लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने मदरसा छात्रों के स्कॉलराशिप में करोड़ों के घोटाले के वर्ष 2014 के एक मामले में सख्त रुख अपनाते हुए निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण से पूछा है कि विभागीय जांच मे दोषी पाए गए अधिकारी से वसूली क्यों नहीं की गई. न्यायालय ने यह भी बताने को कहा है कि वसूली न करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों से क्यों न घोटाले की रकम की वसूली की जाए. न्यायालय ने अगली सुनवाई के लिए 25 जनवरी की तिथि नियत की है. साथ ही यह भी स्पष्ट किया है कि यदि अगली सुनवाई तक हलफनामा नहीं आता तो निदेशक अल्पसंख्यक कल्याण को कोर्ट में हाजिर होना होगा.
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति आलोक माथुर की खंडपीठ ने इस्लामिक मदरसा मॉर्डनाइजेशन टीचर्स एसोसिएशन की ओर से दाखिल वर्ष 2014 की जनहित याचिका पर पारित किया. न्यायालय को प्रति शपथ पत्र के जरिए बताया गया कि हाथरस के तत्कालीन जिला अल्पसंख्यक कल्याण अधिकारी बीपी सिंह ने छात्रों के फर्जी नाम से 24 करोड़ 92 लाख 76 हजार 312 रुपये के स्कॉलराशिप धनराशि की मांग की थी. यह भी बताया गया कि इस सम्बंध में 2011-12 व 2012-13 का कोई भी रिकॉर्ड कार्यालय में मौजूद नहीं है. मामले में बीपी सिंह के विरुद्ध एफआईआर दर्ज है. हालांकि निदेशक द्वारा संस्तुति देने के पश्चात वर्ष 2019 में अभियोजन शुरू हो सका है। इस पर न्यायालय ने नाराजगी जताते हुए कहा कि प्रतीत होता है कि वह स्वयं इसमें शामिल हो अथवा उसके कार्यालय के स्टाफ ने संस्तुति सम्बंधी फाइल दबा रखी हो.
न्यायालय को यह भी बताया गया कि दोषी पाए गए अधिकारी से 27 लाख 25 हजार रुपये वसूली की नोटिस भेजी गई थी. हालांकि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वसूली पर रोक लगा दी. इस पर न्यायालय ने कहा कि मामला करोड़ों का है तो सिर्फ 27 लाख 25 हजार की वसूली का विवरण ही क्यों दिया गया. न्यायालय ने यह भी पूछा है कि वसूली न हो पाने के लिए कौन से अधिकारी जिम्मेदार हैं.