लखनऊ: 41 साल से हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में लम्बित चल रहे भूमि विवाद के मामले में अब फैसला आया है. 41 साल बाद न्यायालय ने उक्त भूमि के कुछ बिंदुओं को तो तय कर दिया है, लेकिन उत्तराधिकार तय करने के मामले को वापस बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी सुलतानपुर को भेजते हुए पुनर्विचार का आदेश दिया है. यह निर्णय न्यायमूर्ति रजनीश कुमार की एकल पीठ ने राम सुंदर व एक अन्य की याचिका पर पारित किया.
याचियों की ओर से दलील दी गई कि चकबंदी के दौरान प्रतिवादी का नाम गलत तरीके से उनकी पुश्तैनी जमीन पर चढ़ा दिया गया. इस पर याचियों ने सहायक चकबंदी अधिकारी के समक्ष आपत्ति दाखिल की. सहायक चकबंदी अधिकारी ने मामले को चकबंदी अधिकारी को भेज दिया. चकबंदी अधिकारी ने 27 दिसम्बर 1974 को याचियों के पक्ष में उनकी आपत्ति को निर्णित किया. इस पर प्रतिवादी ने 27 दिसम्बर 1974 के आदेश को अपील के माध्यम से चुनौती दी. 26 जून 1975 को सहायक बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी ने अपील को स्वीकार करते हुए चकबंदी अधिकारी के आदेश को निरस्त कर दिया. तब याचियों ने बंदोबस्त अधिकारी के आदेश को पुनरीक्षण याचिका के माध्यम से संयुक्त निदेशक चकबंदी के समक्ष चुनौती दी. याचियों की पुनरीक्षण याचिका भी 24 मई 1980 को खारिज हो गई. इसके बाद मामला हाईकोर्ट आया.
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न्यायालय ने सभी परिस्थितियों पर गौर करने के उपरांत याचियों के दावे को खारिज कर दिया. हालांकि, विवादित जमीन पर प्रतिवादी के उत्तराधिकार के प्रश्न को पुनः निर्णित करने का आदेश दिया है. न्यायालय ने कहा कि यदि विवादित जमीन पर प्रतिवादी का भी उत्तराधिकार नहीं सिद्ध होता तो भूमि प्रबंधन समिति विवादित जमीन का कब्जा प्राप्त कर सकती है. अपने आदेश में यह भी कहा कि मामला काफी पुराना हो चुका है. लिहाजा बंदोबस्त अधिकारी चकबंदी इसे छह महीने में निर्णित करें.