लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक आपराधिक मामले की सुनवाई के दौरान महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि यदि एफआईआर में वर्णित तथ्यों से संज्ञेय अपराध का होना पाया जाता है तो गिरफ्तारी पर रोक नहीं लगाई जा सकती. न्यायालय ने कहा कि ऐसा तभी सम्भव है, जबकि एफआईआर में वर्णित तथ्य से संज्ञेय अपराध न बन रहा हो अथवा किसी प्रावधान के तहत पुलिस को विवेचना का अधिकार न हो.
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति जसप्रीत सिंह की खंडपीठ ने कल्लू और अन्य की याचिका को खारिज करते हुए की गई. याचियों के विरुद्ध सीतापुर जनपद के रामपुर मथुरा थाने में हत्या के प्रयास समेत अन्य गम्भीर धाराओं में एफआईआर दर्ज है. याचियों का कहना था कि याची कल्लू की पुत्री का विवाह वादी के साथ हुआ है. वादी उसका दामाद है, वह पुत्री को परेशान करता था, जिसकी वजह से वर्ष 2018 में उसके खिलाफ आईपीसी की धारा 498 ए के तहत एफआईआर लिखाई गई थी.
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उसी रंजिश के तहत अब उसके दामाद ने उसे झूठे मुकदमे में फंसा दिया है. वहीं सरकारी वकील ने याचिका का विरोध करते हुए कहा कि याचियों ने वादी पर बांके से हमला किया था, जिसमें उसकी दो उंगलियां भी कट गईं. इसी वजह से याचियों ने अपनी याचिका में वादी की मेडिकल रिपोर्ट को नहीं लगाया है. न्यायालय ने उक्त टिप्पणी करते हुए व प्रथम दृष्टया संज्ञेय अपराध का मामला पाते हुए, याचिका को खारिज कर दिया.