लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने एक महत्वपूर्ण आदेश पारित करते हुए, स्पष्ट किया है कि संविधान के प्रावधानों के तहत न्यायालय जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए, चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप नहीं कर सकती. न्यायालय ने कहा कि चुनाव के संबंध में जनहित याचिका पोषणीय नहीं है.
यह आदेश न्यायमूर्ति एआर मसूदी व न्यायमूर्ति एनके जौहरी की खंडपीठ ने अतुल कुमार व एक अन्य की ओर से दाखिल जनहित याचिका पर पारित किया. याचिका में चुनाव आयोग द्वारा 8 जनवरी को चुनाव की तिथियों की घोषणा संबंधी आदेश को चुनौती दी गई थी. याचियों की ओर से कहा गया था कि जन-प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 15(1) यह प्रावधान करती है कि विधान सभा चुनाव विधान सभा भंग होने पर या विधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने पर ही कराए जाएंगे. साथ ही सिर्फ सिफ विशेष परिस्थितियों में ही चुनाव आयोग विधान सभा का कार्यकाल समाप्त होने के छह माह के पहले चुनाव करा सकती है.
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हालांकि न्यायालय ने याचिका को खारिज करते हुए अपने आदेश में कहा कि संविधान के अनुच्छेद 329 में अदालतों को निर्वाचन के मामले में हस्तक्षेप करने से रोका गया है. इसी अनुच्छेद का क्लाज (बी) यह प्रावधान करता है कि लोक सभा या विधान सभा का चुनाव किसी भी अदालत में प्रश्नगत नहीं किया जा सकता, हालांकि सिर्फ निर्वाचन याचिका के दाखिल होने पर ही ऐसा किया जा सकता है. न्यायालय ने कहा कि वर्तमान मामले में जनहित याचिका दाखिल हुई है और उक्त प्रावधानों से स्पष्ट है कि निर्वाचन के मामले में यह अदालत जनहित याचिका पर सुनवाई नहीं कर सकती.
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