लखनऊ : हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने हत्या के एक मामले में दोषी ठहराए गए अभियुक्त की अपील सोमवार को जब सुनवाई के लिए आई तो पाया कि उक्त अपील दोषी करार दिए जाने के 29 साल बाद दाखिल हुई है. दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के तहत भी उक्त अपील 9685 दिनों के विलम्ब से दाखिल की गई. इस पर न्यायालय ने मंगलवार तक ट्रायल कोर्ट का रिकॉर्ड तलब कर लिया है. मामले की सुनवाई मंगलवार को होगी.
यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति प्रीतिंकर दिवाकर व न्यायमूर्ति राजन रॉय की खंडपीठ ने अपीलार्थी देवी सरन की अपील पर पारित किया है. अपीलार्थी के अधिवक्ता आशुतोष मिश्रा ने बताया कि देवी सरन को हत्या के एक मामले में 2 जुलाई 1994 को दोषसिद्ध ठहराते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी, तब से वह इस मामले में जेल में है. उन्होंने बताया कि वर्तमान मामले में अपीलार्थी को पत्नी से अवैध सम्बंध के शक में डॉ. जगजीवन नाम के व्यक्ति की हत्या में सजा हुई है.
उक्त घटना वर्ष 1993 की है. उनके अनुसार अब तक मामले में अपीलार्थी की ओर से पैरवी करने वाला कोई नहीं था. हालांकि अब उसका बेटा अपील की पैरवी कर रहा है. अपीलार्थी को 2 जुलाई 1994 को सजा हुई और सजा के विरुद्ध वर्तमान अपील 21 फरवरी 2023 को दाखिल हो सकी. मामले की पूर्व की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार के अधिवक्ता ने विलम्ब में अपील दाखिल करने के विरुद्ध आपत्ति दाखिल करने के लिए समय मांगा था. जिसे न्यायालय ने मंजूर करते हुए, तीन सप्ताह का समय दिया था. अधिवक्ता के अनुसार इस मामले के ट्रायल के दौरान अपीलार्थी पर हत्या का दूसरा मुकदमा भी दर्ज हुआ, हत्या के उक्त दूसरे मुकदमे में भी उसे दोषी पाया गया.