लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने केंद्र और राज्य सरकार से पूछा है कि मदरसों को किन योजनाओं के तहत सरकारी सहायता दी जाती है. न्यायालय ने तीन सप्ताह का समय देते हुए इस सम्बंध में शपथ पत्र दाखिल करने का आदेश दिया है. मामले की अगली सुनवाई तीन सप्ताह बाद होगी. यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति ओम प्रकाश शुक्ला की खंडपीठ ‘सरकारी धन से धार्मिक शिक्षा का मामला’ शीर्षक से स्वतः संज्ञान द्वारा दर्ज जनहित पर पारित किया है.
इसी के साथ न्यायालय ने मामले की सुनवाई में सहयोग के लिए वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर को न्याय मित्र भी नियुक्त किया है. न्यायालय ने राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को भी तीन सप्ताह का समय देते हुए उन निरीक्षण रिपोर्ट्स और पत्राचार को रिकॉर्ड पर लाने का आदेश दिया है, जिनके अनुसार सरकारी धन से मदरसों में धार्मिक शिक्षा से बच्चों के अधिकारों का उल्लंघन होता है.
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दरअसल, सेवा सम्बंधी एक मामले की सुनवाई के दौरान सुनवाई कर रही एकल पीठ ने केंद्र व राज्य सरकार से पूछा था कि सरकारी खर्चे पर या सरकार द्वारा वित्त पोषित करते हुए मजहबी शिक्षा कैसे दी जा रही है. न्यायालय ने यह भी पूछा था कि क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26, 29 व 30 का उल्लंघन नहीं है. वहीं, एनसीपीसीआर ने मामले में हस्तक्षेप प्रार्थना पत्र दाखिल करते हुए शपथ पत्र के माध्यम से कहा कि मदरसों में बच्चों को मिलने वाली शिक्षा समुचित और व्यापक नहीं है.
इसके आभाव में मदरसों में शिक्षा के अधिकार कानून का उल्लंघन हो रहा है. शपथ पत्र में मदरसों में सरकारी खर्चे पर मजहबी शिक्षा दिए जाने का भी विरोध किया है. एनसीपीसीआर के प्रमुख निजी सचिव विजय कुमार अदेवा द्वारा दाखिल शपथ पत्र में यह भी कहा गया है कि दूसरे स्कूलों के बच्चों को जिस प्रकार से आधुनिक शिक्षा मिलती है, मदरसे के बच्चे उससे वंचित रह जाते हैं.