लखनऊ: हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने वर्ष 2019 में उन्नाव की एक गैंगरेप पीड़िता को कथित तौर पर जलाकर मारने के तीन अभियुक्तों की जमानत याचिका स्वीकार कर ली है. न्यायालय ने पीड़िता के मृत्युपूर्व बयान में भी प्रथम दृष्टया भारी विरोधाभाष पाते हुए, यह आदेश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति दिनेश कुमार सिंह की एकल पीठ ने उमेश कुमार बाजपेई, राम शंकर त्रिवेदी व हरिशंकर त्रिवेदी की जमानत याचिकाओं पर पारित किया.
अभियोजन के अनुसार घटना 5 दिसम्बर 2019 की है. पीड़िता ने शिवम त्रिवेदी व शुभम नाम के दो युवकों के विरुद्ध गैंगरेप की एफआईआर दर्ज कराई थी. आरोप है कि घटना के दिन पीड़िता अपने इसी मुकदमे की पैरवी करने रायबरेली जाने के लिए सुबह 4 बजे ट्रेन पकड़ने निकली थी. शिवम त्रिवेदी गैंगरेप के उक्त मुकदमे में जमानत पर रिहा हुआ था. उसने, शुभम व उपरोक्त तीनों याचियों ने पीड़िता को रास्ते में रोक लिया व उसके सिर व गर्दन पर डंडा व चाकू से वार करने के बाद उसे जिन्दा जला दिया. पीड़िता ने अस्पताल में उक्त अभियुक्तों के विरुद्ध मृत्युपूर्व बयान भी दिया था. न्यायालय ने पाया कि पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में पीड़िता के सिर में किसी चोट का जिक्र नहीं है. अभियुक्तों की ओर से यह भी कहा गया कि घटना के दिन रायबरेली में गैंगरेप के उक्त मुकदमे की कोई तारीख भी नहीं थी और जिस ट्रेन को पकड़ने जाने की बात अभियोजन द्वारा कही जा रही है, वह ट्रेन भी दो दिन पहले से ही निरस्त थी.
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न्यायालय ने टिप्पणी करते हुए कहा कि 'यह सच है कि इस घटना को काफी मीडिया अटेंशन मिला था और वादी व उसके परिवार को उचित से अधिक सरकार से आर्थिक सहयोग भी प्राप्त हुआ. यदि किसी अभियुक्त ने अपराध किया है तो उसे कानून के तहत दंड जरूर मिलना चाहिए लेकिन यदि किसी घटना को मीडिया ने बहुत हाईलाइट किया है तो सिर्फ इस कारण से उसे कष्ट में डालना चाहिए, जब तक कि वह वास्तव में दोषी न हो.'