लखनऊः हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच (Lucknow Bench of High Court) ने शुक्रवार को एक माह से अधिक बीतने के बावजूद नए महाधिवक्ता की नियुक्ति न कर पाने पर राज्य सरकार से कहा है कि यह बहुत ही गंभीर स्थिति है. संवैधानिक योजना में इसे कत्तई स्वीकार नहीं किया जा सकता. न्यायालय ने सरकार को 16 मई तक महाधिवक्ता की नियुक्ति करने का आदेश दिया है. यह आदेश न्यायमूर्ति देवेंद्र कुमार उपाध्याय व न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने मामले पर में स्वतः संज्ञान लेते हुए पारित किया.
न्यायालय ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 165 के तहत महाधिवक्ता की नियुक्ति का प्रावधान है जिसके तहत उसे न सिर्फ सरकार के लिए कानूनी सलाहकार का काम करना होता है बल्कि उसे सीआरपीसी, अवमानना अधिनियम के साथ-साथ अन्य कानूनी दायित्वों का निर्वहन भी करना होता है और ये दायित्व किसी अपर महाधिवक्ता या अन्य को स्थानांतरित नहीं किए जा सकते हैं. ऐसे में संवैधानिक योजना के अनुसार महाधिवक्ता का पद खाली नहीं रखा जा सकता है. उल्लेखनीय है कि महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह ने एक माह पहले ही अपना इस्तीफा सरकार को सौंप दिया है.
दरअसल महाधिवक्ता को नियुक्त करने की मांग करते हुए स्थानीय अधिवक्ता रमाकांत दीक्षित ने एक जनहित याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की थी. जिस पर शुक्रवार को सुनवाई शुरू हुई तो न्यायालय ने पाया कि याचिका में तमाम ऐसे आधारहीन तथ्य लिखे हुए हैं, इस पर न्यायालय ने याची को जमकर फटकार लगाई. हालांकि मामले के महत्व को देखते हुए, न्यायालय याची को याचिका से अलग कर दिया व मामले का स्वतः संज्ञान ले लिया. न्यायालय ने सुनवाई के दौरान कहा कि पुरानी परम्परा रही है कि नई सरकार के शपथ लेने के बाद होने वाली पहली कैबिनेट बैठक में ही महाधिवक्ता की नियुक्ति का निर्णय कर लिया जाता था लेकिन वर्तमान सरकार ऐसा करने में विफल रही है.