लखनऊः अयोध्या के विवादित ढांचा विध्वंस (Ayodhya disputed structure demolition) मामले में सत्र अदालत द्वारा सभी अभियुक्तों को बरी किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली अपील की स्वीकार्यता (ग्राह्यता) पर हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया है.
सोमवार को न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा (Justice Ramesh Sinha) और न्यायमूर्ति सरोज यादव (Justice Saroj Yadav)की खंडपीठ के समक्ष अयोध्या निवासी हाजी महबूब अहमद व एक अन्य की ओर से दाखिल इस अपील पर अपीलायार्थियों, राज्य सरकार व सीबीआई की ओर से बहस पूरी की गई. बहस के दौरान राज्य सरकार व सीबीआई के अधिवक्ताओं द्वारा अपील की पोषणीयता पर सवाल उठाया गया. दलील दी गई कि अपीलार्थी उक्त मामले में वादी नहीं थे. लिहाजा वे वर्तमान याचिका दाखिल नहीं कर सकते. कहा गया कि अपीलार्थी इस मामले के पीड़ित भी नहीं हैं. लिहाजा सीआरपीसी की धारा 372 के तहत वर्तमान अपील दाखिल नहीं कर सकते. वहीं, याचियों की ओर से दलील दी गई कि वे इस मामले में विवादित ढांचा गिराए जाने की वजह से पीड़ित पक्ष हैं. लिहाजा उन्हें सत्र अदालत के फैसले को चुनौती देने का अधिकार है.
उल्लेखनीय है कि विशेष अदालत, अयोध्या प्रकरण ने 30 सितंबर 2020 को निर्णय पारित करते हुए विवादित ढांचा विध्वंस मामले में पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी, पूर्व केंद्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी, पूर्व राज्यपाल कल्याण सिंह, पूर्व मुख्यमंत्री उमा भारती, लोक सभा सदस्यों साक्षी महाराज, लल्लू सिंह व बृजभूषण शरण सिंह समेत सभी अभियुक्तों को बरी कर दिया था. वर्तमान अपील में कहा गया है कि दोनों याची उक्त मामले में न सिर्फ गवाह थे बल्कि घटना के पीड़ित भी हैं. उन्होंने विशेष अदालत के समक्ष प्रार्थना पत्र दाखिल कर खुद को सुने जाने की मांग भी की थी लेकिन विशेष अदालत ने उनके प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया था.
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