लखनऊ : जल शक्ति मंत्रालय ने 2019 में 'हर घर से नल से जल' योजना का शुभारंभ किया था. इस योजना के तहत गांवों में हर घर में (groundwater exploitation) पाइप लाइन द्वारा नल से पानी पहुंचाया जाना था. उत्तर प्रदेश इस योजना के तहत गांवों में यह सुविधा देने के मामले में अग्रणी राज्य है. प्रदेश सरकार ने ढाई करोड़ से ज्यादा घरों को नल से जल देने के लक्ष्य में डेढ़ करोड़ से अधिक कनेक्शन दिए जा चुके हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में शुद्ध पेयजल की समस्या बहुत पुरानी है. दूषित जल पीने से लोगों में तरह-तरह की बीमारियां पनपती हैं और जनहानि भी होती है. इस महत्वाकांक्षी योजना के अनेक लाभ हैं, किंतु कुछ चिंताएं भी हैं. यह पेयजल योजना भूगर्भ जल पर ही केंद्रित है. इसलिए भविष्य में भूगर्भ जलस्तर और अधिक नीचे गिरने की आशंका बढ़ गई है. साथ ही पानी की बर्बादी और रखरखाव का संकट भी बना रहेगा.
दो लाख चालीस हजार से वर्ग किलोमीटर से भी अधिक क्षेत्रफल वाले उत्तर प्रदेश में सत्तानवे हजार से ज्यादा आबाद गांव हैं. इन गांवों में सोलह करोड़ से भी ज्यादा लोग रहते हैं. स्वाभाविक है कि इतनी बड़ी आबादी के लिए शुद्ध पेयजल का प्रबंध आसान काम नहीं था. अब तक कुएं और हैंडपंपों के माध्यम से ही पानी की आपूर्ति की जाती थी, किंतु सरकार की इस योजना के तहत हर घर को पाइप लाइन से पीने योग्य स्वच्छ जल पहुंचाया जाना है. प्रदेश की लगभग साठ फीसद आबादी इस योजना से आच्छादित हो चुकी है और शेष गांवों में 2024 तक यह योजना लागू करने का लक्ष्य है. लगभग एक लाख गांवों में नल से जल पहुंचाने के लिए इतने ही नलकूप लगाने होंगे. पहले से भी अधिकांश शहरों के लिए भी भूगर्भ जल का ही उपयोग होता है. औद्योगिक उपयोग का अस्सी फीसद पानी भी भूगर्भ से ही आता है. खेती के लिए भी लगभग पचहत्तर प्रतिशत पानी नलकूपों द्वारा भूगर्भ से ही निकाला जाता है. स्वाभाविक है कि यदि इसी गति से दोहन होता रहा, तो निकट भविष्य में पेयजल के लिए गंभीर संकट का सामना करना होगा. चिंता यह भी है कि सरकारी स्तर पर कोई भी इस ओर सोच तक नहीं रहा है. प्रदेश में इतनी नदियां होने के बावजूद सिंचाई के लिए सिर्फ पंद्रह प्रतिशत पानी ही नहरों से मिल पाता है.
जिन गांवों में टंकियां स्थापित हो गई हैं और पाइप लाइन से पानी की आपूर्ति आरंभ हो गई है, वहां रखरखाव का भी बड़ा संकट दिखाई दे रहा है. तमाम गांवों में पानी की बर्बादी और लीकेज देखा जा सकता है. इसे रोक पाने का सरकारी स्तर पर कोई प्रबंध नहीं किया गया है. गांवों में लोगों में जागरूकता भी काफी कम है. इस कारण भी पानी की बर्बादी खूब होती है. पहले हैंडपंप अथवा कुओं से पानी निकालना होता था. इस कार्य में मेहनत लगती थी. इस कारण लोग पानी की बर्बादी नहीं करते थे. अब वह स्थिति नहीं रही है. राजधानी लखनऊ में काम कर रहे ग्राउंड वाटर एक्शन ग्रुप प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार को सुझाव दिया था कि नदियों के दोनों तटों से कम से कम एक किलोमीटर दूरी तक भूजल दोहन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाया जाए. खासतौर पर उथले ट्यूबवेल कदापि न लगाए जाएं, किंतु इस ओर किसी ने ध्यान नहीं दिया है. इस ग्रुप ने सरकार को शहरी जल प्रबंधन के लिए भी सुझाव दिए थे, जिसमें कहा गया था कि दक्षिण के राज्यों की भांति प्रदेश के बड़े शहरों को जलापूर्ति निकटवर्ती नदियों से की जानी चाहिए, जिससे भूगर्भ जल बचेगा.
इस संबंध में भूजल विशेषज्ञ डॉ आरएस सिन्हा कहते हैं कि 'ग्रामीण क्षेत्रों में भी शुद्ध पेयजल की आपूर्ति निस्संदेह अच्छी पहल है. हालांकि इसके कारण उपजने वाले संकट से निपटने के लिए रणनीति भी बनानी चाहिए. यदि भूजल पर हमारी निर्भरता यूं ही बढ़ती रही, तो वह दिन दूर नहीं जब हालात गंभीर हो जाएंगे. प्रदेश में नहरों के नेटवर्क को बढ़ाने की पर्याप्त उपाय नहीं हो रहे हैं, जबकि इनके अतिरिक्त जल का शोधन कर आपूर्ति लायक बनाया जा सकता है. प्रदेश में खेती भी जल की उपलब्धता के अनुरूप होनी चाहिए. हाल यह है कि कुल भूगर्भ जल दोहन का एक चौथाई हिस्सा गन्ने की सिंचाई के लिए उपयोग होता है. होना यह चाहिए कि जहां पानी की उपलब्धता जैसी है, वहां उसी प्रकार की फसलों का उत्पादन हो. इसके विपरीत प्रदेश के कई जिलों में केले का भी उत्पादन किया जाने लगा है, जिसके लिए पानी की बहुत ज्यादा आवश्यकता होती है.' डॉ सिन्हा कहते हैं 'अब दोहन जिस जल का शुरू हो गया है, संभव है कि वह हिमालय से रिचार्ज होकर पचास हजार साल पहले आया हो. यदि हम इतना पुराना भूजल भंडार खत्म कर रहे हैं, तो आप समझ सकते हैं कि यह संकट कितना गंभीर होने वाला है.'