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दहेज देना स्वीकार करने के बाद भी पीड़ित के खिलाफ नहीं चलाया जा सकता केस : हाईकोर्ट - undefined

दहेज के एक मामले की सुनवाई के दौरान हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है. हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि दहेज देना स्वीकार करने के बावजूद ऐसे मामले में पीड़ित के खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.

लखनऊ हाईकोर्ट
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Published : Aug 3, 2021, 10:01 PM IST

लखनऊ : अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि इसमें में कोई संदेह नहीं कि ‘दहेज देना या उसे बढ़ावा देना’ दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है. लेकिन, ‘दहेज देने’ के कथन के बावजूद ऐसे मामले के पीड़ित पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. न्यायालय ने आगे कहा कि यही अधिनियम पीड़ित व्यक्ति को यह सुरक्षा भी देता है कि उसके किसी कथन के लिए उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.


यह निर्णय न्यायमूर्ति सरोज यादव की एकल पीठ ने राम चरित्र तिवारी व अन्य की याचिका पर पारित किया. याचियों ने अपने खिलाफ दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दाखिल आरोप-पत्र और एसीजेएम, प्रतापगढ़ द्वारा जारी समन को निरस्त किये जाने की मांग की थी. याचियों की ओर से दलील दी गयी कि मामले में वादी ने आरोप लगाया है कि उसने याचियों को नकद धनराशि दहेज के तौर पर दी थी. जबकि दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3 के तहत दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है. ऐसे में वादी के खिलाफ भी अभियोग चलाया जाना चाहिए. दलील दी गयी कि वादी के खिलाफ मामले में अभियोग न चलाकर सिर्फ याचियों को समन जारी करना विधिसम्मत नहीं है.


न्यायालय ने मामले की विस्तृत सुनवाई के पश्चात याचिका को खारिज करते हुए अपने निर्णय में दिल्ली हाईकोर्ट के एक निर्णय को उद्धृत किया. जिसमें कहा गया है कि उक्त अधिनियम की धारा 7(3) पीड़ित को यह सुरक्षा देती है कि उसके द्वारा दिये गये किसी कथन के लिए उसके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. इस मामले में पीड़ित ने भले ही कहा हो कि उसने याचियों को दहेज दिया था, लेकिन उसके खिलाफ अभियोग नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उसे धारा 7(3) के तहत सुरक्षा प्राप्त है.

इसे भी पढ़ें - ATS पर द्वेषपूर्ण जांच के आरोप को हाईकोर्ट ने किया खारिज, PFI सदस्य ने लगाया था आरोप

लखनऊ : अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि इसमें में कोई संदेह नहीं कि ‘दहेज देना या उसे बढ़ावा देना’ दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दंडनीय अपराध है. लेकिन, ‘दहेज देने’ के कथन के बावजूद ऐसे मामले के पीड़ित पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. न्यायालय ने आगे कहा कि यही अधिनियम पीड़ित व्यक्ति को यह सुरक्षा भी देता है कि उसके किसी कथन के लिए उस पर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता.


यह निर्णय न्यायमूर्ति सरोज यादव की एकल पीठ ने राम चरित्र तिवारी व अन्य की याचिका पर पारित किया. याचियों ने अपने खिलाफ दहेज प्रतिषेध अधिनियम के तहत दाखिल आरोप-पत्र और एसीजेएम, प्रतापगढ़ द्वारा जारी समन को निरस्त किये जाने की मांग की थी. याचियों की ओर से दलील दी गयी कि मामले में वादी ने आरोप लगाया है कि उसने याचियों को नकद धनराशि दहेज के तौर पर दी थी. जबकि दहेज प्रतिषेध अधिनियम की धारा 3 के तहत दहेज लेना व देना दोनों ही अपराध है. ऐसे में वादी के खिलाफ भी अभियोग चलाया जाना चाहिए. दलील दी गयी कि वादी के खिलाफ मामले में अभियोग न चलाकर सिर्फ याचियों को समन जारी करना विधिसम्मत नहीं है.


न्यायालय ने मामले की विस्तृत सुनवाई के पश्चात याचिका को खारिज करते हुए अपने निर्णय में दिल्ली हाईकोर्ट के एक निर्णय को उद्धृत किया. जिसमें कहा गया है कि उक्त अधिनियम की धारा 7(3) पीड़ित को यह सुरक्षा देती है कि उसके द्वारा दिये गये किसी कथन के लिए उसके खिलाफ मुकदमा नहीं चलाया जा सकता. इस मामले में पीड़ित ने भले ही कहा हो कि उसने याचियों को दहेज दिया था, लेकिन उसके खिलाफ अभियोग नहीं चलाया जा सकता क्योंकि उसे धारा 7(3) के तहत सुरक्षा प्राप्त है.

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