

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक निर्णय में कहा है कि हिंदू विवाह को पहले वर्ष के भीतर तब तक भंग नहीं किया जा सकता, जब तक हिंदू विवाह अधिनियम 1955 की धारा 14 के प्रावधानों के तहत असाधारण कठिनाई या भ्रष्टता जैसे असाधारण आधार स्पष्ट रूप से प्रदर्शित न किए जाएं. कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि दो हिंदुओं के बीच विवाह पवित्र है और इसका विच्छेद केवल कानून में मान्यता प्राप्त कारणों से ही स्वीकार्य होगा. इसका विघटन हल्के में या तुच्छ आधार पर नहीं किया जाना चाहिए.

यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र एवं न्यायमूर्ति डोनाडी रमेश की खंडपीठ ने पारिवारिक न्यायालय सहारनपुर के निर्णय को चुनौती देने वाली अपील को खारिज करते हुए दिया है. पारिवारिक न्यायालय ने वैधानिक एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि समाप्त होने से पहले आपसी सहमति से तलाक के लिए दाखिल याचिका को अस्वीकार कर दिया था.

कोर्ट ने कहा कि वैधानिक एक वर्ष की अवधि एक सार्थक उद्देश्य की पूर्ति करती है, जो दंपति को तलाक लेने से पहले सामंजस्य स्थापित करने और अपने निर्णय पर विचार करने का समय देती है. हाईकोर्ट ने सहारनपुर के पारिवारिक न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा. कहा कि विवाह के पहले वर्ष के भीतर तलाक याचिका की अनुमति देने से पारिवारिक न्यायालय के इनकार में कोई अवैधानिकता या विकृति नहीं थी. साथ ही अपीलार्थी असाधारण कठिनाई या असाधारण भ्रष्टता का अस्तित्व प्रदर्शित करने में विफल रहे हैं. जिसके लिए वैधानिक एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि को माफ किया जाना चाहिए. कोर्ट ने यह भी कहा कि याची धारा 14 के तहत अनिवार्य एक वर्ष की अवधि पूरी होने के बाद नई याचिका करने के लिए स्वतंत्र होंगे.

इसे भी पढ़ें-जज ने पहले भगवान शिव-पार्वती के प्रेम का दिया उदाहरण, फिर पत्नी मीरा की हत्या करने वाले पति श्रवण को सुनाई उम्रकैद की सजा

ETV Bharat Logo

Copyright © 2025 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.